शनिवार, 14 मार्च 2020

शांत और कुदरत की गोद में स्थित स्वामी समर्थ मठ, भुईगांव, वसई, कैसे पहुंचे

स्वामी समर्थ मठ, भुईगांव, वसई, पालघर, महाराष्ट्र; Swami Samarath Matt, Bhuigaon, Vasai  

कल्पना कीजिए, आप किसी ऐसी जगह की तलाश में हैं जहां आप शांत वातावरण में कुदरती खूबसूरती के 
बीच ध्यान कर सकें। साथ में आप ये भी कल्पना कीजिए कि ऐसी जगह की तलाश करते समय आप जिस 
रास्ते से गुजर रहे हों, वो पक्की सड़क हो, सड़क के दोनों किनारे मनमोहक बंगले हों, बंगलों से सटे हरे-भरे
खेत हों, नारियल और केले जैसे पेड़ों का झुरमुठ हो, ठंडी-ठंडी हवा बह रही हो, तो कैसा अहसास होगा। 
भाई, मुझे तो ऐसे दृश्य और ऐसे अहसास काफी आनंद देते हैं। तो आप भी ऐसे माहौल का मजा लेना चाहते
हैं तो श्री स्वामी समर्थ मठ, भुईगांव बढ़िया जगह है।  











महाराष्ट्र के पालघर जिले के वसई तालुका में श्री स्वामी समर्थ मठ है। यह मठ काफी रमणीय और आध्यात्मिक
है। यह भुईगांव नामक गांव में है। कहना के लिए भुईगांव गांव है, लेकिन पूरी सुविधा शहरों जैसी है। पक्की सड़कों का जाल, हमेशा बिजली, नलों के जरिये पानी की सप्लाई, आसपास अच्छे अच्छे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, बस स्टैंड, नजदीकी रेलवे स्टेशन जाने के लिए आवाजाही की अच्छी सुविधा सबकुछ यहां है। 



शहरी भीड़भाड़, शहरी शोरगुल, प्रदूषण से दूर रहकर ध्यान लगाने के लिए यह मठ एकदम बढ़िया जगह है। मठ के द्वार पर पहुंचते ही ऐसा लगेगा मानो आप आध्यात्मिकता में डूब गए हों। मठ के बाहर दीवार पर श्री स्वामी समर्थ की कहानियों और चमत्कारों को अलग अलग चित्रों के जरिये दिखाया गया है। साथ ही हिन्दुओं की नौ देवियों और संतों की तस्वीरें भी टंगी हुई है। 



>स्वामी समर्थ मठ (अंदर से), भुईगांव, वसई, पालघर, महाराष्ट्र
>स्वामी समर्थ मठ (बाहर से), भुईगांव, वसई, पालघर, महाराष्ट्र

मठ के अंदर का दृश्य भी कम आकर्षक और आध्यात्मिक नहीं है। अंदर भी हिन्दुओं की 9 देवियों, सारे प्रमुख संतों के चित्र एक लाइन से लगे हैं। अगर मठ के गर्भगृह की बात करें तो वहां पर स्वामी जी की मूर्ति है। मूर्ति के सामने ही उनकी पादुका है। भक्त पादुका का स्पर्श करके स्वामी जी से आशीर्वाद लेते हैं।  स्वामी जी की मूर्ति जहां है, उसके प्रवेश द्वार पर एक तरफ हनुमान जी की छोटी मूर्ति है और दूसरी तरफ भगवान गणेश की मूर्ति है। 




मठ हमेशा भक्तों से गुलजार रहता है। समय समय पर आरती होती रहती है। भंडारा भी होता है। मठ से कुछ ही दूरी पर समुद्री किनारा है। कई प्राचीन मंदिर भी हैं आसपास। एकदम शांत और कुदरत की गोद में बसा है यह मठ। मठ  के आसपास खूबसूरत बंग्ले हैं। 

कैसे पहुंचें- मठ का नजदीकी लोकल रेलवे स्टेशन वसई और नालासोपारा है। हालांकि आप विरार से भी बस या ऑटो या कैब से आ सकते हैं। वसई या नालासोपारा रेलवे स्टेशन पर उतरकर पश्चिम की तरफ बाहर निकलना है। स्टेशन से आप सरकारी बस या ऑटो से आ सकते हैं। कैब भी आपको मठ पहुंचाने में मदद कर सकता है। 

श्री स्वामी समर्थ, अक्कलकोट के बारे में:
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के अक्कलकोट में श्री स्वामी समर्थ का समाधि मंदिर है। इस समाधि स्थल
पर हमेशा श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। श्री स्वामी समर्थ आम लोगों की सेवा और कई चमत्कार
के लिए जाने जाते हैं। 


-महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में है
-श्री स्वामी समर्थ महाराज का समाधिस्थल मंदिर है यहां 
-श्री स्वामी समर्थ महाराज दत्त संप्रदाय के प्रमुख संत थे 
-श्री स्वामी समर्थ महाराज श्री दत्त जी के चौथे अवतार माने जाते है
-श्री दत्तात्रेय भगवान के अवतार माने जाते हैं श्री स्वामी समर्थ महाराज 
-हर गुरुवार को खास पूजा होती है 

-श्री स्वामी समर्थ महाराज को लेकर कई किंवदतियां प्रचलित है
-अचानक किसी जगह से अदृश्य होने और दूसरी जगह प्रकट होने 
को लेकर भी कई कहानियां हैं
-श्री स्वामी समर्थ महाराज को भक्तों की तकलीफों, परेशानियों को दूर 
करने वाला माना जाता है  
-माना जात है कि स्वामी आंध्रप्रदेश के श्री शैलयम क्षेत्र के कर्दळी वन से 
प्रकट हुए
- ऐसा कहते है. उसके बाद स्वामी जी ने आसेतु हिमाचल का भी भ्रमण किया
-1856  में स्वामी समर्थ अक्कलकोट के खंडोबा मंदिर में प्रकट हुए  स्वामी 
-अक्कलकोट में 22 साल रहने के बाद 1878 में यहीं पर महासमाधि ली उन्होंने 
-महाराज ऑफ अक्कलकोट के नाम से भी उन्हें जाना जाता है 
-स्वामी मंगळवेढा से पहली बार अक्कलकोट पहुंचे थे 
-1875 में जब महाराष्ट्र में बहुत भारी मात्रा में दुष्काल गिरा था तब क्रांतिकारक 
वासुदेव बळवंत फडके स्वामी समर्थ जी के दर्शन लेने वहाँ आये थे.
-स्वामी समर्थ महाराज अपने भक्तों को सुरक्षा का वचन देते हुए कहते थे  - " डर मत मैं तेरे साथ हुं  " 
-कहा जाता है कि कर्दली वन में वे तीनसौ वर्ष प्रगाढ समाधि अवस्था में थे । 
-सबसे पहले वे काशी में प्रकट हुए । 
-आगे कोलकाता जाकर उन्होंने कालीमाता का दर्शन किया
- इसके बाद गंगातट से अनेक स्थानों का भ्रमण करके वे गोदावरी तटपर आए । 
वहां से हैदराबाद होते हुए बारह वर्षोंतक वे मंगलवेढा में रहे । 
उसके बाद  पंढरपुर, मोहोळ, सोलापुर मार्ग से अक्कलकोट आए ।
और अंत तक वो अक्कलकोट में ही रहे 
-पुरी, बनारस, हरिद्वार, गिरनार, काठियाबाड़ और रामेश्वरम का भी उन्होंने भ्रमण किया
- उन्होंने अनेक चमत्कार किए । 
-जनजागृति का कार्य किया । 
-स्वामी समर्थ क्षण में अदृश्य होते थे तथा अचानक प्रकट भी होते थे । 
-स्वामी गिरनार पर्वतपर अदृश्य हुए तथा दूसरे ही क्षण आंबेजोगाई में प्रकट हुए ।
-हरिद्वार से काठियावाड के जीविक क्षेत्र स्थित नारायण सरोवर के बीचोबीच 
सहजासन में बैठे दिखाई दिए । 
उसके बाद भक्तों ने उन्हें पंढरपुर की भीमा नदी की बाढ में चलते हुए देखा ।
-1878 में स्वामी समर्थ ने अक्कलकोट में अपने पार्थिव शरीर का भले ही त्याग 
किया हो, किंतु ‘मै गया नहीं हू, हमेशा आपके साथ हूं,’’ उनका यह वचन भक्तों का आधार है ।



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