गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

Valmikinagar, Tourist Attraction, Bihar,बिहार के सैलानियों को एक और सौगात

-Valmikinagar, Tourist Attraction, Bihar,बिहार के सैलानियों को एक और सौगात

-गिरिजात्मज मंदिर, लेण्याद्रि, अष्टविनायक, पुणे, Girijatmaj Temple,Lenyadri, Ashtavinayak,Pune 

-सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक, अष्टविनायक, अहमदनगर, Siddhivinayak Temple,Siddhatek, Ashtavinayak Ahmednagar

-मयुरेश्वर मंदिर, अष्टविनायक, मोरगांव, पुणे, Mayureshwar, Morgaon, Ashtavinayak, Pune

-जलकुंभी पर जलते  तैरते दीये, आलंदी, Jalakumbhee Par Jalte Tairte Deeye, Alandi    

-संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर,आलंदी, Sant Dnyaneshwar Samadhi Mandir, Alandi

-संत तुकाराम समाधि मंदिर, देहू, Sant Tukaram Samadhi Mandir, Dehu

-संत तुकाराम मुख्य मंदिर,  देहू, Sant Tukaram Maharaj Mukhya Mandir,Dehu  

-अष्टविनायक, वरदविनायक मंदिर,महड, Ashtvinayaka, Varadavinayak Temple, Mahad, Raigad

-मालशेज घाट, महाराष्ट्र, टूरिस्ट, रंगारंग इंडिया, Malshej Ghat, Maharashtra, Tourist Attraction, RangaRang India

-अष्टविनायक, बल्लालेश्वर मंदिर,पाली, रायगड, Ashtavinayaka, Ballaleshwar Temple,Pali, Raigad

-अष्टविनायक दर्शन करके मालशेज घाट में भोजन...मतलब, आनंद ही आनंद 

-अजुबा अजंता गुफा (मराठी में-अजिंठा लेणी), अद्भुत औरंगाबाद के सफर का आनंद

-बाबा साहब को औरंगाबाद में कॉलेज बनाने के लिए जमीन किसने दी? 

-औरंगाबाद की पन चक्की ( Water Mill); इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना

-अजुबा अजंता गुफा (मराठी में-अजिंठा लेणी); Ajanta, Tourist Attraction, RangaRang India 

-कुंभेरेश्वर महादेव मंदिर, पडघा, ठाणे, महाराष्ट्र

-ग्रेट अन्नपूर्णा, गेस्ट हाउस, लॉजिंग, बोर्डिंग, खुलताबाद, औरंगाबाद, एलोरा, महाराष्ट्र

-खुलताबाद से दौलताबाद (देवगिरि), औरंगाबाद, महाराष्ट्र

-दौलताबाद (देवगिरि) किला, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज संग्रहालय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-बीबी का मकबरा, दक्कन का ताज, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-दौलताबाद के दुलारे, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-पेड़ एक, जड़ अनेक, खुलताबाद, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-अजंता के 'आतंक'!

-अजंता के पास सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-घृष्णेश्वर मन्दिर, ज्योतिर्लिंग, एलोरा, औरंगाबाद, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया

-शनि मंदिर, वाघोली, नालासोपारा, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया, टूरिज्म

-निर्मल, शंकराचार्य समाधि मंदिर, हनुमान मंदिर, चर्च, नालासोपारा, पालघर, महाराष्ट्र, रंगारंग इंडिया 

-शंकराचार्य समाधि मंदिर, निर्मल, नालासोपारा, महाराष्ट्र

सुगन्धित, स्वादिष्ट, स्वस्थ, स्वच्छ, सुरम्य साईनगरी शिर्डी का सफरनामा

-साईनगरी शिर्डी का सौंदर्य देखिये;  Shirdi, Maharashtra, Tourist Attraction, RangaRang India

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-शुभारंभ शिर्डी, Shirdi Ki Subah, Tourist Attraction, Maharashtra, RangaRang India

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-Santosi Mata Temple, Ashagad, Dahanu

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(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 3; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 2; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 1; Amokhar, Bihar
(Girgaon Beach, Mumbai in Evening: गिरगांव चौपाटी, मुंबई शाम का नजारा 
(Antilia, Mumbai: एंटीलिया, मुंबई
((Jaslok Hospital, Mumbai: जसलोक अस्पताल, मुंबई
(Girgaum Chowpatty, Mumbai@7pm, गिरगांव चौपाटी, मुंबई
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((Chimaji Appa Memorial, Vasai; चिमाजी अप्पा स्मारक, वसई, महाराष्ट्र
((Vasai Court, Maharashtra; वसई कोर्ट, महाराष्ट्र
((Vasai station to Vasai Court & Vasai Fort by Auto; वसई स्टेशन से वसई फोर्ट और वसई फोर्ट ऑटो से)
((Vasai Fort, Maharashtra; वसई किला, महाराष्ट्र
((Vasai Road Station (BSR);वसई रोड स्टेशन 








सोमवार, 20 दिसंबर 2021

अष्टविनायक दर्शन की अनूठी दास्तान, जब अजनबी ने दिलाया अपनेपन का अहसास

बायें से ज्योति, चित्राक्ष, मैं (रजनीश कांत), संतोष सिंह, भव्य
(तस्वीर साभार- ज्योति)

आदमी मुसाफिर है, आता है जाता है 

आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है,

आदमी मुसाफिर है ....

ऐसी ही यादें मेरे जैसे बिना हमसफर के अक्सर सफर करने वालों को रास्ते में तीन दिनों की अष्टविनायक यात्रा के दौरान एक अजनबी ने छोड़ी।   



जी हां, मैं घूमने का दीवाना हूं। मुंबई से सटे नालासोपारा में मैं रहता हूं। मेरे नजदीक में शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर है। मंदिर से अक्सर मुस्कान नामक टुर्स एवं ट्रैवल्स अलग अलग जगहों के लिए सैर-सपाटे का आयोजन करता है। कभी एक दिन के लिए, कभी दो दिनों के लिए, कभी तीन दिनों के लिए और कभी उससे भी ज्यादा दिनों के लिए।  

मुस्कान नामक टुर्स एवं ट्रैवल्स अपनी बस से ही यात्रा के लिए अलग-अलग जगह लेकर जाता है। ज्यादातर धार्मिक यात्रा का आयोजन करता है। इसमें आसपास के लोग अपने परिवार के साथ घूमने, देवी-देवता, संतों का दर्शन के लिए निकलते हैं। अलग अलग जगहों के लिए अलग अलग किराया तय होता है। किराए में रहना, खाना, चाय, नाश्ता सब शामिल रहता है। कम पैसों वालों के लिए अलग अलग जगह घूमने का बेहतर विकल्प उपलब्ध कराता है मुस्कान टुर्स एवं ट्रैवल्स। यही वजह है कि स्थानीय लोग काफी तादाद में मुस्कान टुर्स एवं ट्रैवल्स के साथ घूमने के लिए जाते हैं। 

मैं हमेशा बस में अजनबियों के बीच एकमात्र अकेला व्यक्ति रहता हूं। मैं करीब पिछले सात सालों से मुस्कान टुर्स एवं ट्रैवल्स की बस से घूमने जा रहा हूं, लेकिन अभी तक उस बस में सवार किसी अंजान शख्स के साथ मैं कभी भी घुला-मिला नहीं यानी कभी अपनापन महसूस नहीं किया। अजनबी की तरह गया, अजनबी की तरह आया। मैं अपने रास्ते पर रहता, बाकी सब लोग अपने अपने परिवार के साथ अपने रास्ते पर। 

मैं अपने मोबाइल से फोटो, वीडियो बनाने में व्यस्त रहता, बाकी अपने अपने परिवार के साथ। लेकिन, 19,20,21 दिसंबर 2021 की तीन दिनों के अष्टविनायक दर्शन के दौरान एक अंजान शख्स के साथ अपनों जैसा घुल-मिल गया। यात्रा के दौरान किसी अंजान ने अपनापन जैसा अहसास दिलाया। अपनों जैसा भरोसा किया और अपनों जैसा भरोसा दिलाया। जिस तरह से लोग आपसे में अपनों के साथ एक-दूसरे का केयर करते हैं, ठीक उसी तरह का। 


अष्टटविनायक मंदिरों के बारे में जान लीजिए। महाराष्ट्र में अलग अलग जगहों पर आठ स्वयंभू भगवान गणेश की मूर्तियों के मंदिरों का समूह है अष्टविनायक मंदिर। पुणे जिले के 20 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर के दायरे में सभी आठ मंदिर हैं। दो मंदिर रायगड जिले में, एक अहमदनगर जिले में और बाकी 5 पुणे जिले में है। इस यात्रा के दौरान अष्टविनायक मंदिर के अलावा हमलोग देहू  के संत तुकाराम मुख्य मंदिर और समाधि मंदिर भी गए। साथ ही आलंदी में संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर के भी दर्शन किए। 

अगर आप मुंबई, ठाणे, नालासोपारा, वसई, विरार से अष्टविनायक दर्शन के लिए निकलते हैं तो इसके दो रास्ते हैं। एक मालशेज घाट से होकर और दूसरा मुंबई-पुणे हाईवे के नजदीक खोपोली-पेण सड़क मार्ग से होकर। अगर मालशेज घाट से होकर जाएंगे तो सबसे पहले लेण्याद्रि का गिरिजात्मज मंदिर मिलेगा और सबसे आखिरी में बल्लालेश्वर मंदिर। लेकिन, पनवेल-पेण हाईवे से जाएंगे, तो सबसे पहले बल्लालेश्वर मंदिर और आखिर भी लेण्याद्रि के गिरिजात्मज मंदिर का दर्शन होगा। 

हालांकि, मैं एक बार पहले भी मुस्कान टुर्स एवं ट्रैवल्स के साथ अष्टविनायक दर्शन कर चूका हूं। तब मैंने सबसे पहले  गिरिजात्मज मंदिर के दर्शन किए थे और सबसे बाद में बल्लालेश्वर मंदिर का दर्शन। लेकिन, 19,20,21 नवंबर 2021 की यात्रा के दौरान सबसे पहले बल्लालेश्वर मंदिर के दर्शन किए और सबसे बाद में गिरिजात्मज मंदिर के। 

(अष्टविनायक, देहु, आळंदी, जेजुरी की यात्रा- 3 दिन, प्रति व्यक्ति चार्ज 2000 रु. (खाना, रहना, चाय, नाश्ता शामिल)

तो, 19,20 और 21 नवंबर 2021 को अष्टविनायक यात्रा के दौरान मेरे साथ मेरे खास मित्र और मेरी ही हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले एडवोकेट संतोष सिंह अपने बेटे भव्य सिंह (छठी क्लास का छात्र) के साथ थे। मैं पहली बार अपने जान-पहचान वाले के साथ यात्रा पर निकल रहा था। 19 नवंबर को साई मंदिर के प्रांगण से सुबह 5 बजे सफर के लिए बस से निकलना था। हम तीनों लोग (मैं, संतोष सिंह और भव्य) अपनी बिल्डिंग से करीब साढ़े चार बजे सुबह ही बस पकड़ने के लिए साई मंदिर के लिए निकल चुके थे। 





सुबह के पांच बज गए थे, लेकिन बस का अभी तक कोई पता नहीं था। इसी बीच, बस से सफर करने वाले ज्यादातर लोग मंदिर प्रांगण में पहुंच चुके थे। सब लोग बस का इंतजार कर रहे थे। मंदिर प्रांगण में बहुत सारे लोग वहां लगी कुर्सियों पर बैठे थे। कुछ लोग मंदिर प्रांगण के गेट पर ही खड़े होकर बस का इंतजार कर रहे थे।  मैं, संतोष सिंह और भव्य भी गेट पर ही खड़े थे। 

तभी मेरी नजर हमसे कुछ ही दूर पर कुर्सी पर बैठे एक लड़के पर गई। यह लड़का भव्य की हमउम्र दिख रहा था। भव्य थोड़ा संकोची किस्म का है। मैंने उस लड़के की तरफ इशारा करते हुए भव्य को उसके पास जाकर बैठने और उससे दोस्ती करने को कहा। मेरा मानना है कि सफर का आनंद लेने के लिए हमउम्र और एक जैसे सोच वाले साथ हों, तो सफर का आनंद ही कुछ और होता है। 

भव्य, उस लड़के की बगल वाली खाली कुर्सी पर जाकर बैठ तो गया, लेकिन उस अंजान लड़के की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाए बिना ही वहां से वापस मेरे और अपने पापा संतोष सिंह के बगल में आकर खड़ा हो गया। हालांकि, भव्य ने उस अंजान लड़के की तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया, लेकिन उस लड़के ने तुरंत ही खुद ही भव्य के साथ दोस्ती की पहल की। 

भव्य मंदिर के गेट पर लगे सफर से जुड़े बोर्ड देख रहा था, तभी वहां पर वह अंजान सा लड़का भव्य के पास गया और उससे जान-पहचान बढ़ाने लगा। भव्य अभी भी उस लड़के के साथ दोस्ती करने को तैयार नहीं दिख रहा था। तभी दोनों भव्य और अंजान लड़का आपस में बातचीत करते हुए हमारे पास आ गया। वो आपस में बात करते हुए ही आए। मैंने भव्य से पूछा कि तुमने अपना नाम उस लड़के को बताया, तो भव्य ना में जवाब दिया।   

मैंने ही उस लड़के से नाम पूछ लिया। उसने अपने नाम चित्राक्ष बताया। फिर भव्य ने भी अपना नाम चित्राक्ष को बताया। इस तरह से दोनों में परिचय हुआ। दोनों एक तरह से सफर शुरू होने से पहले दोस्त बन गए। चित्राक्ष सातवीं का छात्र है और भव्य छठी का, इसलिए दोनों में सामान्य बातचीत शुरू हो गई। दोनों स्कूल, अपनी हाउसिंग सोसायटी, हॉबी बगैरह से जुड़ी बातों की चर्चा करने लगे। 

चित्राक्ष अपनी मम्मी ज्योति के साथ अष्टविनायक के दर्शन के लिए जा रहा था। उसी ने बताया कि वो अपनी मम्मी के साथ जा रहा है। बाकी लोग भी अपने अपने परिवार के साथ सफर पर जा रहे थे। जब भव्य और चित्राक्ष हमारे पास बातचीत कर रहे थे, तभी कुछ दूर कुर्सी पर बैठीं ज्योति भी हमारे पास आ गईं। 

इसी समय बस भी मंदिर के गेट के सामने आकर खड़ी हो गई। जो बस सुबह 5 बजे सफर के लिए निकलने वाली थी, उसे निकलते निकलते पौने छह बज गए। बस में सबके लिए सीट आवंटित थी। मुझे संतोष सिंह, भव्य बस में सबसे पिछली सीट आवंटित हुई थी। बस दो-दो सीट वाली थी, लेकिन पिछली सीट पर 5-6 लोग बैठ सकते थे। संयोग से चित्राक्ष और उसकी मां ज्योति को भी पीछे वाली सीट ही आवंटित हुई थी। 

नए नए दोस्त बने चित्राक्ष और भव्य खिड़की के पास साथ साथ बैठना चाह रहे थे, लेकिन ऐसा संभव नहीं था। पिछली सीट से आगे की सीट खाली थी। इस सीट पर दो लोग बैठ सकते थे। भव्य और चित्राक्ष दोनों उसी सीट पर बैठ गए। दोनों अपने अपने मोबाइल और अपनी बातचीत में मशगूल हो गए। दोनों थोड़ी थोड़ी देर पर सीट बदलते रहते थे, खिड़की के किनारे कभी भव्य बैठता था, कभी चित्राक्ष। बाद में भव्य ने हमें बताया कि उन दोनों ने पहले ही तय कर लिया था कि दोनों आधे आधे घंटे खिड़की का पास बैठेंगे।     

उधर, बच्चे आपस पूरी तरह से घूल-मिल रहे थे, लेकिन पिछली सीट पर बैठे हम तीन लोग-मैं, भव्य के पापा और चित्राक्ष की मां ज्योति चुपचाप थे। मैं और संतोष सिंह हालांकि लगातार बातचीत किए जा रहे थे। संतोष सिंह खुश थे कि भव्य को एक हमउम्र दोस्त मिल गया। 

अष्टविनायक दर्शन कराने के लिए 19 नवंबर 2021 को पौने छह बजे नालासोपारा पश्चिम के साई मंदिर से निकली बस नालासोपारा पूर्व, ठाणे, खोपोली-पेण हाईवे होते हुए सुबह साढ़े दस बजे चाय और नाश्ते के लिए खूबसूरत वादियों से घिरे एक रेस्टोरेंट के पास रुकी। सबसे पहले हमलोग रायगड जिले के पाली स्थित बल्लालेश्वर मंदिर का दर्शन करने वाले थे। मंदिर से करीब ढाई घंटे पहले हमलोग चाय, नाश्ता के लिए रुके थे। 


यहां सबलोगों ने अपने अपने परिवार के साथ चाय, नाश्ता किया। चित्राक्ष अपनी मम्मी ज्योति के साथ था, जबकि भव्य अपने पापा संतोष सिंह और मेरे साथ था। यहां से बस निकली। सबलोग अपनी अपनी सीट पर बैठ गए और करीब 1 बजे पहुंचे बल्लालेश्वर मंदिर। अब तक भव्य और चित्राक्ष की भी दोस्ती कुछ गहरी हो चुकी थी, लेकिन उनकी दोस्ती बस तक ही सीमित थी। बस के नीचे उतरने और मंदिर के दर्शन के दौरान वो साथ साथ नहीं दिख रहे थे। 

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बल्लालेश्वर से हमलोग कुछ देर में रायगड जिले के महड स्थित वरदविनायक मंदिर पहुंचे। यहां भी सब लोग अपनों के साथ मंदिर दर्शन के लिए बस से उतरे। मैं, भव्य और संतोष सिंह भी साथ दर्शन के लिए निकले, जबकि चित्राक्ष अपनी मम्मी ज्योति के साथ था। लेकिन, वरदविनायक मंदिर में दर्शन के दौरान हम पांच मैं, संतोष सिंह, ज्योति, भव्य और चित्राक्ष एक साथ आने लगे थे, जैसे कोई अपना परिवार रहता है। अभी तक दोनों बच्चे भव्य और चित्राक्ष साथ साथ थे, लेकिन अब मैं, संतोष सिंह और ज्योति भी आपस में बातें करने लगे थे। 

वरदविनायक मंदिर के दर्शन करके जब बाहर निकल रहे थे तो ज्योति ने चित्राक्ष के खाने के लिए कोई सामान खरीदा तो चित्राक्ष ने भव्य को भी खाने की पेशकश की। वहीं, भव्य के खाने के लिए उनके पापा संतोष सिंह ने भी कुछ खरीदा और भव्य से चित्राक्ष के साथ शेयर करने के लिए कहा। वरदविनायक दर्शन करते करते करीब दोपहर 2-3 बज गए थे। मंदिर के पास ही मुस्कान टुर्स ट्रैवेल्स ने ही खाने का इंतजाम किया था।

यहां हम पांचों लोग खाने के लिए साथ बैठे। यहां से एक तरह से हम दो अजनबी एक परिवार जैसा साथ रहने लगे थे। आपस में बातचीत करने लगे थे। मेरे साथ इस तरह के किसी अजनबी का अपनेपन जैसा पहला अहसास था। मैं पहले ही बता चुका हूं कि मैं हमेशा अजनबियों के साथ बिना हमसफर के ही सफर के लिए निकलता रहा हूं। 

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सफर के पहले दिन 19 नवंबर को शाम के करीब सवा चार बज चुके थे। हमारी बस देहू पहुंच गई थी। यहां हमलोगों ने संत तुकाराम मुख्य और समाधि मंदिर के दर्शन किए। यहां हम पांचों ने साथ साथ दर्शन किया। मंदिर में भी साथ साथ ही रहे। एक साथ बस से उतरे और साथ ही बस में चढ़े भी। साथ साथ बस में चढ़ने, बस से उतरने और कहीं भी जाने-आने के लिए एक दूसरे का इंतजार करने लगे, जैसे कि एक परिवार के सदस्य करते हैं। 

-Sant Tukaram Maharaj Mukhya Mandir, Dehu,संत तुकाराम मुख्य मंदिर,  देहू 

-संत तुकाराम मुख्य मंदिर,  देहू, Sant Tukaram Maharaj Mukhya Mandir,Dehu  

-Sant Tukaram Samadhi Mandir, Dehu, संत तुकाराम समाधि मंदिर, देहू

-संत तुकाराम समाधि मंदिर, देहू, Sant Tukaram Samadhi Mandir, Dehu

















सफर के पहले ही दिन यानी 19 नवंबर को ही हमलोग देहू के बाद आलंदी पहुंचे। आलंदी पहुंचते पहुंचते शाम के सात बज चुके थे। अंधेरा हो चुका था।  यहां हम लोगों ने संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर का दर्शन किया। हम मंदिर के पास ही एक धर्मशाला में रुके थे। दो रात हम यहीं रुके। धर्मशाला काफी बड़ा और भव्य है। धर्मशाला का बहुत बड़ा प्रांगण है, जहां गाड़ियां भी पार्क की जाती है। पानी सप्लाई की यहां अच्छी व्यवस्था है। बस में रसोइये की एक टीम भी थी। यही टीम हमारे नाश्ता, चाय, खाने का इंतजाम करती थी। ये रसोइये हमारे काफी ख्याल रखते थे। 






आलंदी में संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर के दर्शन से पहले  हमलोग धर्मशाला में ठहरे, वहां तरोताजा हुए और फिर दर्शन करने के लिए निकल गए। यहां हम पांचों के बीच अपनापन और मजबूत हो गया। यहां हमलोग मंदिर में दर्शन किये और मंदिर के बगल से बनने वाली नदी के पास जाकर बैठ गए। नदी के किनारे भी मंदिर है। यहां लाइटिंग की अच्छी व्यवस्था रहती है। अच्छा घाट बना हुआ है। 

भक्त यहां आकर परिवार के साथ समय गुजारते हैं। यहां की एक और खास बात है जलकुंभी पर जलता दीया रखना। जब ये दीये जलकुंभी के साथ तैरते हैं तो नजारा देखने लायक होता है। हम पांचों ने यहां इस नजारे के साथ साथ आनंद लिया। हम आपस में इस कदर घूल-मिल गए थे, कि पता ही नहीं रहता कि हमारी बस के बाकी लोग कहां हैं। 

घाट पर भव्य और चित्राक्ष आपस में बात करते रहे और साथ साथ घूमते रहे। मैं, संतोष सिंह और ज्योति घाट के पास ही वहां की खूबसूरती को निहारते रहे और बातचीत करे। जब हमलोग घाट से चलने लगे तो हमारी नजर दीये बेचने वाले पर पड़ी। लोग यहीं से तैयार दीया खरीदकर जलकुंभी पर रखते हैं, उसे जलकुंभी पर तैरता देखकर आनंदित होते हैं। ज्योति और संतोष सिंह ने भी दीये खरीदे। भव्य और चित्राक्ष ने उन दीयों को जलकुंभी पर रखकर उसका आनंद लिया।   







यहां से निकलकर हमलोगों ने मंदिर के पास ही चाय दुकान में कॉफी पी। कॉफी तो हमने सभी ने पी, लेकिन इसका पैसा हममें से एक ने दिया, जैसे लोग अपनों के बीच रहने पर देते हैं। यहां हमारे बीच एक और अच्छी बात ये हुई कि हम भले ही साथ में कॉफी या चाय पीते, लेकिन उसका पैसा हममें से कोई एक दे देता। 

जब भी कहीं दोस्तों के साथ, अपनों के साथ घूमने जाएं, सफर पर जाएं, तो ये मत देखें कि किसी काम के लिए पैसा कौन चुकाएगा, आप भी इसकी पहल कर सकते हैं। कई लोग इंतजार करते रहते हैं कि कोई दूसरा पैसा चुकाए। ऐसे में सफर का मजा खत्म हो सकता है।  

19 नवंबर को धर्मशाला पहुंचकर हमलोग 9-10 बजे रात तक खाना खाकर सोने चले गए। हमारे साथ बस में सफर कर रही रसोइये की टीम ने काफी स्वादिष्ट और सुपाच्य भोजन बनाया था। सोने जाने से पहले मैंने ज्योति और चित्राक्ष के साथ अपना मोबाइल नंबर शेयर किया।  मैं, संतोष सिंह और भव्य एक कमरे में ठहरे थे। चित्राक्ष अपनी मम्मी ज्योति के साथ अलग कमरे में रुका था। इस दौरान हमारे बीच सामान्य बातचीत होती रही, किसी तरह की व्यक्तिगत बातचीत नहीं। जहां घूमने जाते उसके बारे में या रास्ते में आने वाली जगहों के बारे में ही हमलोग चर्चा करते रहे। 

उधर, भव्य और चित्राक्ष ने तो सोने के लिए जाने से पहले सुबह सुबह धर्मशाला के प्रांगण में खेलने का भी प्लान बना लिया। हालांकि, उनका प्लान सफल नहीं हुआ। 

अगले दिन यानी 20 नवंबर को हमलोगों को चार अष्टविनायक मंदिर मोरगांव के मयुरेश्वर मंदिर, सिद्धटेक सिद्धिविनायक मंदिर, थेऊर के चिंतामणि मंदिर और रांजनगांव के महागणपति मंदिर दर्शन के लिए जाना था। सुबह  6 बजे निकलना था। इस तरह से पहला दिन काफी अच्छा रहा। 

-Sant Dnyaneshwar Samadhi Mandir, Alandi,संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर,आलंदी

-संत ज्ञानेश्वर समाधि मंदिर,आलंदी, Sant Dnyaneshwar Samadhi Mandir, Alandi

-Jalakumbhee Par Jalte Tairte Deeye, Alandi, जलकुंभी पर जलते  तैरते दीये, आलंदी   

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20 तारीख को सुबह सबसे पहले हमलोग चाय की चुस्की का आनंद लिया। चाय पीते हुए ज्योति ने अपने मोबाइल से मेरी तस्वीर ले रहीं थीं। मैं इस बात से अनभिज्ञ था। आज तक के सफर में किसी अजनबी ने और खासकर महिला ने अपने मोबाइल से मेरी तस्वीर नहीं ली थी। ज्योति ने मेरी तस्वीर मुझे शेयर की। ये मेरे लिए एक अलग अहसास था। अपनेपन का अहसास। भरोसे की तस्वीर। 


सुबह 6.30 बजे सभी लोगों ने चाय पी और फिर चार अष्टविनायक मंदिर के दर्शन के लिए निकल पड़े। सुबह सुबह का नजारा काफी खूबसूरत था। सबसे पहले मयुरेश्वर मंदिर जाना था। पुणे शहर और फिर घाट होते हुए हमलोग पहुंचे मोरगांव के मयुरेश्वर मंदिर।  मंदिर के रास्ते में लहलहाती खेती मन को हराभरा कर रही थी। खूबसूरत सड़कें और सड़कों के बीच रंग-बिरंगे फूल मानों जन्नत का अहसास करा रहे थे। 




9 बजे सुबह हमलोग मयुरेश्वर मंदिर  पहुंच चुके थे। मेरा फोटो लेने और वीडियो बनाने का सिलसिला जारी था। मंदिर के लाइन में हम पांच चित्राक्ष, भव्य, ज्योति, संतोष सिंह और मैं साथ ही खड़े थे। मंदिर में हालांकि, वीडियो लेना और तस्वीर खींचने की मनाही थी, फिर भी मैंने कई तस्वीरें ली और वीडियो भी बनाए। इसमें ज्योति और चित्राक्ष के भी वीडियो और तस्वीरें थीं। 

मयुरेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद जब हमलोग मंदिर प्रांगण से बाहर निकले, तो संतोष सिंह ने एक ग्रुप फोटो लेने की बात कही। ज्योति भी ग्रुप फोटो के लिए तैयार हो गईं। यहीं से हमलोगों के बीच तत्काल जरूरत के सामान या जगह के बारे में खुलकर बातचीत शुरू हो गई। एक दूसरे पर भरोसा बढ़ता गया। 








मैं सामान्य सा चप्पल पहनकर गया था। ज्योति को वॉशरूम जाने की जरूरत पड़ी तो, उन्होंने मुझसे मेरा चप्पल मांगने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखाईं। यहां तक कि उन्होंने अपना छोटा सा बैग और पूजा सामग्री की थाली को भरोसे के साथ मुझे संभालने के लिए दे दिया। भला, बिना भरोसा के, बिना अपनेपन का किसी अजनबी के साथ कोई ऐसा कर सकता है, क्या।  


मयुरेश्वर मंदिर से दर्शन करते 10 बजे निकले और कुछ ही दूरी पर एक साफ सुथरी जगह देखकर हमलोग नाश्ता करने के लिए रूक गए। नाश्ता करने के साथ साथ हमलोगों ने यहां खेतों की हरियाली का भी मजा लिया। गन्ने की लहलहाती फसल मन को एक अलग अहसास दे रही थी। नाश्ता करने के बाद हमलोग अहमदनगर जिले के सिद्धटेक के सिद्धिविनायक मंदिर के लिए निकले। 

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सिद्धिविनायक मंदिर पहुंचते पहुंचते दोपहर के 12 बज गए थे। यहां ज्यादा भीड़ नहीं थी। यहां हमलोग साथ साथ भगवान गणेश का दर्शन किए। दर्शन करने में महज आधे घंटे का समय लगा। यहां मंदिर के प्रवेश द्वार पर हमलोगों ने साथ साथ फोटो लिया। हम सभी ने गन्ना का जूस भी पिया। जूस हालांकि सभी ने पिया, लेकिन इसके पैसे एक व्यक्ति ने दिया। यानी परिवार और अपनेपन वाली सोच और भरोसे का सिलसिला यहां भी जारी रहा।












 

उधर, दोनों बच्चे भव्य और चित्राक्ष भी आपस में काफी मस्ती कर रहे थे। अपने अपने बड़ों का साथ छोड़कर दोनों आजादी का आनंद ले रहे थे। यहां से दर्शन करके करीब दोपहर 12.30 बजे थेऊर के चिंतामणि अष्टविनायक मंदिर के दर्शन के लिए निकले।  चिंतामणि मंदिर के रास्ते में एक मंदिर में हमलोगों ने खाना खाया। अब तक दोपहर के करीब 2 बज चुके थे। 

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चिंतामणि मंदिर में हमलोग करीब शाम चार बजे पहुंचे। यहां थोड़ी ज्यादा भीड़ थी। भगवान का दर्शन करने में दूसरे अष्टविनायक मंदिर से यहां ज्यादा वक्त लग गया। मैं यहां भी मनाही के बाद फोटो लेता रहा और वीडियो बनाता रहा। यहां भी हमलोग साथ साथ थे। मुख्य मंदिर का दर्शन करते हमलोग बाहर निकले। मैं जब फोटो ले रहा था और वीडियो बना रहा था, तब ज्योति ने मुझसे पूछा कि आपके चैनल में हमलोगों का भी वीडियो और तस्वीर आएगा क्या। 

मैंने सफर के दौरान कभी भी अपने यूट्यूब चैनल के लिए अभी तक किसी खास व्यक्ति का फोटो या वीडियो नहीं बनाया। ज्योति के सवाल से मैं कुछ देर के लिए अवाक् रह गया। मैं कुछ बोल नहीं पाया। मैंने झिझकते हुए कहा-हां, बिल्कुल आपलोगों की तस्वीर और वीडियो भी अपने चैनल के वीडियो में इस्तेमाल करूंगा। मेरे इस जवाब से उनके चेहरे की चमक देखने लायक थी। 









दरअसल, मैंने ज्योति को बताया था कि मेरा  rangarang India नाम से यूट्यूब चैनल है और इसी नाम से ब्लॉग भी है।  ज्योति ने चिंतामणि में जो सवाल किया था, उसके बाद से मेरे द्वारा ली जा रही तस्वीर और वीडियो का मुख्य केंद्र ज्योति और चित्राक्ष रहे। साथ ही मेरे दोस्त संतोष सिंह और भव्य तो पहले से ही केंद्र थे। यहां से हमलोग कहीं भी गए तो हर फोटो और वीडियो में ये सभी लोग मौजूद रहे। इनके बिना मैंने एक भी फोटो नहीं ली और ना ही वीडियो बनाया।  

चिंतामणि मंदिर में दर्शन करते करते शाम के पांच बज चुके थे। अब यहां से 20 नवंबर के आखिरी अष्टविनायक मंदिर रांजणगांव के महागणपति मंदिर के लिए निकले।  

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चिंतामणि में ज्योति के सवाल के बाद मैंने सोचा कि क्यूं ना उनसे बचे अष्टविनायक मंदिरों के लिए एंकरिंग कराऊं।उस दिन मैंने अपनी बात ज्योति से नहीं बताई। रांजणगांव पहुंचते पहुंचते रात के करीब साढ़े सात बज चुके थे। देरी होने की दो वजह थी। एक बेमौसम बारिश और दूसरी भयंकर ट्रैफिक जाम। देरी की वजह से बस में सवार लोग भी बोर हो रहे थे। महागणपति मंदिर पहुंचते पहुंचते अंधेरा हो चुका था और बारिश भी हो रही थी। 

देर होने की वजह से लोग जल्द से जल्द दर्शन करके अपने ठिकाने आलंदी का धर्मशाला में पहुंचना चाह रहे थे। थोड़ा समय लगा, लेकिन भगवान के दर्शन ठीक से हो गए। यहां भी मैंने फोटो और वीडियो लिए। इसमें हम सब पांच लोग थे। यहां भी दर्शन के लिए लाइन में हम पांच साथ साथ ही थे।  

यहां दर्शन करने के बाद रात के साढ़े आठ बजे अपने धर्मशाला के लिए निकले। करीब सवा दस बजे हमलोग अपने धर्मशाला पहुंचे। तरोताजा हुए। फिर खाना खाकर सोने चले गए। यहां 20 नवंबर को आखिरी रात थी। ज्योति ने अलग से कमरा लिया था। इसलिए उसका पैसा अलग से देना था। बस मालिक जमीर ने मुझसे ज्योति से पैसे लेने के लिए बोला। मैंने ज्योति को इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मैं आपके खाते में पैसा ट्रांसफर कर देती हूं और आप जमीर के खाते में ट्रांसफर कर देना। एक अजनबी पर इतना भरोसा कोई अपना ही कर सकता है। 

लेकिन, मैंने ज्योति को मना कर दिया और कहा कि जमीर के खाते में आप सीधे पैसा ट्रांसफर कर दीजिए। उन्होंने मुझसे जमीर का गूगल पे का नंबर मांगा, मैंने नंबर दे दिया। बाद में उन्होंने जमीर के खाते में पैसा ट्रांसफर कर दिया और इसकी जानकारी ज्योति ने मुझे दी। मैंने जमीर को बता दिया कि ज्योति ने पैसा ट्रांसफर कर दिया है। 

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अगले दिन 21 नवंबर था और अष्टविनायक यात्रा का अंतिम दिन था। अभी भी दो अष्टविनायक मंदिर का दर्शन बाकी था। मैंने ज्योति से सफर शुरू होने से पहले पूछा था कि क्या आप एंकरिंग करेंगी। उन्होंने सहमति जताई। 21 नवंबर को सुबह साढ़े छह बजे हमलोग बाकी के दो अष्टविनायक मंदिर ओझर का विघ्नेश्वर मंदिर और लेण्याद्रि का गिरिजात्मज मंदिर। ज्योति से मैंने विघ्नेश्वर मंदिर और गिरिजात्मज मंदिर के लिए उन्हीं जगहों पर एंकरिंग करवाई। 

दोनों बच्चे भव्य और चित्राक्ष ज्योति की एंकरिंग का मजाक उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। गिरिजात्मज हमारे सफर का आखिरी मंदिर था। यहां दर्शन करके हमलोग वापस अपने घर नालासोपारा के लिए निकले। रास्ते में मालशेज घाट पड़ता है। मालशेज घाट में ही एक सुरक्षित और खूबसूरत जगह पर खाने के लिए रूके। यहां पर भी ज्योति ने एंकरिंग कीं। 

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लेण्याद्रि के गिरिजात्मज मंदिर से दर्शन करके वापस नीचे आते समय ज्योति की एक साफगोई मुझे काफी पसंद आई। उन्होंने कहा कि आपलोगों को फोटो लेने नहीं आता है, लाइये मैं आपलोगों का फोटो लेती हूं। ये तस्वीर ज्योति ने ली है। 



मालशेज घाट में खाना खाते हुए

इस तरह से 2800 रुपए (खाना, नाश्ता, रहना, घूमना) चुकाकर 63 घंटे में  44 अजनबी के साथ करीब 1000 किलोमीटर की दूरी तय करके बहुत मीठी यादों के साथ अपनेपन का अजनबी अहसास लिए हुए अष्टविनायक का तीन दिनों का सफर खत्म हुआ। 21 नवंबर को रात करीब आठ बजे हम सब अपने अपने घर पहुंच चुके थे।  

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