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गुरुवार, 8 मार्च 2018

त्र्यंबकेश्वर: तीन लिंगों वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग मंदिर

महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जाने के बारे में तो मैं काफी पहले से सोच रहा था। मेरे कुछ मित्र मुझसे कई बार वहां चलने की चर्चा भी कर चुके थे लेकिन, बात चर्चा से आगे नहीं बढ़ पाई थी। एक दिन जब मैं महाबलेश्वर में चार दिन बीताकर वापस अपने घर मुंबई से सटे उपनगर नालासोपारा आया तो मेरे पत्रकार मित्र नीरज राय ने त्र्यंबकेश्वर चलने की बात की, तो मैं भी तैयार हो गया। कब चलना है, इस बारे में भी फैसला हो गया। अगले शनिवार-रविवार को सुबह-सुबह ही त्र्यंबकेश्वर के लिए चलने का हमलोगों ने मन बना लिया। 24 फरवरी,  2018 को हमलोग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का दर्शन करके उसी दिन वापस भी लौट आए। 

त्र्यंबकेश्वर यात्रा से एक हफ्ते पहले हमलोग काफी माथापच्ची कर रहे थे कि वहां जाया कैसे जाए। अगर कहीं नजदीक भी जाना हो, तो  मेरे मित्र नीरज अक्सर ट्रेन से यात्रा को तरजीह देते हैं। लेकिन, मैंने कहा कि मेरे यहां मतलब नालासोपारा से भी नासिक के लिए, जहां से त्र्यंबकेश्वर महज 25-30 किलोमीटर दूर है, राज्य परिवहन विभाग की बस जाती है। इस पर हमदोनों ने बस की टाइमिंग, किराया, नासिक पहुंचाने में लगने वाले समय बगैरह पता करने के लिए नालासोपारा बस स्टैंड पहुंचें। वहां से पता चला कि नासिक के लिए हर रोज सुबह 5 बजे महराष्ट्र राज्य ट्रांसपोर्ट की बस जाती है, इस 2x2 बस की प्रति व्यक्ति किराया 190 रुपए है और महज 4-5 घंटे में नासिक पहुंचा देती है। आप को बता दें कि नालासोपारा से नासिक की दूरी करीब 200 किलोमीटर है 
और नासिक से त्र्यंबकेश्वर की दूरी करीब 25 किलोमीटर। नासिक से त्र्यंबकेश्वर के लिए अलग बस लेनी होती है या फिर आप ऑटो,टैक्सी रिजर्व करके भी जा सकते हैं। 

तो, इस तरह 24 फरवरी 2018 को सुबह 5.00 बजे नालासोपारा से बस निकले नासिक होते हुए त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए। जिस बस से हमलोग निकले उसकी एक खास बात आपको पहले बता देता हूं। उस बस पर फ्री वाई-फाई सेवा मौजूद थी। उस फ्री वाई-फाई सेवा का लाभ कैसे लें, उसकी विस्तार से जानकारी हर सीट के पीछे दी हुई थी। हर विंडो के ऊपर भी इसकी जानकारी दी हुई थी ताकि किसी यात्री को वाई-फाई सेवा लेने में दिक्कत ना हो और ना ही इसके लिए बार-बार बस कंडक्टर से पूछने की जरूरत पड़े। लेकिन, पूरे बस में शायद ही किसी ने उस फ्री वाई-फाई सेवा का इस्तेमाल किया हो। इसकी मुझे दो वजह समझ में आती है, एक तो सुबह-सुबह का समय था, तो लोग नींद लेना ज्यादा उचित समझ रहे थे और दूसरा, कि डेटा काफी सस्ता हो गया है, तो लोग खुद के ही डेटा का इस्तेमाल कर रहे थे। 

नालासोपारा पश्चिम के बस स्टैंड से निकलकर बस नालासोपारा पूर्व, संतोष भवन होते हुए मुंबई-अहमदाबाद हाइवे पर पहुंची। हाइवे पर सायं-सायं गाड़ियां भाग रही थी, हाइवे के दोनों तरफ कुछ दुकानें खुलनी शुरू हो गई थी, कुछ पेट्रोल पंप पर भी काम शुरू हो गया था। नालासोपारा बस स्टैंड से करीब सवा घंटे का सफर तय कर हमलोग भिवंडी बस स्टैंड पर 6.15 बजे पहुंचे, कुछ पल के लिए वहां रुके, यहां दत्त मंदिर में सुबह-सुबह दर्शन किया। वहां पर भी कुछ लोग उस बस में सवार हुए। भिवंडी से आगे बढ़कर बस ने मुबंई नासिक हाइवे की राह पकड़ी। हाइवे तो हाइवे होती है। हर हाइवे की एक ही कहानी है। सबको अपनी-अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी होती है, इसलिए शहर की सड़कों की तरह ट्रैफिक जाम कम ही होती है, सारी गाड़ियां सरपट भाग रही थी। 


भिवंडी बस स्टैंड से करीब 45 मिनट चलने के बाद हमलोग शहापुर बस स्टैंड 7.05 बजे पहुंचे। वहां से भी उस बस में कुछ यात्री चढ़े। बस में सफर करते हुए दो घंटे से ज्यादा का वक्त हो चुका था। बस के स्टाफ के साथ-साथ यात्रियों को भी चाय-नास्ते की जरूरत महसूस होने लगी थी। तो, अगली बार बस चाय-नास्ते के लिए ही रुकी। मुंबई-नासिक हाइवे पर शहापुर से कुछ दूर चलकर खरडी एक जगह है, वहां बस स्टैंड नहीं है, हमलोग वहीं पर एक होटल के पास चाय-नास्ता के लिए रुके। वहां करीब 7.30 बजे पहुंचे। 


हम आपको बता दें कि मुंबई से नासिक जाते समय आपको खूबसूरत कसारा घाट (पर्वत श्रृंखला के बीच बनी सड़क घाट कहलाती है) का दर्शन करने का शानदार मौका मिलता है। पहाड़ को काटकर बनाई गई पतली सड़क, उन सड़कों पर दोनों तरफ से आती-जाती गाड़ियां, कभी चढ़ाई-तो कभी नीचे उतरने का अविश्वसनीय आनंद, ऊंचे-ऊंचे पेड़, हर तरफ हरियाली, बारिश के दिनों में पहाड़ से गिरता पानी इन सबसे अक्सर ऐसे  घाट से गुजरने वालों के सामने एकदम मनोरम दृश्य पैदा होता है। पर्वत की तलहटी में कुछ गांव दिख जाएंगे, कुछ खेती दिख जाएगी। कई बार आप सोच में पड़े जाएंगे कि लोग वहां कैसे जीवनयापन करते होंगे। कल्पना कीजिए, बारिश में उनकी हालत क्या होती होगी। कभी वहां जाकर उनके बीच रहकर उनकी जिदंगी को नजदीक से देखने की कोशिश करनी चाहिए। 


तो हम बात कर रहे थे, त्र्यंबकेश्वर के जाने के समय कसारा घाट से पहले खरड़ी पहुंचकर वहां चाय-नास्ते की। वहां करीब 15-20 मिनट रुकने के बाद हम फिर से अपनी बस में सवार हुए और कसारा घाट का आनंद लेते हुए निकल पड़े नासिक होते हुए त्र्यंबकेश्वर के लिए। कसारा घाट से गुजरते समय कुछ यात्री कसारा घाट का अपने मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, कुछ लोग तस्वीरें ले रहे थे। कसारा घाट के सफर का सही आनंद शब्दों से नहीं, बल्कि उस घाट से गुजरते हुए ही लिया जा सकता है। 
 
आपको बता दूं कि खरड़ी से नासिक बस स्टैंड करीब 80 किलोमीटर दूर है। खरड़ी के बाद कसारा घाट होते हुए हमलोग करीब सुबह 9.15 बजे नासिक के महामार्ग बस स्टैंड पहुंचे। यहां से आपको त्र्यंबकेश्वर, पंचवटी जाने के रास्ते का डायरेक्शन मिलना शुरू हो जाएगा। सड़क किनारा बोर्ड लगाकर इसकी जानकारी दी गई है। हमने ऊसी बोर्ड को देखकर महामार्ग बस स्टैंड पर उतरने का फैसला किया। हालांकि, वह बस और आगे कि लिए थी। 

हमलोगों को मालूम नहीं था कि नासिक की किस जगह से त्र्यंबकेश्वर जाने में कम समय और कम पैसे लगेंगे। इसलिए हमलोग महामार्ग बस स्टैंड पर ही बस से उतर गए थे। वहां उतरकर हमलोगों ने कुछ स्थानीय लोग के अलावा ऑटो,टैक्सी वालों से त्र्यंबकेश्वर जाने के बारे में पूछा, तो उनलोगों ने बताया कि आपको पुराना सीबीएस बस स्टैंड जाना होगा,जहां से सरकारी बस मिलेगी और कम समय में वहां पहुंच सकेंगे। वैसे तो नासिक में आपको त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए कहीं से भी टैक्सी, ऑटो मिल जाएगा, लेकिन आप उनके मनमानी किराए का शिकार हो सकते हैं। हमलोगों ने उस मनमानी किराए का शिकार होने से बचने के लिए पुराना सीबीएस बस स्टैंड चलने का फैसला किया। हम वहां के लिए पैदल ही निकल पड़े। सुबह-सुबह का समय था, तो थोड़ी वाकिंग भी हो जाती, इसलिए। महामार्ग बस स्थानक से हमलोग पैदल चलकर 9.40 बजे पुराना सीबीएस बस स्टैंड पहुंचे। वहां से त्र्यंबकेश्वर के लिए कुछ ही पल में बस मिल गई आपको बता दूं कि नासिक में महामार्ग बस स्टैंड के अलावा कई बस स्टैंड है-जैसे पुराना सीबीएस और नया सीबीएस बस स्टैंड। 

हमलोग 11.15 बजे  त्र्यंबकेश्वर पहुंचे। वहां जाकर पहले होटल लिया। वहां पर फ्रेश बगैरह हुए, कुछ रिलैक्स किया और फिर त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर के दर्शन के लिए निकल पड़ा। जो लोग काफी पहले त्र्यंबकेश्वर जा चुके हैं, उनलोगों ने हमें बताया था कि मंदिर में जाने के लिए काफी पैदल चलना पड़ता है और कुछ सीढ़ियों की चढ़ाई भी करनी होती है, लेकिन जब हम गए तो देखा कि मंदिर से कुछ ही दूरी पर बस स्टैंड है,जहां पर हमलोग नासिक से त्र्यंबकेश्वर पहुंचने पर बस से उतरे थे। जिस होटल में हमलोग रुके थे, वो भी मंदिर से मुश्किल से पांच मिनट की दूरी पर था। इसलिए मंदिर का दर्शन करने में हमलोगों को ज्यादा समय नहीं लगा। लेकिन, हमलोगों के दर्शन करने के बाद श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़नी शुरू हो गई थी। 

मंदिर के पास के दुकानदारों से जब मैंने वहां पर कब ज्यादा भीड़ होती है, तो उनलोगों ने बताया कि शनिवार को शाम और रविवार को। यानी अगर आप जल्दी से दर्शन करना चाहते हैं, और भीड़ से बचना चाहते हैं, तो शनिवार और रविवार को जाने की बजाय किसी दूसरे दिन जाएं। वैसे, शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का जबर्दस्त ताँता लगा रहता है।




दर्शन के बाद हम लोग वापस होटल के गए, थोड़ा आराम किया और फिर खाना खाने के लिए बगल के रेस्टोरेंट में चले गए। वहां से खाना खाकर हमलोगों पैदल ही त्र्यंबकेश्वर का भ्रमण किया। फिर उसी दिन मतलब शनिवार को ही वहां से करीब तीन बजे दोपहर को हमलोग नासिक होते हुए अपने घर नालासोपारा के लिए निकल पड़े। त्र्यंबकेश्वर बस स्टैंड से नासिक के लिए बस पकड़ी हमलोगों ने और नासिक महामार्ग बस स्टैंड से नालासोपारा के लिए बस। रात के करीब 11 बजे हमलोग अपने-अपने घर पहुंचकर खाना खाया और नींद की आगोश में चले गए। इस तरह हमारी त्र्यंबकेश्वर यात्रा पूरी हुई। 
((Watch people's activities in front of Trimbkeshwar Temple, Nashik, Maharashtra
> थोड़ी जानकारी त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर (Trimakeshwar) के बारे में: (यह जानकारी विकिपीडिया से ली गई है। )

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की भी बड़ी महिमा हैं। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गंढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लक्ष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई। भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।त्र्यंबकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

निर्माण
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर काले पत्‍थरों से बना है। मंदिर का स्‍थापत्‍य अद्भुत है। इस मंदिर ke panchakroshi me कालसर्प  शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है। जिन्‍हें भक्‍तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।

मंदिर
गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

स्थिति
त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। कहा जाता है-

कथा
‘प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।’ -दंत कथा

गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

पौराणिक कथा
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है-

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि  गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की।

उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार  ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।

अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत  में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।

सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर  ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। 
वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि  गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।

तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न  हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान्‌ शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा
 करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।'

इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध  न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी
 नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।

उत्सव
इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।

‘कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने  के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।’- दंत कथा

शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते रहते हैं।

गम्यता
त्र्यंबकेश्वर गाँव नासिक से काफी नजदीक है। नासिक पूरे देश से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप नासिक पहुँचकर वहाँ से त्र्यंबक के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं। टैक्सी या ऑटो लेते समय मोल-भाव का ध्यान रखें। 
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