खूबसूरत और डरावनी घाटियां, बलखाती वादियां,दर्जनों प्वाइंट को एन्जवॉय करते सैलानी, करिश्माई कुदरत के अलावा शांत और साफ-सुथरे मौसम, ठंडी हवाओं, छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतापगढ़ किला, स्ट्राबेरी की खेती, पुरातन मंदिर ये सब मिलकर महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित क्वीन ऑफ हिल स्टेशन के नाम से मशहूर महाबलेश्वर को काफी मनोरम बनाते हैं। प्रतापगढ़ किला महाबलेश्वर से करीब 20 किलोमीटर दूर है। प्रतापगढ़ किले के बगल में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी श्री भवानी माता मंदिर है। कहा जाता है कि यहां पर श्री भवानी माता मंदिर का निर्माण शिवाजी ने करवाया था। मंदिर के म्युजियम भी है।
क्वीन ऑफ हिल स्टेशंस या हिल स्टेशन की रानी के नाम से मशहूर महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित हिल स्टेशन महाबलेश्वर तीन जिलों- सतारा, रत्नागिरी और रायगड की सीमा से सटा है। नैसर्गिक खूबसूरती, डरावनी घाटियां, शीतल पवन, साफ-सुथरा और शांत मौसम के अलावा, बहुत सारे प्वाइंट, स्ट्राबेरी की खेती जैसी खासियतों को समेटे महाबलेश्वर के नजदीक ही है प्रतापगढ़ का वो किला है जहां महाराज छत्रपति शिवाजी ने अफजल खान को बघनखा से पेट फाड़कर मौत के घाट उतार दिया था। प्रतापगढ़ किला से कुछ दूर पहले अफजल खान का भी मकबरा है। जब हमलोग प्रतापगढ़ किला गए थे तब अफजल खान के मकबरे के पास जाने की मनाही थी।
यहां बने प्वाइंट से आप महाबलेश्वर की बलखाती घाटियों का आनंद ले सकते हैं, कुछ प्वाइंट तो खास मकसद से भी बनाए गए हैं, कुछ प्वाइंट से आपको घाटियों के नजारा के अलावा ऐतिहासिक किले का भी दीदार होगा। सनसेट प्वाइंट, इको प्वाइंट पर, पोलो ग्राउंड पर घुड़सवारी का आनंद ले सकते हैं।
पुराने महाबलेश्वर में हमलोगों ने पंच गंगा मंदिर, महाबलेश्वर मंदिर, अतिमहाबलेश्वर मंदिर, कृष्णाबाई मंदिर का दर्शन किया। इनकी खास बातों को हम इसी लेख में आगे बताएंगे।
>कैसे बना महाबलेश्वर का प्लान:
दरअसल, महाबलेश्वर से जाने से पहले मुझे शेगांव की यात्रा पर जाना था। नालासोपारा पश्चिम में साईधाम मंदिर ने शेगांव यात्रा का इंतजाम किया था। इसी मंदिर द्वारा आयोजित शिर्डी और अष्टधाम की यात्रा पर मैं अक्सर जाया करता हूं। शेगांव जाने के लिए मैंने मंदिर के इस यात्रा के आयोजन के लिए जिम्मेदार शख्स को मैंने शेगांव जाने के बारे में पूर्वसूचित कर दिया था। मुझे लगा कि उन्होंने मेरा नाम शेगांव यात्रा पर जाने वालों की लिस्ट में लिख लिया होगा। लेकिन, जब शेगांव जाने के लिए फाइनल लिस्ट तैयार हुआ तो उसमें मेरा नाम शामिल नहीं था। थोड़ी जानकारी शेगांव और शेगांव यात्रा के दौरान जिन जगहों पर घूमने जाना था उसके बारे में। उसके बाद आगे बढ़ेंगे।
चार दिनों के शेगांव यात्रा के दौरान हम शेगांव, औरंगाबाद, देवगड और शिर्डी की यात्रा करते। इसके लिए प्रति व्यक्ति साईधाम मंदिर की तरफ से केवल 2800 रुपए वसूला जा रहा था। इसमें खाना-नास्ता-चाय-रहना सबकुछ शामिल था। यात्रा की शुरुआत हम शाम 5 बजे नालासोपारा पश्चिम के साई मंदिर से करते। उसके बाद रात 10 बजे शेगांव पहुंचते। उसके अगले दिन शेगांव में गजानन महाराज के दर्शन करते और वहीं काफी बड़े क्षेत्र में फैले आनंद सागर पार्क घूमते। फिर उसी रात हम औरंगाबाद पहुंचते और उसके दूसरे दिन अजंता-एलोर की गुफाएं देखते। इसके अलावा औरंगजेब द्वारा बनवाए गए बीवी का मकबरा भी उसी दिन देखते। फिर उस रात देवगड पहुंचते और अगले दिन देवगड में दत्त मंदिर का दर्शन करते। उसके अगले दिन शिर्डी साई बाबा का दर्शन करते हुए वापस शाम 7-8 बजे नालासोपारा साई मंदिर में पहुंच जाते। लेकिन, शायद उस बार शेगांव यात्रा मेरी किस्मत में नहीं थी। हालांकि काफी दिनों से शेगांव जाने की इच्छा मैं मन में पाले हुए था।
आपको बता दूं कि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित शेगांव महान संत श्री गजानन महाराज से जुड़ा पवित्र स्थान है । शेगांव के संत श्री गजानन महाराज को भगवान् दत्तात्रेय के तीन अवतारों में से एक माना जाता है, अन्य दो अवतार हैं शिर्डी के साईं बाबा तथा अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ। ऐसा माना जाता है कि महाराज को सर्वप्रथम शेगांव में सन 1878 में देखा गया था और तब ही से उनके असीम ज्ञान, सादगी तथा अद्वितीय अध्यात्मिक शक्ति से समस्त जनमानस तथा उनके भक्त लाभान्वित होते आये हैं|
शेगांव ना जाने की बात से मैं थोड़ा मैं मायूस था और सोच रहा था कि कहां घूमने जाऊं। तभी 21 जनवरी 2018 रात 11.23 मिनट पर मेरे डॉक्टर मित्र डॉ अभिषेक सिंह का महाबलेश्वर चलने के लिए फोन आया। शेगांव ना जाने से मैं थोड़ा मायूस था और कहीं घूमने जाने के बारे में भी मैं सोच रहा था। महाबलेश्वर की नैसर्गिक
खूबसूरती और तीर्थस्थल के रूप में उसकी महत्ता के बारे में मैं काफी सुन चुका था, इसलिए जैसे डॉक्टर साहब का महाबलेश्वर चलने के लिए फोन आया, मैं उनको 'ना' नहीं कह सका। डॉक्टर साहब ने बताया कि हमदोनों के अलावा, महम दोनों के एक और मित्र राज, डॉक्टर साहब के ससुर और उनके ससुर के मामा जी भी साथ में महाबलेश्वर की सैर पर चलेंगे। महाबलेश्वर के लिए हमलोगों को डॉक्टर साहब की कार से निकलना था। मैं, डॉक्टर साहब और राज तो नालासोपारा से ही साथ में निकले, लेकिन डॉक्टर साहब के ससुर और उनके मामा जी को पुणे से कार में बैठाया। बता दूं कि नालासोपारा से पुणे, सातारा, वई, पंचगनी होते हुए महाबलेश्वर की खूबसूरत वादियों में पहुंचे।
>नालासोपारा से खोपोली आउटर: इस तरह प्लान के मुताबिक, हम 8 फरवरी को डॉक्टर साहब की कार से सुबह 6 बजे नालसोपारा से निकले। अहमदाबाद-मुंबई हाईवे से होते हुए हम मुंबई -पुणे एक्सप्रेस वे पर पहुंचे। आपको बता दूं कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे करीब 94 किलोमीटर लंबा है। मुंबई की तरफ से कलम्बोली से एक्सप्रेसवे की शुरुआत होती है जो कि खारघर से तीन किलोमीटर आगे है। इस एक्सप्रेस वे पर दोपहिया वाहनों की आवाजाही मनाही है और गाड़ी की स्पीड भी 80 किलोमीटर प्रति घंटा से कम नहीं रखना है। किसी आपात्काल में मदद के लिए एक्सप्रेस के दोनों तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर पोल पर मोबाइल नंबर दिया
हुआ है। कोई घटना घट गई हो, गाड़ी खराब हो गई है, तो तुरंत आप उस नंबर कॉल करके मदद मांग सकते हैं।
एक्सप्रेसवे पर पहुंचने से पहले हमलोग ठाणे, नवी मुंबई, खारघर से भी होकर गुजरे। हमलोग करीब 112 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके थे। सुबह के करीब 9 बज चुके थे और बिना रूके लगातार चलते जा रहे थे। हालांकि बीच-बीच में कुछ रेडलाइट पर हमलोगों को रूकना पड़ा था, बाकी कार से नहीं उतरे थे। तीन घंटे तक चलने के बाद चाय-नास्ते की जरूरत महसूस होने लगी। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस पर वैसे तो रूकना नहीं है लेकिन एक्सप्रेस वे पर ही खोपोली आउटर पर रिफ्रेशमेंट का बढ़िया इंतजाम है। वहां पर लोग अपनी-अपनी गाड़ियां रोककर कुछ पल रिलैक्स होते हैं। चाय, नास्ता करते हैं, वहां पर कुछ सामान खरीदते हैं, सेल्फी लेते हैं, कुछ तस्वीरें खींचते हैं और फिर अपनी मंजिल की ओर बढ़ चलते हैं। तो, हमलोगों ने भी वहां चाय, नास्ता किया। कुछ सेल्फी और तस्वीरें ली और पुणे की ओर बढ़ गए। हमें एक्सप्रेसवे जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी पार करना था, नहीं तो जाम में फंसने का डर था। अगर जाम में फंस जाते तो फिर महाबलेश्वर पहुंचने में देरी होती। डॉक्टर साहब के ससुर निरंजन अंकल ने हमलोगों को आगाह कर दिया था कि हर हाल में सुबह 11 बजे से पहले एक्सप्रेस वे पार कर जाना है, क्योंकि फिर एक्सप्रेसवे के कुछ हिस्सों में कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो जाता है जिससे ट्रैफिक जाम होने की आशंका बढ़ जाती है। तो, हमलोगों ने खोपोली आउटर पर चाय-नास्ता करने में ज्यादा समय खर्च नहीं किया और अगले पड़ाव की ओर निकल पड़े।
निरंजन अंकल के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं। ये महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट में अच्छे पद पर काम करके रिटायर हो चुके हैं। महाराष्ट्र के कोने-कोने हर रूट की जानकारी इनको है। सैर-सपाटा इनके जीवन का हिस्सा है। परिवार के साथ, दोस्तों के साथ कहीं भी घूमने के लिए निकल जाना एक तरह से इनके लिए बायें का
हाथ खेल है। अक्सर दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर चले जाते हैं। कम खर्च और ज्यादा मस्ती के साथ अगर आपको कहीं घूमने जाना हो, तो निरंजन अंकल एकदम परफेक्ट शख्सियत हैं। एक मंजे हुए टूरिस्ट गाइड की तरह वो आपका मार्गदर्शन करेंगे। आत्मीयता, विनम्रता उनमें कुट-कुट कर भरी हुई है। हमेशा मदद करने को ये तत्पर रहते हैं। निरंजन अंकल कभी आपको महसूस नहीं होने देंगे, कि वो आपके अपने नहीं हैं। मैं उनके मार्गदर्शन में महाराष्ट्र का मशहूर कोंकण किनारा घूम चुका हैं। वैसे, निरंजन अंकल पुणे से हमलोगों के साथ होने वाले हैं। उनके बिना महाबलेश्वर का सैर-सपाटा कतई पूरा नहीं हो सकता है। निरंजन अंकल ना केवल महाराष्ट्र बल्कि देशभर में कई जगहों की सैर कर चुके हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण, पूर्व से लेकर पश्चिम के बहुत ज्यादातर शहरों का दीदार वो कर चुके हैं।
>खोपोली आउटर से कात्रज चौक, पुणे: हमें पहले पुणे के कात्रज चौक जाना था। जहां से निरंजन अंकल हमलोगों के साथ होने वाले थे। कात्रज चौक के पास ही निरंजन अंकल के मामाजी का घर है, जहां पर निरंजन अंकल रूके हुए थे। निरंजन अंकल के मामाजी उस दिन तो हमलोगों के साथ नहीं आए, लेकिन अगले दिन से आखिरी दिन तक हमलोगों के साथ ही महाबलेश्वर का आनंद लिया। साथ रहे,साथ घूमे, साथ खाना खाए। आउटर खोपोली से खंडाला (खंडाला घाट का रियल नाम भोर घाट है), लोणावला, लवासा होते हुए करीब 61 किलोमीटर की दूरी तय कर हमलोगों ने 10.26 बजे सुबह मुंबई- पुणे एक्सप्रेस वे पार किया। सुबह सवा 11 बजे हमलोग कात्रज चौक पहुंचे, जहां कुछ देर रूककर चाय पी और फिर 11.32 बजे सुबह निरंजन अंकल को साथ लेकर महाबलेश्वर की तरफ निकल पड़े। अगर हमलोगों को कात्रज चौक नहीं जाना होता तो एक्सप्रेस से ही महाबलेश्वर के लिए अलग रास्ता है, उस रास्ते से होकर गुजरते तो करीब 8 किलोमीटर कम चलना पड़ता।
पुणे से निकलकर हमलोगों को पहले सातारा की सीमा में प्रवेश करना था और फिर महाबलेश्वर की तरफ चढ़ना था। पुणे से सातारा करीब 100 किलोमीटर है। कात्रज चौक से कात्रज और खंबात घाट होते हुए हमलोगों ने सातारा जिले की सीमा में प्रवेश किया।
>कात्रज चौक (पुणे) से अभिरुचि होटल: पुणे की सीमा खत्म हुई और हम पहुंचे सतारा जिले की सीमा में जहां हमारा स्वागत यहां की शुगर फैक्टरी और नीरा नदी ने किया। यह वही नीरा नदी है जहां पर छत्रपति शिवाजी महाराज से टकराने के लिए अफजल खान अपनी टुकड़ी के साथ ठहरा था। अफजल खान अहमदनगर से अपनी सेना के साथ यहां पहुंचा था। सतारा सीमा में हम जैसे-जैसे महाबलेश्वर के नजदीक पहुंच रहे थे, दोपहर के खाने का समय हो चला था। हमलोगों ने महाबलेश्वर से 44 किलोमीटर, पंचगनी से 23 किलोमीटर और वई (तालुका) से 10-11 किलोमीटर पहले अभिरुचि होटल में खाना खाया। हमलोगों ने स्थानीय खाना का लुत्फ उठाया। आप अगर कहीं सैर के लिए जाते हैं तो स्थानीय खाने का लुत्फ उठाना ना भूलें।
>अभिरुचि होटल से महाबलेश्वर: दोपहर के खाने के बाद महाबलेश्वर जाने के लिए आगे बढ़े। वई , पंचगनी होते हुए हम महाबलेश्वर पहुंचे। आपको बता दूं कि वई से ही घाट शुरू हो जाता है। पंचगनी नामी-गिरामी शैक्षणिक संस्थान, फल प्रसंस्करण उद्योग और फिल्मों की शूटिंग के लिए मशहूर है। पंचगनी में ही बहुत
बड़ा टेबल लैंड (पहाड़ पर या घाट पर बहुत बड़ा समतल जमीन जब एक ही जगह पर होती है, तो वह टेबल लैंड कहलाता है), अक्सर यहां फिल्मों की शुटिंग होती है। यहां के शैक्षणिक संस्थानों में रईस और सिलेब्रिटीज के बच्चे पढ़ते हैं।
दोपहर के सवा तीन बज चुके थे और पहुंच चुके थे महाबलेश्वर के गेस्ट हाउस में । इस तरह हमने अपने घर नालासोपारा से महाबलेश्वर गेस्ट हाउस में पहुंचने के लिए करीब 312 किलोमीटर की दूरी तय की। और इतनी दूरी तय करने में हमें कुल 9 घंटे खर्च करने पड़े। इस 9 घंटे के दौरान हमलोगों थोड़ी-थोड़ी देर के लिए तीन जगहों- खोपोली आउटर, कात्रज चौक पुणे और अभिरुचि होटल सातारा में रुके।
>महाबलेश्वर के गेस्ट हाउस के बारे में थोड़ी जानकारी-
दरअसल, इस गेस्ट हाउस का नाम ग्वॉल्हेर लॉज है। महाबलेश्वर बस स्टैंड से यह करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है। यह किसी पारसी का कॉटेज है जिसे महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडल (एमएसआरटीसी) ने लीज पर लिया हुआ है। महामंडल के अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए यह गेस्ट हाउस है। मामूली पैसे लेकर उनको यहां रुकने की सुविधा दी जाती है। अब आप जानना चाहते होंगे कि हमलोगों को इसमें कैसे रहने दिया गया। तो हमारे दोस्त डॉक्टर साहब के ससुर निरंजन अंकल, जिनके बारे में हम पहले आपको बता चुके हैं, वो एमएसआरटीसी में काम कर चुके हैं।
एमएसआरटीसी अपने पूर्व अधिकारियों और कर्मचारियों और उनके परिवारों को भी इसमें रुकने की सुविधा दी जाती है। गेस्ट हाउस काफी बड़े एरिया में है, खूबसूरत है, यहां चार बांग्ले हैं यानी चार परिवार यहां आकर रुक सकते हैं। यहां हमलोगों की काफी आवभगत हुआ। हम दिन में तो घूमते रहते थे और खाना भी बाहर ही खाते थे लेकिन रात को खाना गेस्ट हाउस में खाते थे। शाम को घूमकर लौटते समय बाजार से खाने-पीने का सामान लेते आते थे। हमलोगों ने यहां काफी मस्तियां की। रात के समय में जंगल में होने की वजह से हमलोगों को जंगली जानवरों का थोड़ा डर भी लगा रहता था। हालांकि, डर बेकार साबित हुआ। वैसे बता दूं कि महाबलेश्वर में ठहरने की उत्तम व्यवस्था है।
एमएसआरटीसी अपने पूर्व अधिकारियों और कर्मचारियों और उनके परिवारों को भी इसमें रुकने की सुविधा दी जाती है। गेस्ट हाउस काफी बड़े एरिया में है, खूबसूरत है, यहां चार बांग्ले हैं यानी चार परिवार यहां आकर रुक सकते हैं। यहां हमलोगों की काफी आवभगत हुआ। हम दिन में तो घूमते रहते थे और खाना भी बाहर ही खाते थे लेकिन रात को खाना गेस्ट हाउस में खाते थे। शाम को घूमकर लौटते समय बाजार से खाने-पीने का सामान लेते आते थे। हमलोगों ने यहां काफी मस्तियां की। रात के समय में जंगल में होने की वजह से हमलोगों को जंगली जानवरों का थोड़ा डर भी लगा रहता था। हालांकि, डर बेकार साबित हुआ। वैसे बता दूं कि महाबलेश्वर में ठहरने की उत्तम व्यवस्था है।
इस तरह महाबलेश्वर का पहला दिन 8 फरवरी 2018 को इस तरह बीता। उस दिन हम केवल महाबलेश्वर के मुख्य बाजार में घूमे और रात को बाहर ही खाना खाया और आराम किया।
> दूसरा दिन (9 फरवरी, 2018): दूसरे दिन हम नास्ता करके सबसे पहले आर्थर पॉइंट और उसी के नजदीक स्थित सावित्री नदी पॉइंट समेत कई प्वाइंट का दीदार किया। फिर दोपहर बाद पुराना महाबलेश्वर जो कि महाबलेश्वर बस स्टैंड से करीब 5 किलोमीटर दूर है, वहां पहुंचे। पुराना महाबलेश्वर में हमलोगों ने पंचगंगा मंदिर ( पांच नदियों सावित्री, कृष्णा, कोयना, वेणा, गायत्री नदी... का उद्गम), उसी के बगल में महाबलेश्वर मंदिर, अतिबलेश्वर मंदिर और उन मंदिरों से कुछ ही कदम दूर , कृष्णाबाई मंदिर गए,जहां कृष्णा नदी की पूजा होती है। कृष्णाबाई मंदिर के पास में ही स्ट्राबेरी की खेती को पहली बार देखा। उसी दिन शाम को पुराने महाबलेश्वर लौटने के बाद शाम को बॉम्बे पॉइंट, जिसे सनसेट प्वाइंट भी कहा जाता है, वहां पहुंचे। सनसेट प्वाइंट पर हमलोगों के साथ निरंजन अंकल के मामाजी,जो कि पुणे के कात्रज चौक पर मिले थे, शामिल हो गए और महाबलेश्वर से वापस लौटते समय तक निरंजन अंकल के मामाजी हमलोगों के साथ ही रहे। काफी मस्तमौला, हंसमुख मिजाज के मामाजी हाल ही में रिटायर हुए हैं। जिंदगी के हर पल का लुत्फ उठाना कोई उनसे सीखे। उसी शाम को हमलोग सनसेट प्वाइंट जिसे बॉम्बे प्वाइंट भी कहते हैं, से महाबलेश्वर का नजारा देखा।
>आर्थरसीट प्वाइंट की खास बातें: इस जगह पर सर आर्थर अक्सर बैठा करते थे और सावित्री नदी को निहारा करते थे। इस नदी में उनकी पत्नी और बच्चे की डूबकर मौत हो गई थी। यहां पर लोग हल्के सामान को हवा में उछालकर उसका आनंद लेते हैं। यहां से महावलेश्वर की बलखाती, खूबसूरत और खतरनाक वादियों का मजा ले ही सकते हैं, साथ ही सावित्री प्वाइंट और Castle Point भी देख सकते हैं।
इसी जगह पर टाइगर स्प्रिंग प्वाइंट भी देखने को मिलेगा। ऐसा कहा जाता है कि पुराने जमाने में इस प्वाइंट पर जंगली जानवर आकर अपनी प्यास बुझाया करते थे। यहां का पानी काफी ठंडा और साफ-सुथरा रहता है। कई सैलानियों ने तो इस नैसर्गिक पानी का आनंद भी उठाया।
>पुराने महाबलेश्वर के पंच गंगा मंदिर, महाबलेश्वर मंदिर, अतिमहाबलेश्वर मंदिर, कृष्णाबाई मंदिर की खास बातें: पुराना महाबलेश्वरमें हम सबसे पहले श्री सदगुरु सिद्ध रामेश्वर मंदिर पहुंचे। महाबलेश्वर बस स्टैंड से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है पुराना महाबलेश्वर है जहां प्रसिद्ध पंच गंगा मंदिर है। यहां पांच नदियों का झरना है: कोयना, वैना, सावित्री, गायित्री और पवित्र कृष्णा नदी। पंचगंगा मंदिर में एक गाय के मुख से पाँच नदियों- कृष्णा, कोयना, सावित्री, गायत्री तथा वेण्णा का जल सालभर निकलता रहता है। लोग गाय मुख से निकलने वाले पानी को पीकर खुद को धन्य मानते हैं। कुछ लोग बोतल में गाय मुख का पानी भरकर ले जाते हैं। हमलोगों ने भी गाय मुख से निकलने वाला पानी का आनंद लिया। पानी पीकर हमलोगों की आत्मा काफी तृप्त हुई। एक गाय के मुख से पंच नदियों के उद्गम की वजह से इस मंदिर को पंच गंगा मंदिर कहते हैं।
पंचगंगा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 13 वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासक राजा सिंहदेव ने बनवाया था। जौली के चंदाराव मोरे और मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में इस मंदिर का विस्तार किया। मंदिर के रास्ते में आपको कई दुकानें मिलेगी, जहां से आप हस्तनिर्मित सामान खरीद सकते हैं। दुकानें सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक खुली मिलेगी।
पुराना महाबलेश्वर में ही यहाँ महाबलेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जहाँ स्वयं भू लिंग स्थापित है। पंचगंगा मंदिर के पास ही महाबलेश्वर और अतिबलेश्वर मंदिर है। महाबलेश्वर शिवजी का मंदिर है और अतिबलेश्वर विष्णु जी का मंदिर है। स्कन्दपुराण के मुताबिक महाबल और अतिबल दो राक्षस थे जिनका वध किया गया था। आसपास के लोग उन दोनों राक्षसों से काफी त्रस्त थे।
महाबलेश्वर मंदिर का संबंध छत्रपति शिवाजी से भी है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाराज शिवाजी ने 1665 में अपनी माता जीजामाता का इस मंदिर में सुवर्णतुला की थी। सुवर्णतुला मतलब तराजू के एक तरफ अपनी माता को रखा और दूसरी तरफ उतने ही वजन का सोना रखकर उसे मंदिर में दान कर दिया था। महाबलेश्वर मंदिर में स्वयंभू शिवजी विराजमान हैं।
पंचगंगा, महाबलेश्वर, अतिबलेश्वर मंदिर से थोड़ी ही दूर कृष्णाबाई मंदिर है। मंदिर तक छोटी सड़क जाती है। इस मंदिर में कृष्णा नदी की पूजा की जाती है। मंदिर में शिव लिंग है और कृष्ण की खूबसूरत मूर्ति है। यहां गोमुख से कुंड यानी वाटर टैंक में पानी गिरता रहता है। 1888 में कोंकण कोस्ट के रत्नागिरी के शासक ने इस मदिर का निर्माण करवाया था।
> सनसेट प्वाइंट जिसे मुंबई या बॉम्बे प्वाइंट की खास बातें : 1836 में डॉक्टर जेम्स मुरने द्वारा इस प्वाइंट को विकसित किया गया था। आप यहां से कोयना नदी घाटी देख सकते हैं। प्रतापगढ़, लॉडविक प्वाइंट और मकरंदगढ़ किला ठीक इस प्वाइंट के सामने है। यहां पर सैलानी सूर्यास्त का लुत्फ उठाते हैं और जमकर सेल्फी लेते हैं। लेकिन, हमलोगों को निराशा हाथ लगी। सूर्यास्त का लुत्फ नहीं उठा पाए। उस दिन सूर्यास्त पर बादल हावी हो गई। महाबलेश्वर मुख्य बाजार में जब स्थानीय लोगों से हमलोगों ने सनसेट पॉइंट का रास्ता पूछा था, तभी कई लोगों ने हमसे कहा था, शायद सूर्यास्त का नजारा आज देखने को नहीं मिलेगा। और उनका अंदाजा सही निकला। हालांकि, अंधेरा होने तक कई सैलानी वहां सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए रूके रहे।
आप यहां पर घुड़सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहां घोड़ों-घोड़ियों का नाम सलमान, कैटरीना जैसी सेलिब्रिटीज के नाम पर रखे जाते हैं।
आप यहां पर घुड़सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहां घोड़ों-घोड़ियों का नाम सलमान, कैटरीना जैसी सेलिब्रिटीज के नाम पर रखे जाते हैं।
-तीसरा दिन-10 तारीख को पोलो ग्राउंड, लॉडविक पॉइंट, एलिफैंट हेड पॉइंट, इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट, प्रतापगढ़ किला, माता तुलजा भवानी मंदिर, शिवाजी का स्मारक, अफजल खान का मकबरा। तीसरे दिन की शुरुआत हमने पोलो ग्राउंड से की। इसकी गोलाई करीब 1000 मीटर है। चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित है यह पोलोग्राउंड। यहां पर हमलोगों ने पैदल ही चीन-चार चक्कर लगाए और कुछ देर बैठकर कुदरत को निहारते रहे और यहां की नैसर्गिक खूबसूरती की चर्चा करते रहे। राज ने तो घुड़सवारी का भी आनंद उठाया। पोलो ग्राउंड से वापस हमलोग अपने गेस्ट हाउस में आए। वहां पर सब लोग फ्रेश हुए, चाय-नास्ता किया और फिर निकल पड़े अगली मंजिल की ओर। उस दिन हमलोगों ने लॉडविक पॉइंट, एलिफैंट हेड पॉइंट, इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट, प्रतापगढ़ किला, माता तुलजा भवानी मंदिर, शिवाजी स्मारक, अफजल खान के मकबरे का चलते-चलते ही दीदार किया।
लॉडविक पॉइंट और एलिफैंट हेड पॉइंट आपको एक ही जगह पर देखने को मिलेंगे। इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट को भी आप एक ही जगह पर देख सकते हैं।
>लॉडविक पॉइंट की खास बातें: जनरल पीटर लॉडविक की याद में यह प्वाइंट बनाया गया है। 90 साल की उम्र में 1873 में लॉडविक निधन हुआ था। कहा जाता है कि 1824 में लॉडविक अकेले ही यहां पर पहुंचा था। तब यहां घना जंगल था। 5 नवंबर 1817 को खिरकी के युद्ध में लॉडविक की अगुआई में 2800 ब्रिटिश सेना ने पेशवा की सेना को हराया था। लॉडविक 1803 में सब-अलटर्न के तौर पर ब्रिटिश सेना में शामिल हुए थे। यहां से आप एलिफैंट हेड हत्तीमाथा पॉइंट देख सकते हैं।
>एलिफैंट हेड या हत्तीमाथा पॉइंट की खास बातें: इस प्वाइंट की खासियत ये है कि यह देखने में बिल्कुल हाथी के सर जैसा लगता है। यहां से भी महाबलेश्वर की खूबसूरती आप निहार सकते हैं।
>इको पॉइंट की खास बातें: इस जगह पर आपकी आवाज गूंजेगी और वापस आपको सुनाई देगी बशर्ते आप जोरों से चिल्लाए। कुछ सैलानी तो इस प्वाइंट पर आते, महाबलेश्वर का नजारा देखते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन, कई सैलानी इस प्वाइंट की खासियत को जांचने के लिए सचमुच में जोरों से आवाज देते हैं।
>केट्स पॉइंट की खास बातें: इको प्वाइंट से आगे बढ़ेंगे तो आपको केट्स प्वाइंट मिलेगा। इस प्वाइंट का नाम तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर सर जॉन मैल्कम की बेटी के नाम पर केट्स रखा गया था। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में यह जगह 'नेक खींद' के नाम से जाना जाता था। इस प्वाइंट से आप कृष्णा नदी घाटी, Needles Hole Point, कमलगढ़ किला, डोम डैम, बल्कवादी डैम का दीदार कर सकते हैं।
>एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट की खास बातें: इको और केट्स प्वाइंट से आप एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट का नजारा देख सकते हैं। जैसा की नाम से ही पता चलता है कि देखने में यह हाथी के सर और सुई के जैसा नजर आता है। जब आप इसे देखेंगे तो यब बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप दिखेगा।
इको, केट्स प्वाइंट और एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट पर आप जाएं तो बंदरों से सावधान रहें। आपके हाथ में रखा सामान वो कभी आपसे झटक सकते हैं। प्रशासन ने बकायदा वहां सूचना लगा दिया है कि बंदरों से सावधान रहें।
>इन सब जगहों पर घूमने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतापगढ़ किला जाने की बारी आई। इको, केट्स प्वाइंट और एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट का आनंद लेकर हमलोगों ने दोपहर का खाना खाया। और फिर निकल पड़े शिवाजी जी के एतिहासिक किले की ओर। महाबलेश्वर से हमलोग अम्बनेली घाट होते हुए करीब 20 किलोमीटर के सफर के बाद पहुंचे प्रतापगढ़ किला। महाबलेश्वर से घाट, गांव, खेत, रिसॉर्ट, होते हुए हम वहां पहुंचेय़ प्रतापगढ़ किले के पास ही श्री भवानी माता मंदिर है, शिवाजी का स्टैच्यू है और अफजल खान का मकबरा है। उसी अफजल खान की जिसका छत्रपति शिवाजी ने वध किया था। जब हम किला देखने गए थे तब वहां निर्माण कार्य चल रहा था और अफजल खान का मकबरा भी किसी कारणवश बंद पड़ा था।
कुछ सीढ़ियां चढ़कर हम किले के दरवाजे पर जब पहुंचे तो वहां इस किले से संबंधित जानकारी से हमारा सामना हुआ। उसके बाद मुख्य दरवाजे से अंदर घुसते ही तोप ने हमारा स्वागत किया। लोगों ने इस तोप के साथ सेल्फी भी ली। किले की चहारदीवारी से हमलोगों ने महाबलेश्वर का नजारा देखा। वहीं पर शिवाजी का स्टैच्यू बना है। शिवाजी की कुल देवी श्री भवानी माता मंदिर भी किले के पास में ही है। मंदिर के पास बंदरों के उत्पात से आपको बचना होगा। मोबाइल पर हाथ साफ करने में बंदर माहिर होते हैं। प्रतापगढ़ किला, शिवाजी स्टैच्यू और श्री भवानी माता मंदिर का दीदार कर हमलोग वापस महाबलेश्वर के अपने गेस्ट हाउस में पहुंच गए। शाम ढलने लगी थी, सूर्य अस्त होने लगा था, और यहां से हमें रात होने से पहले वापस गेस्ट हाउस लौटना जरूरी थी।
क्योंकि 20 किलोमीटर घाट पार करना था। सड़कें काफी अच्छी हैं, लेकिन काफी घुमानदार है और दोनों तरफ से गाड़ियों का आना जाना लगता है। इसलिए हमलोग रात होने से पहले ही प्रतापगढ़ किले का दीदार कर वापस अपने गेस्ट हाउस में आ गए। आपको बता दं कि महाबलेश्वर और प्रतापगढ़ अलग-अलग तालुका में आते हैं लेकिन हैं दोनों सातारा जिले में ही।
चौथा दिन-11 तारीख को वापस: अब आई महाबलेश्वर से वापस घर नालासोपार पहुंचने की बारी। हमलोगों ने 10 को ही प्लान बना लिया था कि 11 तारीख को चाय-नास्ता गेस्ट हाउस में करके 11 बजे दोपहर तक गेस्ट हाउस छोड़ देंगे। प्लान के मुताबिक हमलोग 11 तारीख को गेस्ट हाउस छोड़ दिया। महाबलेश्वर के मुख्य बाजार में मध प्रसंस्करण केंद्र का दौरा किया और जाना कि किस तरह से बोतलबंद मध हमारे घरों तक पहुंचता है। महाबलेश्वर मधोत्पादक सहकारी सोसायटी लिमिटेड के यहां से मध भी खरीदा। यहां अलग अलग फलों के टेस्ट वाला मध आपको मिल जाएगा। महाबलेश्वर से लौट रहे हों, वहां से स्ट्राबेरी घर के लिए नहीं ला पाये, तो समझिये आपने महाबलेश्वर को काफी मिस किया। तो, वहां से हम लोगों ने जरूरत के हिसाब से स्ट्राबेरी भी खरीदा। लौटते समय एक स्थानीय कलाकार द्वारा हाथ से लकड़ी का अलग-अलग सामान बनाते देखना काफी अच्छा लगा। वो काफी तन्मयता के साथ सामान बनाने में जुटे हुए थे।
रात 9-10 बजे तक हमलोग नालासोपारा अपने घर पहुंचते और दोपहर के खाने का वक्त भी हो गया था। इसलिए हमलोग पुणे के कात्रज चौक से पहले एक ढाबे में खाना खाने के लिए कुछ देर रुके। कात्रज चौक के पास हमलोगों ने निरंजन अंकल को छोड़ा और फिर नालासोपारा के लिए चल पड़े। रात 9.30 बजे हम अपने नालासोपारा के घर पर पहुंच गए। इस तरह हमने महाबलेश्वर में कुल 101 किलोमीटर की दूरी तय की। अगर इस सफर में कुल तय की गई दूरी की बात करें तो यह 725 किलोमीटर (312+312+101) होती है। आने जाने में लगे समय की बात करें तो कुल 18-20 घंटे (जाने में 9-10 घंटे और आने में 9-10 घंटे।
इस तरह महाबलेश्वर का चार दिनों का सैर-सपाटा अपनों के संग मस्ती के साथ खत्म हुआ।
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