सोमवार, 2 मार्च 2020

1 बस, 40 अजनबी, 76 घंटे, 1500 किलोमीटर का सफर! शानदार और यादगार ट्रिप

शानदार और यादगार ट्रिप: अक्कलकोट- गाणगापुर-सोलापुर- तुलजापुर-सिद्धेश्वर-पंढरपुर-प्रति बालाजी तिरुपति


सैर सपाटा चाहे स्वास्थ्य पर्यटन, सृजनात्मक पर्यटन. मनोरंजन यात्रा, शीतकालीन पर्यटन,सामूहिक पर्यटन, 
पारिस्थितिकी पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन,  शैक्षिक पर्यटन, साहसिक पर्यटन या फिर तीर्थाटन हो. इंसान में ताजगी भर देता है, जानकारियों का खजाना खोल देता है, खबरों और सुनी-सुनाई बातों को लेकर जो असमंजस रहता है उसे दूर कर देता है। तो, आप भी दोस्तों संग, परिवार संग या फिर अकेले ही सैर-सपाटे के लिए जरूर निकलें। सैर-सपाटा आपकी जिन्दगी में काफी कुछ  सकारात्मक बदलाव लाएगा, दुनिया को देखने का, लोगों को समझने का नया नजरिया पैदा करेगा। 

हिन्दुस्तान को, हिन्दुस्तान की खूबसूरती, एकता, अखंडता, समृद्दि, सौहार्द्रता को खुली आंखों से देखिये, आंकड़ों, खबरों से अपने प्यारे देश को मत आंकियें...

महाराष्ट्र यानी संतों की भूमि, वीर योद्धाओं की भूमि, कुदरती और इंसानी खूबसूरती की भूमि, अपने आप में ऐतिहासिकता समेटे हुए भूमि, खूबसूरत समुद्री तटों की भूमि, पहाड़-किलों-मजीर-मंदिरों-उर्वर भूमि-हरे भरे पेड़-पौधे-हर तरह की फसल-ड्राइफ्रुट की खेती-छोटी बड़ी असंख्य कंपनियों वाली भूमि, यहां कहीं भी घूमने के लिए चले जाइए, कभी भी मन नहीं भरेगा।

महाराष्ट्र के पालघर में मुंबई से सटे उपनगर नालासोपारा में मैं रहता हूं। नालासोपारा और आसपास का इलाका भी सैर-सपाटे के लिए काफी खूबसूरत जगह है। पालघर जिले में देश का सबसे ज्यादा चीकू उत्पादन होता है। नालासोपारा और इसके आसपास के कई इलाकों जैसे-वसई, विरार, दहाणू, बोईसर, अकलोली, व्रजेश्वरी, मुंबई के अलावा महाराष्ट्र के कई दूसरे जिले जैसे रायगढ़, रत्नागिरी, नासिक (त्र्यंबकेश्वर), सतारा (महाबलेश्वर) जैसी जगहों पर मैं घूम चुका था, इसलिए महाराष्ट्र की कुछ नई जगहों पर जाना चाह रहा था। तभी तुलजापुर- अक्कलकोट- गांणगापुर- पंढरपुर-सोलापुर-सिद्धेश्वर ले जाने वाली बस की जानकारी मिली।  

सैर-सपाटा का मुझे काफी शौक है और मैं अक्सर अजनबियों के साथ या फिर दोस्तों या अकेले ही घूमने निकल जाता है। 20 फरवरी की 10 बजे रात से लेकर 24 फरवरी को 2 बजे सुबह तक मैं महाराष्ट्र के अक्कलकोट, शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, श्री तुलजा भवानी मंदिर, पंढरपुर, प्रति तिरुपति बालाजी मंदिर के अलावा कर्नाटक के गाणगापुर का सैर कर वापस लौटा हूं और आप लोगों के सामने एक और शानदार और यादगार सफर का अनुभव साझा कर रहा हूं। 

कैसे बना प्लान:
मैं जहां रहता हूं वहीं पर शिर्डी के साई बाबा का मंदिर है। मैं दर्शन के लिए अक्सर वहां जाता हूं। मंदिर धार्मिक कामों के अलवा कई सामाजिक और सैर-सपाटे कराने का भी काम करता है। मंदिर गरीब बच्चों को पोशाक देना और मुफ्त में पढ़ाई की सुविधा भी मंदिर देता है। इसके अलावा, कुछ डॉक्टर मंदिर परिसर में कुछ वक्त मुफ्त इलाज करते हैं। इसके अलावा, मंदिर के जरिये शिर्डी, शेगांव, अष्टविनायक, अक्कलकोट, शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, श्री तुलजा भवानी मंदिर, पंढरपुर, प्रति तिरुपति बालाजी मंदिर के अलावा कर्नाटक के गाणगापुर का दर्शन कराने के लिए बस सेवा भी है। मैं शिर्डी, अष्टविनायक पहले हो  आया हूं और अभी हाल ही में अक्कलकोट, शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, श्री तुलजा भवानी मंदिर, पंढरपुर, प्रति तिरुपति बालाजी मंदिर के अलावा कर्नाटक के गाणगापुर के दर्शन करके लौटा हूं। 

फरवरी 2020 के पहले हफ्ते में जब मैंने मंदिर में अक्कलकोट, शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, श्री तुलजा भवानी मंदिर, पंढरपुर, प्रति तिरुपति बालाजी मंदिर के अलावा कर्नाटक के गाणगापुर के टूर का विज्ञापन देखा तो मुझे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने तुरंत विस्तार से इसकी जानकारी ली और विज्ञापन की तस्वीर लेकर मैंने उसे अपने पत्रकार दोस्त श्रीधर राव से साझा किया। करीब 76 घंटे का टूर था और 1500 किलोमीटर की दूसरी तय करनी थी। इसके लिए शुल्क प्रति व्यक्ति 3500 रुपए था। इसमें खाना, चाय, नास्ता, ठहरना सब शामिल था। यानी आपको 3500 रुपए जमा करने के बाद साथ में एक भी पैसा ले जाने की जरूरत नहीं थी अगर आप कुछ और खरीदारी नहीं करते तो। 

राव साहब ने तो इस टूर में रुचि नहीं दिखाई, लेकिन उन्होंने अपने 82 वर्षीय पिताजी को साथ ले जाने की गुजारिश जरूर की। मैंने भी हामी भर दी। फरवरी 2020 की 13 तारीख रही होगी, मैंने खुद और राव साहब के पिताजी के लिए टूर के लिए जरूरी पैसे यानी दो व्यक्तियों के लिए 7000 रुपए भर दिए। हालांकि, शुरू में बस वाले ने राव साहब के पिताजी की अधिक उम्र देखते हुए साथ में जाने से मना किया था लेकिन फिर जाने दिया। 

इस तरह 20 फरवरी 2020 भी आ गया। रात 10 बजे हमलोग साई मंदिर के पास ही बस में सवार हुए। सवार होते ही राव साहब के पिताजी थोड़े परेशान हुए। उन्होंने अपने पैंट की जेब देखी तो उनका मोबाइल फोन गायब था। उन्होंने मुझसे कहा कि शायद मंदिर में ही छुट गया होगा। दरअसल, राव साहब और उनके पिताजी मंदिर में कुछ समय पहले ही खत्म हुई आरती में हिस्सा लिया था। इसलिए राव साहब कि पिताजी के लगा कि हो सकता है मंदिर में ही मोबाइल छुट गया हो। मैं झट से बस से नीचे उतरा और तुरंत आरती स्थल पर जाकर मंदिर के प्रबंधक और पूजारी से संपर्क करके वहां छुटे किसी मोबाइल के बारे में पूछा।  पूजारी ने मुझसे पूछा कि मोबाइल कैसा था मैंने कहां साधारण था, स्मार्ट फोन नहीं था। तो, दूसरे पूजारी ने वहां पर छुट गये  मोबाइल फोन को दिखाया, तो मैंने कहा हां, यही फोन है। फिर मैं फोन लेकर राव साहब के पिताजी को दिखाया तो जान में जान आई।    

>20 फरवरी 2020:
-जब मैंने पहली बार 25 रुपए की चाय पी


20 फरवरी को 10 बजे मंदिर के बगल से निकले तो घोड़बंदर, भिवंडी, मुंबई-पुणे हाईवे होते हुए अगले दिन यानी 21 फरवरी को करीब 4 बजे पुणे के फूड कार्निवल होटल पहुंचे। सुबह सुबह वहां पर काफी गाड़ियां खड़ी थी। लोग फ्रेश हो रहे थे, चाय-नास्ता कर रहे थे। हमारी बस भी वहां रुकी और हमारे साथ सफर कर रहे लोग भी फ्रेश हुए और चाय-नाश्ता किया। मैं भी राव साहब के पिताजी के साथ फ्रेश हुआ और सिर्फ चाय पी। एक चाय के लिए 25 रुपए का भुगतान किया। जीवन में मैंने पहली बार फिर 25 रुपए प्रति ग्लास चाय पी थी। रात में सफर के दौरान सड़क के दोनों तरफ कई ढाबे, रेस्टोरेंट, होटल देखने को मिले, कई में तो इतनी अच्छी सजावट की हुई थी कि उत्सव जैसा माहौल लग रहा था। 


>21 फरवरी 2020: 
फूड कार्निवल के पास करीब 15-20 मिनट रुके। वहां से फिर सोलापुर होते हुए अक्कलकोट की तरफ बढ़े। आपको बता दूं कि अक्कलकोट में श्री स्वामी समर्थ का समाधि मंदिर है। अक्कलकोट महाराष्ट्र के सोलापुर में जिले में है। आगे बढ़ते समय पहाड़, नदियां, हरे-भरे खेत खास कर गन्ना औप मक्के की खेती, खेतों में करते लोग, फैक्टरी और फैक्ट्रियों से निकलते धुएं, मंदिर. मस्जिद के अलावा दूसरे पूजास्थ के दर्शन भी हो रहे थे। 

सोलापुर की तरफ बढ़ते समय जैसा जैसा समय बढ़ रहा था और सूर्य तेज हो रहा था थोड़ी थोड़ी भूख लग रही था और लोग फ्रेश होना चाह रहे थे। बस ड्राइवर और यात्रा के प्रबंधक भी हालांकि सड़क के किनारे कुछ अच्छी जगह जहां पानी भी हो, संडास भी हो, छांव भी हो, की तलाश कर रहे थे। आखिरकार सुबह करीब 8 बजे सोलापुर के तेम्भुरनी गांव में ऐसी जगह की तलाश पूरी हो गई। गांव सड़क के किनारे था। वहां पर एक व्यक्ति का संडास था और नल भी था, साथ ही एक खाली पड़ा घर भी था। संबंधित व्यक्ति से अनुरोध करके हमलोग वहां फ्रेश हुए। आपको बता दूं कि बस में हमारे साथ खाना-नास्ता-चाय बनाने वाले भी 5 लोग थे जिनमें दो पुरुष और 3 महिलाएं थीं। खाना-नास्ता-चाय बनाने का पूरा सामाना जैसे गैस-चुल्हा-बर्तन-चावल-पोहा-चीनी-पानी-बैठने के लिए कार्पेट बगैरह सब था। तो तेम्भुरनी में फ्रेश हुए, गर्मागर्म नास्ता किए, चाय पिए और फिर करीब एक घंटे के बाद अक्कलकोट के लिए निकल पड़े।

(भक्त निवास, अक्कलकोट, महाराष्ट्र; Bhakt Niwas, Akkalkot, Maharashtra








अक्लकोट करीब 2 बजे दोपहर में पहुंचे। वहां पर श्री स्वामी समर्थ मंदिर के नजदीक ही भक्त निवास में रुके। वहीं पर स्नान बगैरह किए। खाना बनाने वालों ने खाना बनाया। चार बजे तक हम सभी लोग स्नान करके, खाना खाकर गाणगापुर के लिए निकल पड़े। लेकिन यहां हम अपनी बस से नहीं निकले, बल्कि भक्त निवास के पास खड़ी छोटी-छोटी गाड़ियों जिनमें 10-11 व्यक्ति एक साथ बैठ सकते हैं, उस पर सवार होकर निकले। गाणगापुर के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं। गाणगापुर कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में स्थित है। अक्कलकोट में हमलोग
जहां रुके थे वहां से करीब 70 किलोमीटर दूर है गाणगापुर।  

(श्री दत्तात्रेय भगवान का मंदिर, गाणगापुर, Shri Duttatreya Temple, Ganagapur, Kalburgi, Karnataka
(( इच्छापूर्ति औदुंबर वृक्ष, गाणगापुर,  Holy Audumbar Tree, Ganagapur, Kalburgi, Karnatka
((भीमा-अमरजा संगम, गाणगापुर, कर्नाटक Prayagraj of Ganagapur, Kalburgi, Karnataka

>गाणगापुर (Ganagapur) के बारे में:
-यहां भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है
-भीमा-अमरजा नदी के संगम पर स्थित है गाणगापुर
-भगवान परशुराम का नाम आप सबने सुना होगा, भगवान परशुराम को
भगवान दत्तात्रेय का शिष्य माना जाता है














-कर्नाटक के कालबुर्गी जिले में है
-अफजलपुरा विधानसभा क्षेत्र में आता है 
-नजदीक रेलवे स्टेशन गाणगापुर 
-मुंबई-चेन्नई रेल मार्ग पर है  गाणगापुर  स्टेशन
-पुणे-रायचुर मार्ग पर है गुलबर्गा स्टेशन और उसी से सटा है गाणगापूर स्टेशन

-भगवान दत्तात्रेय का जागृत स्थल गाणगापुर 
- यहां लगभग हर 4 कदम पर कोई न कोई मंदिर प्रतिष्ठापित है। जो किसी दीव्य शक्ति का अहसास करवाता है। -यहां पर भगवान दत्तात्रेय का जागृत क्षेत्र है। भगवान दत्तात्रेय जिनमें तीनों शक्तियां जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश समाई हुई हैं 

-यहां भगवान दत्तात्रेय का यह स्थल महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद अहमदनगर हाईवे पर आता है। 
-यहां पर भगवान दत्तात्रेय की एकमुखी मूर्ति, भगवान नृसिंह मंदिर आदि हैं। 
-यहां पर आने वाले श्रद्धालु भगवान दत्त की पादुका का पूजन भी प्रमुख तौर पर करते हैं। 
-मंदिर में हर समय दिंबरा दिगंबरा श्री पाद वल्लभ दिगंबरा के बोल गूंजते हैं। मान्यता है कि यहीं पर भगवान दत्तात्रेय ने अवतार लिया था। यहां आने वालों को भगवान दत्तात्रेय की जागृत अनुभूति यहां पर होती है।
-भगवान दत्तात्रेय के दूसरे अवतार श्री नरसिंह सरस्वती स्वामी से भी संबंधित है गाणगपुर 


-यहां निर्गुण मठ, कालेश्वर, संगम क्षेत्र देखने लायक है
-रोड और रेल मार्ग से गाणगापुर आ सकते हैं
-गुलबर्गा से गाणगापुर के लिए कर्नाटक राज्य परिवहन की बसें चलती हैं
-नजदीक रेलवे स्टेशन है गाणगापुर जो कि मुंबई-गुलबर्गा मार्ग पर है, वहां से बस या ऑटो से मंदिर आ सकते हैं
-नजदीकी एयरपोर्ट कालबुर्गी है जो कि गाणगापुर से 52 किलोमीटर दूर है
-महाराष्ट्र के लोग सोलापुर और अक्कलकोट से बस के जरिये आ सकते हैं 

-भगवान श्री दत्तात्रेय के बारे में - 
दत्तात्रेय भगवान को हिन्दू धर्म की त्रिवेणी कहा जाता है
-ब्राह्मण और श्रमणों में ही शुरुआत में भारत में दो धाराएं थी पहली वेद की और दूसरी तंत्र की। वेद और तंत्र में विरोध रहा है। वेद से वैष्णव और तंत्र से शैव सम्प्रदाय की उत्पत्ति मानी जाती है।

-भगवान दत्तात्रेय ने वेद और तंत्र मार्ग का विलय किया था। इसके अलावा ब्रह्म विद्या का प्रचार भी किया था। इस तरह उनमें तीनों ही धाराएं समाहित हो जाती है। उनके तीन शिष्य थे जो तीनों ही राजा थे। दो यौद्धा जाति से थे तो एक असुर जाति से।
-दत्तात्रेय को शिव का अवतार माना जाता है, लेकिन वैष्णवजन उन्हें विष्णु के अंशावतार के रूप में मानते हैं। 
मूलत: उन्होंने शैव, वैष्णव और शाक्त धर्म को एक करने का कार्य भी किया। उनके शिष्यों में भगवान परशुराम 
का भी नाम लिया जाता है। तीन धर्म (वैष्णव, शैव और शाक्त) के संगम स्थल के रूप में त्रिपुरा में उन्होंने लोगों 
को शिक्षा-दीक्षा दी।

-तंत्र से जुड़े होने के कारण दत्तात्रेय को नाथ परंपरा और संप्रदाय का अग्रज माना जाता है। इस नाथ संप्रदाय 
की भविष्य में अनेक शाखाएं निर्माण हुई। भगवान दत्तात्रेय नवनाथ संप्रदाय से संबोधित किया गया है।

गाणगापुर के लिए हमलोग अक्कलकोट से करीब शाम के 4.15 बजे निकले थे और 6.15 बजे शाम को  पहुंचे। वहां करीब डेढ़ घंटे घूमने फिरने और दर्शन करने के बाद 7.45 बजे वापस अक्कलकोट भक्त निवास के लिए निकले। 9 बजे रात को  हमलोग भक्त निवास पहुंचे। गाणगापुर में हम लोग श्री दत्त भगवान के मंदिर में तो गए तो लेकिन मुख्य मूर्ति के पास जा नहीं सके, क्योंकि श्रद्धालुओं की पहले से ही लंबी लाइन थी और हमलोगों को देर भी हो रही थी। पैसे देकर हमलोग जल्दी से दर्शन कर सकते थे लेकिन भगवान के यहां पैसे देकर दर्शन करना सही नहीं समझता हूं मैं। इसलिए बाहर से ही भगवान का आशीर्वाद लेकर हमलोग वापस अक्कलकोट के लिए निकल लिए। उसी रात हमलोग श्री स्वामी समर्थ मंदिर में दर्शन किए। दर्शन तुरंत हो गया। कोई भीड़भाड़ नहीं थी। इस तरह पहला दिन गाणगापुर और अक्कलकोट में बीता। 

((श्री स्वामी समर्थ मंदिर, अक्कलकोट,  Shri Swami Samarth Temple, Akkalkot

अक्कलकोट: (Akkalkot, Solapur)(Shree Swami Samarth Maharaj Samadhi sthal) के बारे में 

-महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में है
-श्री स्वामी समर्थ महाराज का समाधिस्थल मंदिर है यहां 
-श्री स्वामी समर्थ महाराज दत्त संप्रदाय के प्रमुख संत थे 
-श्री स्वामी समर्थ महाराज श्री दत्त जी के चौथे अवतार माने जाते है
-श्री दत्तात्रेय भगवान के अवतार माने जाते हैं श्री स्वामी समर्थ महाराज 
-हर गुरुवार को खास पूजा होती है 

-श्री स्वामी समर्थ महाराज को लेकर कई किंवदतियां प्रचलित है
-अचानक किसी जगह से अदृश्य होने और दूसरी जगह प्रकट होने को लेकर भी कई कहानियां हैं
-श्री स्वामी समर्थ महाराज को भक्तों की तकलीफों, परेशानियों को दूर करने वाला माना जाता है  
-माना जात है कि स्वामी आंध्रप्रदेश के श्री शैलयम क्षेत्र के कर्दळी वन से प्रकट हुए
- ऐसा कहते है. उसके बाद स्वामी जी ने आसेतु हिमाचल का भी भ्रमण किया
-1856  में स्वामी समर्थ अक्कलकोट के खंडोबा मंदिर में प्रकट हुए  स्वामी अक्कलकोट में 22 साल रहने के बाद 1878 में यहीं पर महासमाधि ली उन्होंने महाराज ऑफ अक्कलकोट के नाम से भी उन्हें जाना जाता है 





-स्वामी मंगळवेढा से पहली बार अक्कलकोट पहुंचे थे 
-1875 में जब महाराष्ट्र में बहुत भारी मात्रा में दुष्काल गिरा था तब क्रांतिकारक 
वासुदेव बळवंत फडके स्वामी समर्थ जी के दर्शन लेने वहाँ आये थे.
-स्वामी समर्थ महाराज अपने भक्तों को सुरक्षा का वचन देते हुए कहते थे  - " डर मत में तेरे साथ हुं  " 
-कहा जाता है कि कर्दली वन में वे तीनसौ वर्ष प्रगाढ समाधि अवस्था में थे । 
-सबसे पहले वे काशी में प्रकट हुए । 
-आगे कोलकाता जाकर उन्होंने कालीमाता का दर्शन किया
- इसके बाद गंगातट से अनेक स्थानों का भ्रमण करके वे गोदावरी तटपर आए । वहां से हैदराबाद होते हुए बारह वर्षोंतक वे मंगलवेढा में रहे । 
उसके बाद  पंढरपुर, मोहोळ, सोलापुर मार्ग से अक्कलकोट आए । और अंत तक वो अक्कलकोट में ही रहे 
-पुरी, बनारस, हरिद्वार, गिरनार, काठियाबाड़ और रामेश्वरम का भी उन्होंने भ्रमण किया
- उन्होंने अनेक चमत्कार किए । 
-जनजागृति का कार्य किया । 
-स्वामी समर्थ क्षण में अदृश्य होते थे तथा अचानक प्रकट भी होते थे । 
-स्वामी गिरनार पर्वतपर अदृश्य हुए तथा दूसरे ही क्षण आंबेजोगाई में प्रकट हुए ।
-हरिद्वार से काठियावाड के जीविक क्षेत्र स्थित नारायण सरोवर के बीचोबीच सहजासन में बैठे दिखाई दिए । 
उसके बाद भक्तों ने उन्हें पंढरपुर की भीमा नदी की बाढ में चलते हुए देखा ।
-1878 में स्वामी समर्थ ने अक्कलकोट में अपने पार्थिव शरीर का भले ही त्याग किया हो, किंतु ‘मै गया नहीं हू, हमेशा आपके साथ हूं,’’ उनका यह वचन भक्तों का आधार है ।

  
> 22 फरवरी 2020: 
यात्रा के दूसरे दिन यानी 22 फरवरी 2020 को अक्कलकोट में चाय-नास्ता करके करीब 9 बजे अगले पड़ाव के निकले। अगला पड़ाव में शामिल था-सोलापुर का फैक्ट्री चादर की दुकान, फिर शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, उसके बाद श्री तुलजा भवानी मंदिर और आखिरी में पंढ़रपुर के श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर के दर्शन। दोपहर 12.00 बजे सिद्धेश्वर मंदिर के दर्शन किए। 

(शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, सोलापुर, महाराष्ट्र (बाहर से); Shivyogi Siddheshwar Mandir, Solapur, Maharashtra
सिद्धेश्वर मंदिर, सोलापुर, महाराष्ट्र:  Siddheshwar, Solapur, Maharashtra के बारे में :
-यह शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता है 
-महाराष्ट्र के सोलापुर में है 
-सिद्धेश्वर मंदिर झील से घिरा एक रमणीय स्‍थल है
-यहां संत सिद्धेश्वर का समाधि मंदिर भी है 
-यहां भगवान श्री मल्लिकार्जुन, श्री सिद्धरामेश्‍वर, श्री शैलम, भगवान शिव और भगवान विष्णु की मूर्ति लगी हुई है। यह शहर के सबसे खुबसूरत और रमणीय  स्‍थलों में से एक है। इस मंदिर में जाने के लिए झील में तीन फाटक है जिनसे आप मंदिर में प्रवेश कर सकते है।
-मंदिर के पास ही एक मैदान है जहां आप शांति से  समय बिता सकते है। मंदिर में भगवान विठोबा और देवी रुक्मिणी की पूजा भी की जाती है।    














-सिद्धेश्वर या सिद्धरामेश्वर या सिद्धराम वीरशैव लिंगायत सम्रदाय के पाँच सन्तों  (या आचार्यों) में से एक आचार्य थे। 
-उन्होने वीरशैव लिंगायत सम्प्रदाय के विकास में महान योगदान किया। वे महान रहस्यवादी एवं कन्नड कवि थे।
-सिद्धेश्वर का जन्म महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ, उन्होंने अंतिम सांस भी सोलापुर में ली 
-कहा जाता है कि सिद्देश्वर ने 68 हजार वचनों की रचना की, जिसमें से आज भी 1379 मौजूद है 

(शिवयोगी सिद्देश्वर मंदिर रेप्लिका, सोलापुर; Shivyogi Siddheshwar Temple Replica, Solapur 
(श्री शिवयोगी सिद्देश्वर मंदिर (सोलापुर) के बारे में क्या कहते हैं श्रद्धालु

सिद्धेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद हमलोग करीब एक बजे महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर पहुंचे।  यहां दर्शन करने में करीब डेढ़ घंटे लगे। दर्शन करने से पहले पास लेना होता है। इसके लिए एक भी पैसा नहीं देना होता है। हालांकि, पैसे देकर जल्दी से दर्शन करने की सुविधा यहां है। माता भवानी का दूर से ही दर्शन करना होता है।

जब हमलोग सोलापुर से तुलजा भवानी के दर्शन के लिए निकले थे तो रास्ते में ही एक अच्छी जगह देखकर जहां पर पानी की सुविधा थी और छांव में बैठकर खाना बनाने और खाना खाने की भी सुविधा थी, वहां पर हमारे साथ जा रहे रसोईए अपने सामान के साथ उतरे और हमलोगों के लिए खाने की तैयारी में जुट गए थे।  

हम लोग तुलजा भवानी के दर्शन करके वापस वहां पहुंचे जहां हमारे रसोईए हमारी भूख मिटाने की तैयारी में लगे थे। वहां से शाम 4 बजे  खाना खाकर हमलोग साढ़े 4 बजे पंढरपुर के लिए निकले। पंढरपुर सोलापुर जिले में है। 


तुलजापुर: (Tuljapur, Osmanabad) के बारे में: 
-श्री छत्रपति शिवाजी महाराज से भला कौन परिचित नहीं होगा। उन्हीं से संबंधित है तुलजापुर...
-महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में है
-हिन्दुओं की देवी मां तुलजा भवानी की प्रतिमा है यहां 
-छत्रपति शिवाजी महाराज की कुल देवी हैं मां तुलजा भवानी
-हर युद्द से पहले छत्रपति शिवाजी मां का आशार्वाद लेने आते थे
-मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी माँ ने तलवार प्रदान की थी
-आज भी महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के कई निवासियों की 
कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं।
-मां तुलजा भवानी को भक्त प्यार से आई (मां) अंबाबाई, जगदंबा, तुकाई पुकारते हैं  
-भक्त मां की कृपा पाने के लिए आते हैं और मां अपने भक्तों को हर बुराई
 जैसे स्वार्थ, अहं, गुस्सा, नफरत आदि से बचाती हैं 
-यह मंदिर महाराष्ट्र के प्राचीन दंडकारण्य वनक्षेत्र में स्थित यमुनांचल पर्वत पर स्थित है
- ऐसी माना जाता है कि इसमें स्थित तुलजा भवानी माता की मूर्ति स्वयंभू है।
-इस मूर्ति की एक और खास बात यह है कि यह मंदिर में स्थायी 
रूप से स्थापित न होकर ‘चलायमान’ है। 
-साल में तीन बार इस प्रतिमा के साथ प्रभु महादेव, श्रीयंत्र तथा 
खंडरदेव की भी प्रदक्षिणापथ पर परिक्रमा करवाई जाती है। 














-तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख इक्यावन शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है। नवरात्रि में यहां पर आम दिनों के मुकाबले ज्यादा भक्त आते हैं 
-मार्कंडेय पुराण के ‘दुर्गा सप्तशती’ नामक अध्याय में मां की प्रतिमा का उल्लेख है
-भगवद्‍ गीता में भी  इस प्रतिमा का जिक्र है
-मंदिर में मां तुलजाभवानी को कोई स्पर्श नहीं कर सकता है
- तुलजा भवानी की स्वयंभू प्रतिमा :
शालीग्राम पत्थर से निर्मित यह मूर्ति वस्तुतः स्वयंभू मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति के आठ हाथ  हैं, जिनमें से एक हाथ से उन्होंने दैत्य के बाल पकड़े हैं और दूसरे हाथों से वे दैत्य पर त्रिशूल से वार कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि माता महिषासुर राक्षस का वध कर रही हैं। माता की दाहिनी ओर उनका वाहन सिंह स्थापित है। इस प्रतिमा के समीप ऋषि मार्कंडेय की प्रतिमा स्थापित है, जो पुराण पढ़ने की मुद्रा में है। माता के आठों हाथों में चक्र, गदा, त्रिशूल, अंकुश, धनुष औ पाश आदि शस्त्र सुसज्जित हैं।

ठहरने का इंतजाम: 
यहाँ पर तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम की व्यवस्था मंदिर की प्रबंधन समिति के हाथों में है। मंदिर की अपनी धर्मशाला है, जो यात्रियों के लिए निःशुल्क है। परिसर के बाहर भी कई निजी होटल और धर्मशालाएँ हैं।

कैसे पहुँचें?
-तुलजापुर नजदीकी रेलवे स्टेशन, नजदीकी हवाई अड्डा से बस के जरिये आ सकते हैं
- दक्षिण यानी आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु से आने वाले 
यात्री नालदुर्ग तक आसानी से सड़क मार्ग द्वारा आ सकते हैं। 
-उत्तरी और पश्चिमी राज्यों से आने वाले तीर्थयात्री सोलापुर के 
रास्ते तुलजापुर तक आ सकते हैं। 
-जबकि पूर्वी राज्यों जैसे बिहार से आने वाले यात्री 
नागपुर या लातूर के रास्ते यहाँ आ सकते हैं।
-उस्मानाबाद जिला क्वार्टर से तुलजापुर करीब 23 किलोमीटर जबकि 
लातुर से 77 किलोमीटर है। 

रेलमार्ग- तीर्थयात्री सोलापुर तक रेल से आ सकते हैं जो कि तुलजापुर से केवल 44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

वायुमार्ग
तुलजापुर तक आने के लिए यहाँ से सबसे करीबी हवाई अड्डा पुणे और हैदराबाद हैं, जहाँ से बस या निजी वाहन द्वारा इस स्थान तक पहुँचा जा सकता है।

पंढरपुर में रात्रि विश्राम और श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर में दर्शन किए। तुलजापुर से पंढरपुर करीब रात 7.20 बजे पहुंचे। वहां सबसे पहले हमलोग एक अच्छे से लॉज में ठहरे। वहां पर हमारे रसोईए खाना बनाने में जुट गए जबकि हमलोग मंदिर के दर्शन की तैयारी में। जहां हमलोग रुके थे वहीं से कुछ दूर पर मंदिर था। यहां दर्शन करने में करीब तीन घंटे लग गए। रात 8.00 से 11.00 बजे तक दर्शन किए। हालांकि पैसे देकर जल्दी से दर्शन किया जा सकता था।  

(श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर: Shri Vittal Rukmini Mandir, Pandharpur, Maharashtra  

श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर,  पंढरपुर: Pandharpur के बारे में 
-महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में है
-यह भीमा नदी (घुमावदार बहाव के कारण यहाँ चंद्रभागा कहलाती है) के तट पर है
- सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहां साल भर करोडों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं।
-भगवान विष्णु के अवतार बिठोबा और उनकी पत्नी रुक्मिणी के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं।
-पंढरपुर तीर्थ की स्थापना 11वीं शताब्दी में हुई थी। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों द्वारा कराया गया था।








-यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है। 
-मंदिर में विट्ठल और रुक्मिणी की अलग अलग मूर्ति है। श्रद्धालु उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं। 
-मंदिर में एक खास बात है, मुख्य मूर्ति तक जाने वाले मंदिर परिसर में बने रास्ते के किनारे 
महिला और पुरूष संतों का संक्षेप में परिचय देना, साथ ही मंदिर के बारे में भी परिचय 
दिया हुआ है। मराठी भाषा में परिचय दिया हुआ है। 
-यहां मोबाइल ले जाना सख्त माना है। मोबाइल के साथ पकड़े जाने पर 500 रुपए का 
जुर्माना लगता है। 
-मंदिर के आसपास सुरक्षा का चौक-चौबंद इंतजाम रहता है। 

-पंढरपुर के विठोबा मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। यहां 
भक्तराज पुंडलिक का स्मारक बना हुआ है। 
-मुख्य मंदिर
श्री विट्ठल मंदिर यहाँ का मुख्य मंदिर है। यह मंदिर बहुत विशाल है। निज मंदिर में श्रीपुण्डरीनाथ कमर पर हाथ रखे खड़े हैं। उसी घेरे में ही रुक्मिणीजी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है।
-श्री विट्ठल मंदिर यहां का मुख्य मंदिर है।
-यहां सबसे ज्यादा श्रद्धालु आषाढ़ के महीने में फिर क्रमश: कार्तिक, माघ और श्रावण महीने में एकत्रित होते हैं। 
-ऐसी मान्यता है कि ये यात्राएं पिछले 800 सालों से लगातार आयोजित की जाती रही हैं।

-श्रीकृष्ण भक्त पुंडलिक माता-पिता के परम सेवक थे। एक दिन वे माता-पिता की सेवा में लगे थे, तभी श्रीकृष्ण उन्हें दर्शन देने के लिए द्वार पर पधारे। लेकिन पुंडरिक उस वक्त पिता के चरण दबाते रहे। उस वक्त भगवान को खड़े होने के लिए उन्होंने ईंट सरका दी किंतु वे उठे नहीं। भगवान कमर पर हाथ रखे ईंट पर खड़े रहे इसीलिए निज मंदिर में भगवान की मूर्ति कमर पर हाथ रखे खड़े हैं।

-यहां भगवान श्रीकृष्ण विठोबा के रूप में हैं जिन्होंने भक्त पुंडलिक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था इसीलिए इनका नाम 'विठोबा' हो गया।

-पंढरपुर की यात्रा आजकल आषाढ़ में और कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को वारकरी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। प्रत्येक वर्ष देवशयनी एकादशी के मौके पर पंढरपुर में लाखों लोग भगवान विट्ठल और रुक्मिणी की महापूजा देखने के लिए एकत्रित होते हैं।

- भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-डिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर लोग पैदल चलकर पहुंचते हैं। इस यात्रा क्रम में कुछ लोग आलंदी में जमा होते हैं और पुणे तथा जेजूरी होते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं। इनको ज्ञानदेव माउली की डिंडी के नाम से दिंडी जाना जाता है।

-सोलापुर से  61 किलोमीटर पश्चिम की ओर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है।
-प्रसिद्धि हिन्दू तीर्थ स्थल
-कब जाएँ पंढरपुर में ग्रीष्म और शीत दोनों ही मौसम का पूरा प्रभाव रहता है। यहां कभी भी आया जा सकता है।
-कैसे पहुँचें यहाँ पहुँचने के लिए रेलमार्ग, सड़कमार्ग और वायुमार्ग तीनों की व्यवस्था है।
-हवाई अड्डा पुणे, मुम्बई
-रेलवे स्टेशन कुर्दुवादि
-क्या देखें 'विट्ठल मंदिर', 'रुक्मिणीनाथ मंदिर', 'पुंडलिक मंदिर', 'लखुबाई मंदिर', 'पद्मावती मंदिर', 'अंबाबाई मंदिर' और 'लखुबाई मंदिर' आदि।

आसपास के दर्शनीय स्थल
श्री विट्ठल मंदिर के साथ ही यात्री यहां रुक्मिणीनाथ मंदिर, पुंडलिक मंदिर, लखुबाई मंदिर, अंबाबाई मंदिर, व्यास मंदिर, त्र्यंबकेश्वर मंदिर, पंचमुखी मारुति मंदिर, कालभैरव मंदिर और शकांबरी मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, काला मारुति मंदिर, गोपालकृष्ण मंदिर और श्रीधर स्वामी समाधि मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। पंढरपुर के जो देवी मंदिर प्रसिद्ध हैं, उनमें 'पद्मावती', 'अंबाबाई' और 'लखुबाई' सबसे प्रसिद्ध हैं। 
चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। 3 मील दूर एक गाँव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है, जिसे भगवान ने चलाया था।

कैसे पहुंचे
रेल यात्रा - पंढरपुर, कुर्दुवादि रेलवे जंक्शन से जुड़ा हुआ है।
कुर्दुवादि जंक्शन से होकर लातुर एक्सप्रेस, मुंबई एक्सप्रेस, हुसैनसागर एक्सप्रेस, सिद्धेश्वर एक्सप्रेस समेत कई ट्रेने रोजाना मुंबई जाती हैं। पंढरपुर से भी पुणे के रास्ते मुंबई के लिए रेल चलती है।

सड़क मार्ग - महाराष्ट्र के कई शहरों से पंढरपुर सड़क परिवहन के जरिए जुड़ा है। इसके अलावा उत्तरी कर्नाटक और उत्तर-पश्चिम आंध्र प्रदेश से भी प्रतिदिन यहां के लिए बसें चलती हैं।

वायु मार्ग - यहाँ का निकटतम घरेलू हवाईअड्डा पुणे है, जो लगभग 245 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुंबई में स्थित है।

प्रमुख शहरों से दूरी
संगोला से पंढरपुर की दूरी 32 किलोमीटर है।
कुर्दुवादि जंक्शन की दूरी 52 किलोमीटर है।
इसके अतिरिक्त शोलापुर 72 किलोमीटर, 
मिराज 128 किलोमीटर और
अहमदनगर 196 किलोमीटर दूर स्थित हैं।


>23 फरवरी 2020:
सफर के तीसरे और आखिरी दिन हमलोग पंढरपुर से नास्ता करके और चाय पीकर सुबह 9.00 बजे पुणे होते हुए वापस अपने घर नालासोपारा के लिए निकले। पंढरपुर-पुणे मार्ग पर पुरंदर तालुका के दौंडज गांव में श्री भैरव नाथ मंदिर के पास दोपहर 2 बजे पहुंचे। मंदिर में रुककर खाना बनाने और खाना खाने का अच्छा इंतजाम था। ड्राइवर और टूर प्रबंधकों ने मंदिर के पूजारी और प्रबंधक से मंदिर में खाना बनाने और खाना खाने की अनुमति मांगी। मंदिर प्रबंधन ने इसकी अनुमति दे दी। हमलोगों ने भैरवनाथ मंदिर की आरती में भी हिस्सा लिया। 

(श्री भैरवनाथ मंदिर, दौंडज, कदमबस्ती, पुणे; Shri BhairavNath Mandir, Daundaj, Pune







शाम 4 बजे हम लोग श्रीभैरव नाथ मंदिर से निकले और साढ़े 5 बजे पुणे के नजदीक प्रति तिरुपति बालाजी पहुंचे। वहां आधे घंटे में भगवान वेंकटेश समेत सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद लिया। उसके बाद सीधे हम लोग नालासोपारा के लिए निकले। 

प्रति बालाजी मंदिर, केतकावळे, पुणे; Prati Balaji Mandir, Ketkawle, Pune के बारे में। 
तिरुपति बालाजी मंदिर, पुणे; Tirupati Balaji Temple, Pune
-पुणे के केतकावळे गांव में स्थित प्रति बालाजी मंदिर तिरुपति स्थित असली बालाजी मंदिर (तिरुमाला वेंकटेश्वर  मंदिर) का नकल है। 
-प्रति बालाजी मंदिर का हर चीज जैसे मूर्ति, गर्भगृह, लकड़ी का काम, पूजारी तिरुमाला के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर के जैसा है। 
-यहां आने वाले श्रद्धालु असमंजस में पड़ जाते हैं कि वो असली तिरुपति बालाजी मंदिर में है या फिर उसकी प्रतिकृति मंदिर में।  
-हिन्दुओं का पवित्र धर्मस्थल है


-पुणे-बंगलुरू मार्ग पर है 
-पुणे से करीब 50-60 किलोमीटर की दूरी पर नारायणपुर में सह्याद्रि पर्वत की खूबसूरत वादी में स्थित है
-वेंकटेश्वरा चैरिटेबल ट्रस्ट ने 1996-2003 के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया था
-V H Group ने इसके निर्माण पर 27 करोड़ रुपए खर्च किए थे
-यहां गाड़ियों की पार्किंग की अच्छी व्यवस्था है
-काफी खूबसूरत मंदिर है और इसके निर्माण में या तो संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है या फिर काले पत्थर का 
-राम नवमी, चैत्र पौर्णामी, विजयादशमी, वैकुंठ एकादशी, कानू पोंगल, गुडी पाडवा, तमिल नया साल, दीपावली के मौके पर यहां ज्यादा भीड़ होती है। यहां पर काफी धूमधाम से इन त्योहारों को मनाया जाता है। खूबसूरत सजावट की जाती है। 

कैसे पहुंचे:

-ट्रेन से पुणे स्टेशन उतरकर कैब, टैक्सी बगैरह से प्रति बालाजी आ सकते हैं
-नजदीकी एयरपोर्ट पुणे है
-सड़क मार्ग से आना चाहें तो पुणे-सोलापुर, पुणे-बंगलुरू मार्ग के जरिये आ सकते हैं

-तिरुमाला वेंकटेश्वर  मंदिर (असली तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में): (Source: वेबदुनिया)
प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था। यह तालाब  तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिर‍ि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।

वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ाई की थी। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष  की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।

वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहाँ पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं, जहाँ पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहाँ आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

मंदिर का इतिहास -
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँच‍ीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।

आई. वेंकटेश्वर राव|कौशल्या सुप्रजा राम। पूर्व संध्या प्रवर्तते, उठिस्ता। नरसारदुला। तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान बालाजी के मंदिर की महत्ता कौन नहीं जानता। इस बार धर्मयात्रा में वेबदुनिया आपके लिए लेकर आया है तिरुपति बालाजी मंदिर। भगवान व्यंकटेश स्वामी को संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वामी माना जाता है। हर साल करोड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। साल के बारह महीनों में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब यहाँ वेंकटेश्वरस्वामी के दर्शन करने के लिए भक्तों का ताँता न लगा हो। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान भारत के
सबसे अधिक तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही इसे विश्व के सर्वाधिक धनी धार्मिक स्थानों में से भी एक माना जाता है। फोटो गैलरी देखने के लिए यहाँ क्लिक करें मुख्य मंदिर - श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं  चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा  मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर  के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कल‍ियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।

>24 फरवरी 2020:
24 फरवरी 2020 को सुबह 2 बजे नालासोपारा के अपने घर पहुंचे। इस तरह से करीब 1500 किलोमीटर की दूरी कर 76 घंटे में हम लोग वापस अपने घर पहुंचे। बस में करीब 40 लोग थे। जाते समय सबलोग चुपचाप जा रहे थे क्योंकि एक दूसरे से परिचित नहीं थे। लेकिन वापसी के समय सबलोग एक परिवार जैसा आनंद मनाते हुए आए। एक व्यक्ति ने सफर में ही शादी की सालगिरह मनाई तो दूसरे एक व्यक्ति ने अपना जन्मदिन मनाया। इस तरह एक और सफर आनंद के साथ खत्म हुआ। आगे भी सफर जारी रहेगा। 
(शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर (अंदर से); Shivyogi Siddheshwar Mandir, Solapur, Maharashtra
(शिवयोगी सिद्धेश्वर मंदिर, सोलापुर, महाराष्ट्र (बाहर से); Shivyogi Siddheshwar Mandir, Solapur, Maharashtra
(श्री विट्ठल रुक्मिणी मंदिर: Shri Vittal Rukmini Mandir, Pandharpur, Maharashtra
(श्री भैरवनाथ मंदिर, दौंडज, कदमबस्ती, पुणे; Shri BhairavNath Mandir, Daundaj, Pune
(शिवयोगी सिद्देश्वर मंदिर रेप्लिका, सोलापुर; Shivyogi Siddheshwar Temple Replica, Solapur 
(तुलजा भवानी मंदिर, तुलजापुर, उस्मानाबाद, महाराष्ट्र ; Tulja Bhavani Mandir, Tuljapur, Maharashtra
(श्री शिवयोगी सिद्देश्वर मंदिर (सोलापुर) के बारे में क्या कहते हैं श्रद्धालु
(भक्त निवास, अक्कलकोट, महाराष्ट्र; Bhakt Niwas, Akkalkot, Maharashtra
((श्री स्वामी समर्थ मंदिर, अक्कलकोट,  Shri Swami Samarth Temple, Akkalkot
(श्री दत्तात्रेय भगवान का मंदिर, गाणगापुर, Shri Duttatreya Temple, Ganagapur, Kalburgi, Karnataka
( इच्छापूर्ति औदुंबर वृक्ष, गाणगापुर,  Holy Audumbar Tree, Ganagapur, Kalburgi, Karnatka
((भीमा-अमरजा संगम, गाणगापुर, कर्नाटक Prayagraj of Ganagapur, Kalburgi, Karnataka
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(Mumba Devi Mandir, Mumbai; मुंबा देवी मंदिर, मुंबई
(Akloli Hot Springs, Vajreshwari, Maharashtra; What Local People says)
(Vajreshwari Mandir, Vasai, Palghar, Maharashtra
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(Rajodi Beach, Nalasopara, Maharashtra
((Chhatrapati Shivaji Maharaj Vastu Sangrahalaya, Mumbai
((Gateway Of India on Sunday Morning
((The Fishing Community of Arnala Bunder, Virar, Maharashtra
((Arnala Fort: Attarctive Tourist Spot: How to reach
((Nasik to Igatpuri; Everywhere Greenary
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((Igatpuri Station, Maharashtra
(Patna Junction, Bihar, India
(Rice Fields of Bihar
(Gaya Railway Junction, Bihar, India
((Bodh stupa, Nalasopara (west), Maharashtra
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 3; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 2; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 1; Amokhar, Bihar
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((Pachu Bandar, Vasai, Maharashtra, पाचू बंदर, वसई, महाराष्ट्र
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((Vasai Court, Maharashtra; वसई कोर्ट, महाराष्ट्र
((Vasai station to Vasai Court & Vasai Fort by Auto; वसई स्टेशन से वसई फोर्ट और वसई फोर्ट ऑटो से)
((Vasai Fort, Maharashtra; वसई किला, महाराष्ट्र
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