मुंबई से सटे विरार में पहाड़ी पर जीवदानी माता का मंदिर है। विरार महाराष्ट्र के पालघर जिले में है। पालघर जिला ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के लिए मशहूर है। उनमें से ही एक है जीवदानी माता का मंदिर।
समुद्रतल से जीवदानी माता मंदिर की ऊंचाई करीब 1500 मीटर है। फणीक्यूलर ट्रेन सर्विस सुविधा पर ट्रस्ट ने करीब 35 करोड़ रुपए खर्च किया है। ये ट्रेन महज 7 मिनट में मंदिर तक पहुंच देती है। ट्रेन में एक साथ करीब 104 लोगों के बैठने की सुविधा है।
इसके लिए प्रति व्यक्ति 200 रुपए टिकट भाड़ा है। इसमें आना-जाना दोनों शामिल है। ट्रेन के अंदर से आप आसपास का नजारा देख सकते हैं। ट्रेन के दोनों तरफ शीशा लगा है। इसकी वजह से बाहर की खूबसूरती को ठीक से सैलानी देख सकते हैं।
इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी एजेंसी RITES (रेल इंडिया टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक सर्विस) की मंजूरी के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया था। फणीक्यूलर ट्रेन एक घंटे में करीब 12 चक्कर लगाती है। ये ट्रेन दिन में करीब 12-14 घंटे चलाई जाती है। ये ट्रेन दूसरी परिवहन सेवाओं के मुकाबले कम बिजली का खपत करती है। महिलाओं और सीनियर सिटीजन को किराए में छुट है। ट्रेन के डिब्बे के अंदर खड़े रहने और बैठने की उचिच व्यवस्था है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं।
>जीवदानी यानी जीवन देने वाली माता का मंदिर, क्यों जाएं, कैसे जाएं
अगर आप घूमने के शौकीन हैं या फिर अक्सर दर्शनीय या टूरिस्ट स्पॉट की तलाश में रहते हैं तो अपने आसपास की जगह के बारे में भी पता जरूर करें, क्योंकि इंसान जहां रहता है, उसके आसपास कई ऐसी जगहें मिल जाती हैं।
मैं मुंबई से सटे उपनगर नालासोपारा में रहता हूं। नालासोपारा में भी सैर-सपाटे के लिए कई जगहें हैं, जहां मैं अक्सर घूमने के लिए जाता है। नालासोपारा से सटा है विरार और विरार पूर्व में है मां जीवदानी माता का मंदिर। वैसे तो मैं मंदिर कई बार जा चुका हूं और हर बार कुछ ना कुछ नया देखने को मिलता है। इस बार मंदिर जाना कुछ खास रहा।
मंदिर के बारे में:
-हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है जीवदानी मंदिर
-महाराष्ट्र के पालघर जिले में है
-मुंबई उपनगरीय रेलवे स्टेशन विरार में है ये मंदिर
-विरार उतरकर पूर्व की तरफ शेयरिंग ऑटो करके या फिर ऑटो रिजर्व करके मंदिर जा सकते हैं
-वैतरणा नदी के किनारे सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर स्थित है ये मंदिर
-जीवदानी का मतलब होता है जीवन देने वाली। कहते हैं कि एक जमाने में सतपुड़ा पहाड़ी श्रृंखला
में कई तरह के औषधीय वृक्ष पाए जाते हैं जिनसे लोगों की जान बचती थी। यही वजह है कि मंदिर
को जीवदानी कहा गया। इससे पहले एकविरा मंदिर कहा जाता था।
-मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित है
-पुराण के अनुसार पांडवों ने वनवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया था
-कुछ किंवदती के अनुसार 17 वीं सदी में जीवदानी किले के निर्माण कराया गया था और
उसी किले में जीवदानी मंदिर का भी निर्माण हुआ था
-पहाड़ पर स्थित है ये मंदिर
-करीब 1400 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर जाते हैं लोग
-जो लोग सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते हैं, वो रोपबे का इस्तेमाल कर सकते हैं।
-हालांकि रोपबे के एक बार दुर्घटनाग्रस्त होने की वजह से जब मैं मंदिर
दर्शन करने गया था तब रोपबे की सेवा बंद थी
-सीढ़ियों के दोनों ओर माता को अर्पण करने के लिए जरूरी सामानों की दुकानें सजी रहती हैं
-सीढ़ियों पर जगह जगह कचरा पेटी रखी रहती है ताकि गंदगी ना फैले और भक्त कचरापेटी
में ही कचरा फेंके।
-सीढ़ियों पर जगह जगह वॉशरूम भी बना हुआ है।
-कुछ लोग सीढ़ियों पर मोमबती जलाते हुए नजर आते हैं। कुछ लोग हर सीढ़ियों
का सजदा करते नजर आते हैं। ऐसी मान्यता है कि मोमबती जलाने से और सजदा
करने से मन्नत पूरी होती है।
-मंदिर परिसर में जीवदानी माता कं अलावा कई देवी-देवताओं की भी मुर्ति है।
-मंदिर के ऊपर से विरार, नालासोपारा का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है।
-छुट्टियों के दिन, रविवार, शनिवार और पर्व-त्योहार पर भक्तों की अच्छी-खासी
भीड़ यहां रहती है।
-सुबह चार बजे से लेकर रात 8 बजे तक माता के दर्शन किए जा सकते हैं
-विरार में जीवदानी माता के अलावा कई और पर्यटन स्थल हैं-जैसे अर्नाला बिच,
अर्नाला फोर्ट, याजू पार्क बगैरह। विरार में वेब सीरिज, सीरियल, फिल्मों बगैरह
की शूटिंग भी होती है।
मंदिर चुंकि पहाड़ पर है, इसलिए माता के दर्शन के लिए अच्छी खासी चढ़ाई करनी होती है। करीब 1400 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। हालांकि, चढ़ते समय रास्ते में आराम करने की भी काफी सुविधा है। सीढ़ियों के किनारे माता परचढ़ाने वाले सामानों की दुकान सजी रहती है। सीढ़ियों से ही मंदिर का दीदार होता है। मंदिर के एकतरफ स्वष्तिक का और दूसरे ओम का निशान बना है, जो कि दूर से ही लोगों को दिखाई देता है।
सीढ़ियों से आसपास के इलाकों का खूबसूरत नजारा भी देखने को मिलता है। सीढ़ियां चढ़ते समय अगर कचरा फेंकना हो, तो कृप्या जहां-तहां मत फेंके। कचरे के डिब्बे में ही फेंके, क्योंकि सीढ़ियों पर जगह जगह कचरे के डिब्बे रखे हैं। साथ ही सीढ़ियों के किनार जगह जगह बॉशरूम भी बने हैं जहां आप पेशाब कर सकते हैं या संडास कर सकते हैं या फिर फ्रेश हो सकते हैं।
जब इस बार मैं जीवदानी मंदिर गया, तो सीढ़ियां कुछ अलग तरीके से बनी हुई दिखाई दी। इन सीढ़ियों से पहले की सीढ़ियों के मुकाबले मंदिर तक जाना काफी आसान लग रहा था। मंदिर परिसर में जीवदानी माता क अलावा कई दूसरे देवी देवता के भी मंदिर देखने को मिले। जैसे मां महाकाली मंदिर, कालभैरव मंदिर।
मां महाकाली मंदिर, कालभैरव मंदिर से सटे ही बड़ा सा पत्थर का टुकड़ा रखा हुआ है। वहां पर कुछ सिक्के को चिपकाते हुए नजर आए। कुछ लोगों के सिक्के तो पत्थर में चिपक रहे थे, लेकिन कुछ लोगों के सिक्के पत्थर में चिपक नहीं रहे थे लेकिन पत्थर के नीचे रखे दानपेटी में वे पैसै जरूर जा रहे थे।
इस बार जीवदानी मंदिर में मैंने एक और चीज देखा। पिंजड़े में बंद खूबसूरत पंक्षी। पंक्षियों के लिए खाने और पानी पीने का भी बेहतर इंतजाम मुझे देखने को मिला। कई लोग उन खूबसूरत पंक्षियों के हरकतों को देखकर आनंदित हो रहे थे। मुख्य मंदिर से ऊपर जाते हैं तब पंक्षियों का पिंजड़ा देखने को मिलता है। मुख्य मंदिर के ऊपर पहुंचकर आसपास के इलाकों की खूबसूरती देखना मत भूलें। बहुत खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। ऊंची-ऊंची बिल्डिंगें, आती-जाती ट्रेनें, स्विमिंग पूल, खेल के मैदान, सड़कें, समुद्र किनारा, खाली खेत सबकुछ मंदिर के ऊपर से देखने को मिल जाता है।
और हां, पूरा मंदिर परिसर सीसीटीवी के पहरे में है।
>कैसे पहुंचे जीवदानी मंदिर:
इतना सबकुछ जानने के बाद जरूर जीवदानी मंदिर जाने का मन कर रहा होगा। तो, सवाल है कि वहां पहुंचेंगे कैसे। अगर आप मुंबई में हैं तो किसी पश्चिम उपनगरीय स्टेशन जैसे चर्चगेट, मुंबई सेंट्रल, दादर, बांद्रा, अंधेरी, बोरीवली बगैरह से विरार जाने वाली लोकल ट्रेन पकड़ लें। विरार में उतरकर पूर्व की तरफ स्टेशन से बाहर निकल जाएं। वहां से जीवदानी मंदिर जाने के लिए शेयरिंग ऑटो मिल जाएगी।
आप ऑटो रिजर्व करके भी जा सकते हैं।
अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहते हैं तो मुंबई-अहमदाबाद हाईवे से आ सकते हैं। मंदिर के सामने पार्किंग की अच्छी व्यवस्था है।
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((Vasai Road Station (BSR);वसई रोड स्टेशन
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