मंगलवार, 20 मार्च 2018

महाबलेश्वर; तीरथ करना हो या नैसर्गिक खूबसूरती का लुत्फ उठाना या फिर इतिहास में झांकना...यहां जरूर आइए



खूबसूरत और डरावनी घाटियां,  बलखाती वादियां,दर्जनों प्वाइंट को एन्जवॉय करते सैलानी, करिश्माई कुदरत के अलावा  शांत और साफ-सुथरे मौसम, ठंडी हवाओं, छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतापगढ़ किला, स्ट्राबेरी की खेती, पुरातन मंदिर ये सब मिलकर महाराष्ट्र के सातारा जिले में स्थित क्वीन ऑफ हिल स्टेशन के नाम से मशहूर महाबलेश्वर को काफी मनोरम बनाते हैं। प्रतापगढ़ किला महाबलेश्वर से करीब 20 किलोमीटर दूर है। प्रतापगढ़ किले के बगल में ही छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी श्री भवानी माता मंदिर है। कहा जाता है कि यहां पर  श्री भवानी माता मंदिर का निर्माण शिवाजी ने करवाया था। मंदिर के म्युजियम भी है। 



क्वीन ऑफ हिल स्टेशंस या हिल स्टेशन की रानी के नाम से मशहूर महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित हिल स्टेशन महाबलेश्वर तीन जिलों- सतारा, रत्नागिरी और रायगड की सीमा से सटा है। नैसर्गिक खूबसूरती, डरावनी घाटियां, शीतल पवन, साफ-सुथरा और शांत मौसम के अलावा, बहुत सारे प्वाइंट, स्ट्राबेरी की खेती जैसी खासियतों को समेटे महाबलेश्वर के नजदीक ही है प्रतापगढ़ का वो किला है जहां महाराज छत्रपति शिवाजी ने अफजल खान को बघनखा से पेट फाड़कर मौत के घाट उतार दिया था। प्रतापगढ़ किला से कुछ दूर पहले अफजल खान का भी मकबरा है। जब हमलोग प्रतापगढ़ किला गए थे तब अफजल खान के मकबरे के पास जाने की मनाही थी। 
यहां बने प्वाइंट से आप महाबलेश्वर की बलखाती घाटियों का आनंद ले सकते हैं, कुछ प्वाइंट तो खास मकसद से भी बनाए गए हैं, कुछ प्वाइंट से आपको घाटियों के नजारा के अलावा ऐतिहासिक किले का भी दीदार होगा। सनसेट प्वाइंट, इको  प्वाइंट पर, पोलो ग्राउंड पर घुड़सवारी का आनंद ले सकते हैं। 

पुराने महाबलेश्वर में हमलोगों ने पंच गंगा मंदिर, महाबलेश्वर मंदिर, अतिमहाबलेश्वर मंदिर, कृष्णाबाई मंदिर का दर्शन किया। इनकी खास बातों को हम इसी लेख में आगे बताएंगे। 

>कैसे बना महाबलेश्वर का प्लान:
दरअसल, महाबलेश्वर से जाने से पहले मुझे शेगांव की यात्रा पर जाना था। नालासोपारा पश्चिम में साईधाम मंदिर ने शेगांव यात्रा का इंतजाम किया था। इसी मंदिर द्वारा आयोजित शिर्डी और अष्टधाम की यात्रा पर मैं अक्सर जाया करता हूं। शेगांव जाने के लिए मैंने मंदिर के इस यात्रा के आयोजन के लिए जिम्मेदार शख्स को मैंने शेगांव जाने के बारे में पूर्वसूचित कर दिया था। मुझे लगा कि उन्होंने मेरा नाम शेगांव यात्रा पर जाने वालों की लिस्ट में लिख लिया होगा। लेकिन, जब शेगांव जाने के लिए फाइनल लिस्ट तैयार हुआ तो उसमें मेरा नाम शामिल नहीं था। थोड़ी जानकारी शेगांव और शेगांव यात्रा के दौरान जिन जगहों पर घूमने जाना था उसके बारे में। उसके बाद आगे बढ़ेंगे। 

चार दिनों के शेगांव यात्रा के दौरान हम शेगांव, औरंगाबाद, देवगड और शिर्डी की यात्रा करते। इसके लिए प्रति व्यक्ति साईधाम मंदिर की तरफ से केवल 2800 रुपए वसूला जा रहा था। इसमें खाना-नास्ता-चाय-रहना सबकुछ शामिल था। यात्रा की शुरुआत हम शाम 5 बजे नालासोपारा पश्चिम के साई मंदिर से करते। उसके बाद रात 10 बजे शेगांव पहुंचते। उसके अगले दिन शेगांव में गजानन महाराज के दर्शन करते और वहीं काफी बड़े क्षेत्र में फैले आनंद सागर पार्क घूमते। फिर उसी रात हम औरंगाबाद पहुंचते और उसके दूसरे दिन अजंता-एलोर की गुफाएं देखते। इसके अलावा औरंगजेब द्वारा बनवाए गए बीवी का मकबरा भी उसी दिन देखते। फिर उस रात देवगड पहुंचते और अगले दिन देवगड में दत्त मंदिर का दर्शन करते। उसके अगले दिन शिर्डी साई बाबा का दर्शन करते हुए वापस शाम 7-8 बजे नालासोपारा साई मंदिर में पहुंच जाते। लेकिन, शायद उस बार शेगांव यात्रा मेरी किस्मत में नहीं थी। हालांकि काफी दिनों से शेगांव जाने की इच्छा मैं मन में पाले हुए था। 

आपको बता दूं कि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित शेगांव महान संत श्री गजानन महाराज से जुड़ा पवित्र स्थान है । शेगांव के संत श्री गजानन महाराज को भगवान् दत्तात्रेय के तीन अवतारों में से एक माना जाता है, अन्य दो अवतार हैं शिर्डी के साईं बाबा तथा अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ। ऐसा माना जाता है कि  महाराज को सर्वप्रथम शेगांव में सन 1878 में देखा गया था और तब ही से उनके असीम ज्ञान, सादगी तथा अद्वितीय अध्यात्मिक शक्ति से समस्त जनमानस तथा उनके भक्त लाभान्वित होते आये हैं|

शेगांव ना जाने की बात से मैं थोड़ा मैं मायूस था और सोच रहा था कि कहां घूमने जाऊं। तभी  21 जनवरी 2018 रात 11.23 मिनट पर मेरे डॉक्टर मित्र डॉ अभिषेक सिंह का महाबलेश्वर चलने के लिए फोन आया। शेगांव ना जाने से मैं थोड़ा मायूस था और कहीं घूमने जाने के बारे में भी मैं सोच रहा था। महाबलेश्वर की नैसर्गिक 
खूबसूरती और तीर्थस्थल के रूप में उसकी महत्ता के बारे में मैं काफी सुन चुका था, इसलिए जैसे डॉक्टर साहब का महाबलेश्वर चलने के लिए फोन आया, मैं उनको 'ना' नहीं कह सका। डॉक्टर साहब ने बताया कि हमदोनों के अलावा, महम दोनों के एक और मित्र राज, डॉक्टर साहब के ससुर और उनके ससुर के मामा जी भी साथ में महाबलेश्वर की सैर पर चलेंगे। महाबलेश्वर के लिए हमलोगों को डॉक्टर साहब की कार से निकलना था। मैं, डॉक्टर साहब और राज तो नालासोपारा से ही साथ में निकले, लेकिन डॉक्टर साहब के ससुर और उनके मामा जी को पुणे से कार में बैठाया। बता दूं कि नालासोपारा से पुणे, सातारा, वई, पंचगनी होते हुए महाबलेश्वर की खूबसूरत वादियों में पहुंचे। 

>नालासोपारा से खोपोली आउटर: इस तरह प्लान के मुताबिक, हम 8 फरवरी को डॉक्टर साहब की कार से सुबह 6 बजे नालसोपारा से निकले। अहमदाबाद-मुंबई हाईवे से होते हुए हम मुंबई -पुणे एक्सप्रेस वे पर पहुंचे। आपको बता दूं कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे करीब 94 किलोमीटर लंबा है। मुंबई की तरफ से कलम्बोली से एक्सप्रेसवे की शुरुआत होती है जो कि खारघर से तीन किलोमीटर आगे है। इस एक्सप्रेस वे पर दोपहिया वाहनों की आवाजाही मनाही है और गाड़ी की स्पीड भी 80 किलोमीटर प्रति घंटा से कम नहीं रखना है। किसी आपात्काल में मदद के लिए एक्सप्रेस के दोनों तरफ थोड़ी थोड़ी दूरी पर पोल पर मोबाइल नंबर दिया 
हुआ है। कोई घटना घट गई हो, गाड़ी खराब हो गई है, तो तुरंत आप उस नंबर कॉल करके मदद मांग सकते हैं। 

एक्सप्रेसवे पर पहुंचने से पहले हमलोग ठाणे, नवी मुंबई, खारघर से भी होकर गुजरे। हमलोग करीब 112 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके थे। सुबह के करीब 9 बज चुके थे और बिना रूके लगातार चलते जा रहे थे। हालांकि बीच-बीच में कुछ रेडलाइट पर हमलोगों को रूकना पड़ा था, बाकी कार से नहीं उतरे थे। तीन घंटे तक चलने के बाद चाय-नास्ते की जरूरत महसूस होने लगी। मुंबई-पुणे एक्सप्रेस पर वैसे तो रूकना नहीं है लेकिन एक्सप्रेस वे पर ही खोपोली आउटर पर रिफ्रेशमेंट का बढ़िया इंतजाम है। वहां पर लोग अपनी-अपनी गाड़ियां रोककर कुछ पल रिलैक्स होते हैं। चाय, नास्ता करते हैं, वहां पर कुछ सामान खरीदते हैं, सेल्फी लेते हैं, कुछ तस्वीरें खींचते हैं और फिर अपनी मंजिल की ओर बढ़ चलते हैं। तो, हमलोगों ने भी वहां चाय, नास्ता किया। कुछ सेल्फी और तस्वीरें ली और पुणे की ओर बढ़ गए। हमें एक्सप्रेसवे जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी पार करना था, नहीं तो जाम में फंसने का डर था। अगर जाम में फंस जाते तो फिर महाबलेश्वर पहुंचने में देरी होती। डॉक्टर साहब के ससुर निरंजन अंकल ने हमलोगों को आगाह कर दिया था कि हर हाल में सुबह 11 बजे से पहले एक्सप्रेस वे पार कर जाना है, क्योंकि फिर एक्सप्रेसवे के कुछ हिस्सों में कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हो जाता है जिससे ट्रैफिक जाम होने की आशंका बढ़ जाती है। तो, हमलोगों ने खोपोली आउटर पर चाय-नास्ता करने में ज्यादा समय खर्च नहीं किया और अगले पड़ाव की ओर निकल पड़े।  

निरंजन अंकल के बारे में थोड़ी जानकारी दे दूं। ये महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट में अच्छे पद पर काम करके रिटायर हो चुके हैं। महाराष्ट्र के कोने-कोने हर रूट की जानकारी इनको है। सैर-सपाटा इनके जीवन का हिस्सा है। परिवार के साथ, दोस्तों के साथ कहीं भी घूमने के लिए निकल जाना एक तरह से इनके लिए बायें का
हाथ खेल है। अक्सर दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर चले जाते हैं। कम खर्च और ज्यादा मस्ती के साथ अगर आपको कहीं घूमने जाना हो, तो निरंजन अंकल एकदम परफेक्ट शख्सियत हैं। एक मंजे हुए टूरिस्ट गाइड की तरह वो आपका मार्गदर्शन करेंगे। आत्मीयता, विनम्रता उनमें कुट-कुट कर भरी हुई है। हमेशा मदद करने को ये तत्पर रहते हैं। निरंजन अंकल कभी आपको महसूस नहीं होने देंगे, कि वो आपके अपने नहीं हैं। मैं उनके मार्गदर्शन में महाराष्ट्र का मशहूर कोंकण किनारा घूम चुका हैं। वैसे, निरंजन अंकल पुणे से हमलोगों के साथ होने वाले हैं। उनके बिना महाबलेश्वर का सैर-सपाटा कतई पूरा नहीं हो सकता है। निरंजन अंकल ना केवल महाराष्ट्र बल्कि देशभर में कई जगहों की सैर कर चुके हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण, पूर्व से लेकर पश्चिम के बहुत ज्यादातर शहरों का दीदार वो कर चुके हैं। 

>खोपोली आउटर से कात्रज चौक, पुणे: हमें पहले पुणे के कात्रज चौक जाना था। जहां से निरंजन अंकल हमलोगों के साथ होने वाले थे। कात्रज चौक के पास ही निरंजन अंकल के मामाजी का घर है, जहां पर निरंजन अंकल रूके हुए थे। निरंजन अंकल के मामाजी उस दिन तो हमलोगों के साथ नहीं आए, लेकिन अगले दिन से आखिरी दिन तक हमलोगों के साथ ही महाबलेश्वर का आनंद लिया। साथ रहे,साथ घूमे, साथ खाना खाए। आउटर खोपोली से खंडाला (खंडाला घाट का रियल नाम भोर घाट है), लोणावला, लवासा होते हुए करीब 61 किलोमीटर की दूरी तय कर हमलोगों ने 10.26 बजे सुबह मुंबई- पुणे एक्सप्रेस वे पार किया। सुबह सवा 11 बजे हमलोग कात्रज चौक पहुंचे, जहां कुछ देर रूककर चाय पी और फिर 11.32 बजे सुबह निरंजन अंकल को साथ लेकर महाबलेश्वर की तरफ निकल पड़े। अगर हमलोगों को कात्रज चौक नहीं जाना होता तो एक्सप्रेस से ही महाबलेश्वर के लिए अलग रास्ता है, उस रास्ते से होकर गुजरते तो करीब 8 किलोमीटर कम चलना पड़ता। 

पुणे से निकलकर हमलोगों को पहले सातारा की सीमा में प्रवेश करना था और फिर महाबलेश्वर की तरफ चढ़ना था। पुणे से सातारा करीब 100 किलोमीटर है। कात्रज चौक से कात्रज और खंबात घाट होते हुए हमलोगों ने सातारा जिले की सीमा में प्रवेश किया।   

>कात्रज चौक (पुणे) से अभिरुचि होटल: पुणे की सीमा खत्म हुई और हम पहुंचे सतारा जिले की सीमा में जहां हमारा स्वागत यहां की शुगर फैक्टरी और नीरा नदी ने किया। यह वही नीरा नदी है जहां पर छत्रपति शिवाजी महाराज से टकराने के लिए अफजल खान अपनी टुकड़ी के साथ ठहरा था। अफजल खान अहमदनगर से अपनी सेना के साथ यहां पहुंचा था। सतारा सीमा में हम जैसे-जैसे महाबलेश्वर के नजदीक पहुंच रहे थे, दोपहर के खाने का समय हो चला था। हमलोगों ने महाबलेश्वर से 44 किलोमीटर, पंचगनी से 23 किलोमीटर और वई (तालुका) से 10-11 किलोमीटर पहले अभिरुचि होटल में खाना खाया। हमलोगों ने स्थानीय खाना का लुत्फ उठाया। आप अगर कहीं सैर के लिए जाते हैं तो स्थानीय खाने का लुत्फ उठाना ना भूलें। 

>अभिरुचि होटल से महाबलेश्वर: दोपहर के खाने के बाद महाबलेश्वर जाने के लिए आगे बढ़े। वई , पंचगनी होते हुए हम महाबलेश्वर पहुंचे। आपको बता दूं कि वई से ही घाट शुरू हो जाता है। पंचगनी नामी-गिरामी शैक्षणिक संस्थान, फल प्रसंस्करण उद्योग और फिल्मों की शूटिंग के लिए मशहूर है। पंचगनी में ही बहुत
बड़ा टेबल लैंड (पहाड़ पर या घाट पर बहुत बड़ा समतल जमीन जब एक ही जगह पर होती है, तो वह टेबल लैंड कहलाता है), अक्सर यहां फिल्मों की शुटिंग होती है। यहां के शैक्षणिक संस्थानों में रईस और सिलेब्रिटीज के बच्चे पढ़ते हैं। 

दोपहर के सवा तीन बज चुके थे और पहुंच चुके थे महाबलेश्वर के गेस्ट हाउस में । इस तरह हमने अपने घर नालासोपारा से महाबलेश्वर गेस्ट हाउस में पहुंचने के लिए करीब 312  किलोमीटर की दूरी तय की। और इतनी दूरी तय करने में हमें कुल 9 घंटे खर्च करने पड़े। इस 9 घंटे के दौरान हमलोगों थोड़ी-थोड़ी देर के लिए तीन जगहों- खोपोली आउटर, कात्रज चौक पुणे और अभिरुचि होटल सातारा में रुके। 

>महाबलेश्वर के गेस्ट हाउस के बारे में थोड़ी जानकारी- 
दरअसल, इस गेस्ट हाउस का नाम ग्वॉल्हेर लॉज है। महाबलेश्वर बस स्टैंड से यह करीब डेढ़ किलोमीटर दूर जंगल में स्थित है। यह किसी पारसी का कॉटेज है जिसे महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडल (एमएसआरटीसी) ने लीज पर लिया हुआ है। महामंडल के अधिकारियों, कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए यह गेस्ट हाउस है। मामूली पैसे लेकर उनको यहां रुकने की सुविधा दी जाती है। अब आप जानना चाहते होंगे कि हमलोगों को इसमें कैसे रहने दिया गया। तो हमारे दोस्त डॉक्टर साहब के ससुर निरंजन अंकल, जिनके बारे में हम पहले आपको बता चुके हैं, वो एमएसआरटीसी में काम कर चुके हैं।


एमएसआरटीसी अपने पूर्व अधिकारियों और कर्मचारियों और उनके परिवारों को भी इसमें रुकने की सुविधा दी जाती है। गेस्ट हाउस काफी बड़े एरिया में है, खूबसूरत है, यहां चार बांग्ले हैं यानी चार परिवार यहां आकर रुक सकते हैं। यहां हमलोगों की काफी आवभगत हुआ। हम दिन में तो घूमते रहते थे और खाना भी बाहर ही खाते थे लेकिन रात को खाना गेस्ट हाउस में खाते थे। शाम को घूमकर लौटते समय बाजार से खाने-पीने का सामान लेते आते थे।  हमलोगों ने यहां काफी मस्तियां की। रात के समय में जंगल में होने की वजह से हमलोगों को जंगली जानवरों का थोड़ा डर भी लगा रहता था। हालांकि, डर बेकार साबित हुआ। वैसे बता दूं कि महाबलेश्वर में ठहरने की उत्तम व्यवस्था है। 

इस तरह महाबलेश्वर का पहला दिन 8 फरवरी 2018 को इस तरह बीता। उस दिन हम केवल महाबलेश्वर के मुख्य बाजार में घूमे और रात को बाहर ही खाना खाया और आराम किया। 

> दूसरा दिन (9 फरवरी, 2018): दूसरे दिन हम नास्ता करके सबसे पहले आर्थर पॉइंट और उसी के नजदीक स्थित सावित्री नदी पॉइंट समेत कई प्वाइंट का दीदार किया। फिर दोपहर बाद पुराना महाबलेश्वर जो कि महाबलेश्वर बस स्टैंड से करीब 5 किलोमीटर दूर है, वहां पहुंचे। पुराना महाबलेश्वर में हमलोगों ने पंचगंगा मंदिर ( पांच नदियों सावित्री, कृष्णा, कोयना, वेणा, गायत्री नदी... का उद्गम), उसी के बगल में महाबलेश्वर मंदिर, अतिबलेश्वर मंदिर और उन मंदिरों से कुछ ही कदम दूर , कृष्णाबाई मंदिर गए,जहां कृष्णा नदी की पूजा होती है। कृष्णाबाई मंदिर के पास में ही स्ट्राबेरी की खेती को पहली बार देखा। उसी दिन शाम को पुराने महाबलेश्वर लौटने के बाद शाम को बॉम्बे पॉइंट, जिसे सनसेट प्वाइंट भी कहा जाता है, वहां पहुंचे। सनसेट प्वाइंट पर हमलोगों के साथ निरंजन अंकल के मामाजी,जो कि पुणे के कात्रज चौक पर मिले थे, शामिल हो गए और महाबलेश्वर से वापस लौटते समय तक निरंजन अंकल के मामाजी हमलोगों के साथ ही रहे। काफी मस्तमौला, हंसमुख मिजाज के मामाजी हाल ही में रिटायर हुए हैं। जिंदगी के हर पल का लुत्फ उठाना कोई उनसे सीखे। उसी शाम को हमलोग सनसेट प्वाइंट जिसे बॉम्बे प्वाइंट भी कहते हैं, से महाबलेश्वर का नजारा देखा। 

>आर्थरसीट प्वाइंट की खास बातें: इस जगह पर सर आर्थर अक्सर बैठा करते थे और सावित्री नदी को निहारा करते थे। इस नदी में उनकी पत्नी और बच्चे की डूबकर मौत हो गई थी।  यहां पर लोग हल्के सामान को हवा में उछालकर उसका आनंद लेते हैं। यहां से महावलेश्वर की बलखाती, खूबसूरत और खतरनाक वादियों का मजा ले ही सकते हैं, साथ ही सावित्री प्वाइंट और Castle Point भी देख सकते हैं।  

इसी जगह पर टाइगर स्प्रिंग प्वाइंट भी देखने को मिलेगा। ऐसा कहा जाता है कि पुराने जमाने में इस प्वाइंट पर जंगली जानवर आकर अपनी प्यास बुझाया करते थे। यहां का पानी काफी ठंडा और साफ-सुथरा रहता है। कई सैलानियों ने तो इस नैसर्गिक पानी का आनंद भी उठाया। 

>पुराने महाबलेश्वर के पंच गंगा मंदिर, महाबलेश्वर मंदिर, अतिमहाबलेश्वर मंदिर, कृष्णाबाई मंदिर की खास बातें: पुराना महाबलेश्वरमें हम सबसे पहले श्री सदगुरु सिद्ध रामेश्वर मंदिर पहुंचे। महाबलेश्वर बस स्टैंड से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है पुराना महाबलेश्‍वर है  जहां प्रसिद्ध पंच गंगा मंदिर है। यहां पांच नदियों का झरना है: कोयना, वैना, सावित्री, गायित्री और पवित्र कृष्‍णा नदी।  पंचगंगा मंदिर में एक गाय के मुख से पाँच नदियों- कृष्णा, कोयना, सावित्री, गायत्री तथा वेण्णा का जल सालभर निकलता रहता है। लोग गाय मुख से निकलने वाले पानी को पीकर खुद को धन्य मानते हैं। कुछ लोग बोतल में गाय मुख का पानी भरकर ले जाते हैं। हमलोगों ने भी गाय मुख से निकलने वाला पानी का आनंद लिया। पानी पीकर हमलोगों की आत्मा काफी तृप्त हुई।  एक गाय के मुख से पंच नदियों के उद्गम की वजह से इस मंदिर को पंच गंगा मंदिर कहते हैं।










पुराने महावलेश्वर से निकली वाली पांच नदियों-सावित्री, कृष्णा, कोयना, वेणा, गायत्री नदी..के साथ दो लुप्तप्राय नदियों का नाम भी जुड़ता है। कहने के लिए तो पंचगंगा मंदिर का नाम यहां से पांच नदियों के उद्गम की वजह से पड़ा है, पर दरअसल यहा सात नदियों का उद्गम है। उनमें से एक नदी है सरस्वती है जो कि 60 साल में कृष्णा नदी से मिलती है और दूसरी भागीरथी नदी है, जो कि 12 साल में एक बार  कोयना नदी से मिलती है। पंचगंगा मंदिर की दीवार पर इसकी जानकारी दी गई है। इस तरह कुल सात नदी हुए-सावित्री, कृष्णा, कोयना, वेणा, गायत्री, भागीरथी और सरस्वती। 

पंचगंगा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि 13 वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासक राजा सिंहदेव ने बनवाया था। जौली के चंदाराव मोरे और मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में इस मंदिर का विस्तार किया। मंदिर के रास्ते में आपको कई दुकानें मिलेगी, जहां से आप हस्तनिर्मित सामान खरीद सकते हैं।  दुकानें सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक खुली मिलेगी। 


पुराना महाबलेश्वर में ही यहाँ महाबलेश्‍वर का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जहाँ स्‍वयं भू लिंग स्‍थापित है। पंचगंगा मंदिर के पास ही महाबलेश्वर और अतिबलेश्वर मंदिर है। महाबलेश्वर शिवजी का मंदिर है और अतिबलेश्वर विष्णु जी का मंदिर है।  स्कन्दपुराण के मुताबिक महाबल और अतिबल दो राक्षस थे जिनका वध किया गया था। आसपास के लोग उन दोनों राक्षसों से काफी त्रस्त थे। 

महाबलेश्वर मंदिर का संबंध छत्रपति शिवाजी से भी है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाराज शिवाजी ने 1665 में अपनी माता जीजामाता का इस मंदिर में सुवर्णतुला की थी। सुवर्णतुला मतलब तराजू के एक तरफ अपनी माता को रखा और दूसरी तरफ उतने ही वजन का सोना रखकर उसे मंदिर में दान कर दिया था। महाबलेश्वर मंदिर में  स्वयंभू शिवजी विराजमान हैं। 


पंचगंगा, महाबलेश्वर, अतिबलेश्वर मंदिर से थोड़ी ही दूर कृष्णाबाई मंदिर है। मंदिर तक छोटी सड़क जाती है। इस मंदिर में कृष्णा नदी की पूजा की जाती है। मंदिर में शिव लिंग है और कृष्ण की खूबसूरत मूर्ति है। यहां गोमुख से कुंड यानी वाटर टैंक में पानी गिरता रहता है।  1888 में कोंकण कोस्ट के रत्नागिरी के शासक ने इस मदिर का निर्माण करवाया था। 


> सनसेट प्वाइंट जिसे मुंबई या बॉम्बे प्वाइंट की खास बातें : 1836 में डॉक्टर जेम्स मुरने द्वारा इस प्वाइंट को विकसित किया गया था। आप यहां से कोयना नदी घाटी देख सकते हैं। प्रतापगढ़, लॉडविक प्वाइंट और मकरंदगढ़ किला ठीक इस प्वाइंट के सामने है। यहां पर सैलानी सूर्यास्त का लुत्फ उठाते हैं और जमकर सेल्फी लेते हैं। लेकिन, हमलोगों को निराशा हाथ लगी। सूर्यास्त का लुत्फ नहीं उठा पाए। उस दिन सूर्यास्त पर बादल हावी हो गई। महाबलेश्वर मुख्य बाजार में जब स्थानीय लोगों से हमलोगों ने सनसेट पॉइंट का रास्ता पूछा था, तभी कई लोगों ने हमसे कहा था, शायद सूर्यास्त का नजारा आज देखने को नहीं मिलेगा। और उनका अंदाजा सही निकला। हालांकि, अंधेरा होने तक कई सैलानी वहां सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए रूके रहे।

आप यहां पर घुड़सवारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहां घोड़ों-घोड़ियों का नाम सलमान, कैटरीना जैसी सेलिब्रिटीज के नाम पर रखे जाते हैं। 









-तीसरा दिन-10 तारीख को पोलो ग्राउंड, लॉडविक पॉइंट, एलिफैंट हेड पॉइंट, इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट, प्रतापगढ़ किला, माता तुलजा भवानी मंदिर, शिवाजी का स्मारक, अफजल खान का मकबरा। तीसरे दिन की शुरुआत हमने पोलो ग्राउंड से की। इसकी गोलाई करीब 1000 मीटर है।  चारों तरफ हरे-भरे पेड़ों के बीच स्थित है यह पोलोग्राउंड। यहां पर हमलोगों ने पैदल ही चीन-चार चक्कर लगाए और कुछ देर बैठकर कुदरत को निहारते रहे और यहां की नैसर्गिक खूबसूरती की चर्चा करते रहे। राज ने तो घुड़सवारी का भी आनंद उठाया। पोलो ग्राउंड से वापस हमलोग अपने गेस्ट हाउस में आए। वहां पर सब लोग फ्रेश हुए, चाय-नास्ता किया और फिर निकल पड़े अगली मंजिल की ओर। उस दिन हमलोगों ने लॉडविक पॉइंट, एलिफैंट हेड पॉइंट, इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट, प्रतापगढ़ किला, माता तुलजा भवानी मंदिर, शिवाजी  स्मारक, अफजल खान के मकबरे का चलते-चलते ही दीदार किया।


लॉडविक पॉइंट और एलिफैंट हेड पॉइंट आपको एक ही जगह पर देखने को मिलेंगे।  इको पॉइंट, केट्स पॉइंट, एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट को भी आप एक ही जगह पर देख सकते हैं। 

>लॉडविक पॉइंट की खास बातें: जनरल पीटर लॉडविक की याद में यह प्वाइंट बनाया गया है। 90 साल की उम्र में 1873 में लॉडविक निधन हुआ था। कहा जाता है कि 1824 में लॉडविक अकेले ही यहां पर पहुंचा था। तब यहां घना जंगल था। 5 नवंबर 1817 को खिरकी के युद्ध में लॉडविक की अगुआई में 2800 ब्रिटिश सेना ने पेशवा की सेना को हराया था। लॉडविक 1803 में सब-अलटर्न के तौर पर ब्रिटिश सेना में शामिल हुए थे। यहां से आप एलिफैंट हेड हत्तीमाथा पॉइंट देख सकते हैं। 












>एलिफैंट हेड या हत्तीमाथा पॉइंट की खास बातें: इस प्वाइंट की खासियत ये है कि यह देखने में बिल्कुल हाथी के सर जैसा लगता है। यहां से भी महाबलेश्वर की खूबसूरती आप निहार सकते हैं। 

>इको पॉइंट की खास बातें: इस जगह पर आपकी आवाज गूंजेगी और वापस आपको सुनाई देगी बशर्ते आप जोरों से चिल्लाए। कुछ सैलानी तो इस प्वाइंट पर आते, महाबलेश्वर का नजारा देखते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन, कई सैलानी इस प्वाइंट की खासियत को जांचने के लिए सचमुच में जोरों से आवाज देते हैं। 










>केट्स पॉइंट की खास बातें: इको प्वाइंट से आगे बढ़ेंगे तो आपको केट्स प्वाइंट मिलेगा। इस प्वाइंट का नाम तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर सर जॉन मैल्कम की बेटी के नाम पर केट्स रखा गया था। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में यह जगह 'नेक खींद' के नाम से जाना जाता था। इस प्वाइंट से आप कृष्णा नदी घाटी, Needles Hole Point, कमलगढ़ किला, डोम डैम, बल्कवादी डैम का दीदार कर सकते हैं। 

>एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट की खास बातें: इको और केट्स प्वाइंट से आप एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट का नजारा देख सकते हैं। जैसा की नाम से ही पता चलता है कि देखने में यह हाथी के सर और सुई के जैसा नजर आता है। जब आप इसे देखेंगे तो यब बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप दिखेगा। 

इको, केट्स प्वाइंट और एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट पर आप जाएं तो बंदरों से सावधान रहें। आपके हाथ में रखा सामान वो कभी आपसे झटक सकते हैं। प्रशासन ने बकायदा वहां सूचना लगा दिया है कि बंदरों से सावधान रहें।  






>इन सब जगहों पर घूमने के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतापगढ़ किला जाने की बारी आई। इको, केट्स प्वाइंट और एलिफैंट हेड निड्ल होल पॉइंट का आनंद लेकर हमलोगों ने दोपहर का खाना खाया। और फिर निकल पड़े शिवाजी जी के एतिहासिक किले की ओर। महाबलेश्वर से हमलोग अम्बनेली घाट होते हुए करीब 20 किलोमीटर के सफर के बाद पहुंचे प्रतापगढ़ किला। महाबलेश्वर से घाट, गांव, खेत, रिसॉर्ट, होते हुए हम वहां पहुंचेय़ प्रतापगढ़ किले के पास ही श्री भवानी माता मंदिर है, शिवाजी का स्टैच्यू है और अफजल खान का मकबरा है। उसी अफजल खान की जिसका छत्रपति शिवाजी ने वध किया था। जब हम किला देखने गए थे तब वहां निर्माण कार्य चल रहा था और अफजल खान का मकबरा भी किसी कारणवश बंद पड़ा था। 




कुछ सीढ़ियां चढ़कर हम किले के दरवाजे पर जब पहुंचे तो वहां इस किले से संबंधित जानकारी से हमारा सामना हुआ। उसके बाद मुख्य दरवाजे से अंदर घुसते ही तोप ने हमारा स्वागत किया। लोगों ने इस तोप के साथ सेल्फी भी ली। किले की चहारदीवारी से हमलोगों ने महाबलेश्वर का नजारा देखा। वहीं पर शिवाजी का स्टैच्यू बना है। शिवाजी की कुल देवी श्री भवानी माता मंदिर भी किले के पास में ही है। मंदिर के पास बंदरों के उत्पात से आपको बचना होगा। मोबाइल पर हाथ साफ करने में बंदर माहिर होते हैं। प्रतापगढ़ किला, शिवाजी स्टैच्यू और श्री भवानी माता मंदिर का दीदार कर हमलोग वापस महाबलेश्वर के अपने गेस्ट हाउस में पहुंच गए। शाम ढलने लगी थी, सूर्य अस्त होने लगा था, और यहां से हमें रात होने से पहले वापस गेस्ट हाउस लौटना जरूरी थी। 
क्योंकि 20 किलोमीटर घाट पार करना था। सड़कें काफी अच्छी हैं, लेकिन काफी घुमानदार है और दोनों तरफ से गाड़ियों का आना जाना लगता है। इसलिए हमलोग रात होने से पहले ही प्रतापगढ़ किले का दीदार कर वापस अपने गेस्ट हाउस में आ गए। आपको बता दं कि महाबलेश्वर और प्रतापगढ़ अलग-अलग तालुका  में आते हैं लेकिन हैं दोनों सातारा जिले में ही।   




















चौथा दिन-11 तारीख को वापस:  अब आई महाबलेश्वर से वापस घर नालासोपार पहुंचने की बारी। हमलोगों ने 10 को ही प्लान बना लिया था कि 11 तारीख को चाय-नास्ता गेस्ट हाउस में करके 11 बजे दोपहर तक गेस्ट हाउस छोड़ देंगे। प्लान के मुताबिक हमलोग 11 तारीख को गेस्ट हाउस छोड़ दिया। महाबलेश्वर के  मुख्य बाजार में मध प्रसंस्करण केंद्र का दौरा किया और जाना कि किस तरह से बोतलबंद मध हमारे घरों तक पहुंचता है। महाबलेश्वर मधोत्पादक सहकारी सोसायटी लिमिटेड के यहां से मध भी खरीदा। यहां अलग अलग फलों के टेस्ट वाला मध आपको मिल जाएगा। महाबलेश्वर से लौट रहे हों, वहां से स्ट्राबेरी घर के लिए नहीं ला पाये, तो समझिये आपने महाबलेश्वर को काफी मिस किया। तो, वहां से हम लोगों ने जरूरत के हिसाब से स्ट्राबेरी भी खरीदा। लौटते समय एक स्थानीय कलाकार द्वारा हाथ से लकड़ी का अलग-अलग सामान बनाते देखना काफी अच्छा लगा। वो काफी तन्मयता के साथ सामान बनाने में जुटे हुए थे।












रात 9-10 बजे तक हमलोग नालासोपारा अपने घर पहुंचते और दोपहर के खाने का वक्त भी हो गया था। इसलिए हमलोग पुणे के कात्रज चौक से पहले एक ढाबे में खाना खाने के लिए कुछ देर रुके। कात्रज चौक के पास हमलोगों ने निरंजन अंकल को छोड़ा और फिर नालासोपारा के लिए चल पड़े। रात 9.30 बजे हम अपने नालासोपारा के घर पर पहुंच गए। इस तरह हमने महाबलेश्वर में कुल 101 किलोमीटर की दूरी तय की। अगर इस सफर में कुल तय की गई दूरी की बात करें तो यह 725 किलोमीटर (312+312+101) होती है। आने जाने में लगे समय की बात करें तो कुल 18-20 घंटे (जाने में 9-10 घंटे और आने में 9-10 घंटे। 

इस तरह महाबलेश्वर का चार दिनों का सैर-सपाटा अपनों के संग मस्ती के साथ खत्म हुआ। 

(महाबलेश्वर; तीरथ करना हो या नैसर्गिक खूबसूरती का लुत्फ उठाना या फिर इतिहास में झांकना...यहां जरूर आइए

((महाबलेश्वर; खूबसूरती ऐसी कि कैमरा भी तस्वीर लेते-लेते थक जाए, ऐसी खूबसूरती का दीदार भला किसे पसंद नहीं 
((त्र्यंबकेश्वर: तीन लिंगों वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग मंदिर
(Trimbkeshwar Temple, Nashik, Maharashtra त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर...
((छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतापगढ़ किला ; Chhatrapati ShivaJi Maharaj Ka...
((महाबलेश्वर: एलिफैंट हेड नीडल होल पॉइंट; Mahabaleshwar: Elephant Head Nee...
((महाबलेश्वर:इको पॉइंट और केट्स पॉइंट; Mahabaleshwar: Echo Point & Kates P...
((महाबलेश्वर: सनसेट पॉइंट या बॉम्बे पॉइंट जरूर देखें; Mahabaleshwar: Bomba...
((महाबलेश्वर: आर्थर प्वाइंट की कहानी Mahabaleshwar: Arthar Point ki kahani
((महाबलेश्वर: लॉडविक प्वाइंट की कहानी Mabaleshwar: Lodwick Point Ki Kahani
((महाबलेश्वर-एलिफैंट हेड पॉइंट की खासियत ; Mahabaleshwar-Elephant Head Point
((महाराष्ट्र को मानो: कभी कलंब बिच तो आइये (Kalamb Beach, Nalasopaara)
((कभी बारिश में तुंगारेश्वर घूमने का मौका मिले, तो जरूर जाएं 
((महाराष्ट्र के दहाणू महालक्ष्मी मंदिर: शीतल पवन और हर ओर हरियाली के बीच भक्ति का आनंद 



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भारत में क्रूज पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं: पर्यटन मंत्री


पर्यटन मंत्रालय ने 365 दिनों यानी पूरे वर्ष के गंतव्य के रूप में भारत को बढ़ावा देने और विशिष्‍ट दिलचस्‍पी रखने वाले पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए 'शीर्ष' पर्यटन उत्पाद के रूप में क्रूज टूरिज्‍म (समुद्री पर्यटन) को मान्यता दे दी है। क्रूज अथवा समुद्री पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदमों में क्रूज जहाजों के संचालन के लिए बंदरगाहों पर उपयुक्‍त बुनियादी ढांचागत सुविधाएं विकसित करना और यात्रियों की आवाजाही में सुगमता सुनिश्चित करना शामिल हैं।
देश के 5 प्रमुख बंदरगाहों यथा मुंबई पोर्ट ट्रस्‍ट, मोरमुगाओ पोर्ट ट्रस्ट, न्यू मंगलोर पोर्ट ट्रस्ट (एनएमपीटी), कोचीन पोर्ट ट्रस्ट और चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट को क्रूज जहाजों को आकर्षित करने के लिए विकसित किया गया है। इसके तहत इन बंदरगाहों पर समर्पित या विशिष्‍ट टर्मिनल अथवा अन्‍य संबंधित बुनियादी ढांचागत सुविधाएं स्‍थापित की गई हैं, ताकि क्रूज जहाजों को ठहरने (बर्थ) की सुविधा मिल सके और क्रूज यात्रियों को इन पर चढ़ाया एवं वहां से उतारा जा सके।
पिछले कुछ वर्षों से भारतीय बंदरगाहों पर आने वाले जहाजों और क्रूज यात्रियों की संख्‍या में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। शिपिंग मंत्रालय ने यह जानकारी दी है कि वर्ष 2003-04 में 55 क्रूज जहाजों का आगमन हुआ था। यह संख्‍या वर्ष 2016-17 में बढ़कर 166 हो गई। इसके अलावा, क्रूज अथवा समुद्री पर्यटन एवं सैर-सपाटे करने वाले यात्रियों की संख्‍या भी वर्ष 2003-04 के 28,000 से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 1,91,835 के स्‍तर पर पहुंच गई।
शिपिंग मंत्रालय ने वर्ष 2008 में एक क्रूज शिपिंग नी‍ति को मंजूरी दी थी, ताकि भारत को क्रूज टूरिज्‍म की दृष्टि से एक आकर्षक स्‍थल के रूप में बढ़ावा दिया जा सके। पर्यटन मंत्रालय ने ‘केन्‍द्रीय एजेंसियों को सहायता देने’ की अपनी योजना के तहत प्रमुख बंदरगाहों पर क्रूज टर्मिनलों और संबंधित बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के विकास के लिए अनेक परियोजनाओं को मंजूदी दी है।



(Source: pib.nic.in)




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मंगलवार, 13 मार्च 2018

10 prominent tourism sites to be developed into iconic tourism destinations, know these sites

10 prominent tourism sites to be developed into iconic tourism destinations: Shri K. J. Alphons
The development of 10 prominent tourist sites into iconic tourist destinations in the country is part of the Budget Announcements of 2018-19.

The Ministry of Tourism has identified following prominent tourist sites for development based on the criteria of footfall, regional distribution, potential for development and ease of implementation:

i.          Taj Mahal & Fatehpur Sikri (Uttar Pradesh)
ii.         Ajanta and Ellora (Maharashtra)
iii.        Humayun Tomb, Qutub Minar and Red Fort (Delhi)
iv.        Colva Beach (Goa)
v.         Amer Fort (Rajasthan)
vi.        Somnath and Dholavira (Gujarat)
vii.       Khajuraho (Madhya Pradesh)
viii.      Hampi (Karnataka)
ix.        Mahablipuram (Tamil Nadu)
x.         Kaziranga (Assam)
xi.        Kumarakom (Kerala)
xii.       Mahabodhi Temple (Bihar)

The development of iconic tourist destinations will be implemented under the ongoing Swadesh Darshan Scheme of Ministry of Tourism. There is no separate allocation of funds for this project.

This information was given by Shri K. J. Alphons, Union Minister of State (I/C) for Tourism in a written reply in Lok Sabha.
(Source: pib.nic.in)

(Trimbkeshwar Temple, Nashik, Maharashtra त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर...
((छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतापगढ़ किला ; Chhatrapati ShivaJi Maharaj Ka...
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((महाबलेश्वर: सनसेट पॉइंट या बॉम्बे पॉइंट जरूर देखें; Mahabaleshwar: Bomba...
((महाबलेश्वर: आर्थर प्वाइंट की कहानी Mahabaleshwar: Arthar Point ki kahani
((महाबलेश्वर: लॉडविक प्वाइंट की कहानी Mabaleshwar: Lodwick Point Ki Kahani
((महाबलेश्वर-एलिफैंट हेड पॉइंट की खासियत ; Mahabaleshwar-Elephant Head Point
((महाराष्ट्र को मानो: कभी कलंब बिच तो आइये (Kalamb Beach, Nalasopaara)
((कभी बारिश में तुंगारेश्वर घूमने का मौका मिले, तो जरूर जाएं 
((महाराष्ट्र के दहाणू महालक्ष्मी मंदिर: शीतल पवन और हर ओर हरियाली के बीच भक्ति का आनंद 



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गुरुवार, 8 मार्च 2018

त्र्यंबकेश्वर: तीन लिंगों वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग मंदिर

महाराष्ट्र के नासिक के पास स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जाने के बारे में तो मैं काफी पहले से सोच रहा था। मेरे कुछ मित्र मुझसे कई बार वहां चलने की चर्चा भी कर चुके थे लेकिन, बात चर्चा से आगे नहीं बढ़ पाई थी। एक दिन जब मैं महाबलेश्वर में चार दिन बीताकर वापस अपने घर मुंबई से सटे उपनगर नालासोपारा आया तो मेरे पत्रकार मित्र नीरज राय ने त्र्यंबकेश्वर चलने की बात की, तो मैं भी तैयार हो गया। कब चलना है, इस बारे में भी फैसला हो गया। अगले शनिवार-रविवार को सुबह-सुबह ही त्र्यंबकेश्वर के लिए चलने का हमलोगों ने मन बना लिया। 24 फरवरी,  2018 को हमलोग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का दर्शन करके उसी दिन वापस भी लौट आए। 

त्र्यंबकेश्वर यात्रा से एक हफ्ते पहले हमलोग काफी माथापच्ची कर रहे थे कि वहां जाया कैसे जाए। अगर कहीं नजदीक भी जाना हो, तो  मेरे मित्र नीरज अक्सर ट्रेन से यात्रा को तरजीह देते हैं। लेकिन, मैंने कहा कि मेरे यहां मतलब नालासोपारा से भी नासिक के लिए, जहां से त्र्यंबकेश्वर महज 25-30 किलोमीटर दूर है, राज्य परिवहन विभाग की बस जाती है। इस पर हमदोनों ने बस की टाइमिंग, किराया, नासिक पहुंचाने में लगने वाले समय बगैरह पता करने के लिए नालासोपारा बस स्टैंड पहुंचें। वहां से पता चला कि नासिक के लिए हर रोज सुबह 5 बजे महराष्ट्र राज्य ट्रांसपोर्ट की बस जाती है, इस 2x2 बस की प्रति व्यक्ति किराया 190 रुपए है और महज 4-5 घंटे में नासिक पहुंचा देती है। आप को बता दें कि नालासोपारा से नासिक की दूरी करीब 200 किलोमीटर है 
और नासिक से त्र्यंबकेश्वर की दूरी करीब 25 किलोमीटर। नासिक से त्र्यंबकेश्वर के लिए अलग बस लेनी होती है या फिर आप ऑटो,टैक्सी रिजर्व करके भी जा सकते हैं। 

तो, इस तरह 24 फरवरी 2018 को सुबह 5.00 बजे नालासोपारा से बस निकले नासिक होते हुए त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए। जिस बस से हमलोग निकले उसकी एक खास बात आपको पहले बता देता हूं। उस बस पर फ्री वाई-फाई सेवा मौजूद थी। उस फ्री वाई-फाई सेवा का लाभ कैसे लें, उसकी विस्तार से जानकारी हर सीट के पीछे दी हुई थी। हर विंडो के ऊपर भी इसकी जानकारी दी हुई थी ताकि किसी यात्री को वाई-फाई सेवा लेने में दिक्कत ना हो और ना ही इसके लिए बार-बार बस कंडक्टर से पूछने की जरूरत पड़े। लेकिन, पूरे बस में शायद ही किसी ने उस फ्री वाई-फाई सेवा का इस्तेमाल किया हो। इसकी मुझे दो वजह समझ में आती है, एक तो सुबह-सुबह का समय था, तो लोग नींद लेना ज्यादा उचित समझ रहे थे और दूसरा, कि डेटा काफी सस्ता हो गया है, तो लोग खुद के ही डेटा का इस्तेमाल कर रहे थे। 

नालासोपारा पश्चिम के बस स्टैंड से निकलकर बस नालासोपारा पूर्व, संतोष भवन होते हुए मुंबई-अहमदाबाद हाइवे पर पहुंची। हाइवे पर सायं-सायं गाड़ियां भाग रही थी, हाइवे के दोनों तरफ कुछ दुकानें खुलनी शुरू हो गई थी, कुछ पेट्रोल पंप पर भी काम शुरू हो गया था। नालासोपारा बस स्टैंड से करीब सवा घंटे का सफर तय कर हमलोग भिवंडी बस स्टैंड पर 6.15 बजे पहुंचे, कुछ पल के लिए वहां रुके, यहां दत्त मंदिर में सुबह-सुबह दर्शन किया। वहां पर भी कुछ लोग उस बस में सवार हुए। भिवंडी से आगे बढ़कर बस ने मुबंई नासिक हाइवे की राह पकड़ी। हाइवे तो हाइवे होती है। हर हाइवे की एक ही कहानी है। सबको अपनी-अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी होती है, इसलिए शहर की सड़कों की तरह ट्रैफिक जाम कम ही होती है, सारी गाड़ियां सरपट भाग रही थी। 


भिवंडी बस स्टैंड से करीब 45 मिनट चलने के बाद हमलोग शहापुर बस स्टैंड 7.05 बजे पहुंचे। वहां से भी उस बस में कुछ यात्री चढ़े। बस में सफर करते हुए दो घंटे से ज्यादा का वक्त हो चुका था। बस के स्टाफ के साथ-साथ यात्रियों को भी चाय-नास्ते की जरूरत महसूस होने लगी थी। तो, अगली बार बस चाय-नास्ते के लिए ही रुकी। मुंबई-नासिक हाइवे पर शहापुर से कुछ दूर चलकर खरडी एक जगह है, वहां बस स्टैंड नहीं है, हमलोग वहीं पर एक होटल के पास चाय-नास्ता के लिए रुके। वहां करीब 7.30 बजे पहुंचे। 


हम आपको बता दें कि मुंबई से नासिक जाते समय आपको खूबसूरत कसारा घाट (पर्वत श्रृंखला के बीच बनी सड़क घाट कहलाती है) का दर्शन करने का शानदार मौका मिलता है। पहाड़ को काटकर बनाई गई पतली सड़क, उन सड़कों पर दोनों तरफ से आती-जाती गाड़ियां, कभी चढ़ाई-तो कभी नीचे उतरने का अविश्वसनीय आनंद, ऊंचे-ऊंचे पेड़, हर तरफ हरियाली, बारिश के दिनों में पहाड़ से गिरता पानी इन सबसे अक्सर ऐसे  घाट से गुजरने वालों के सामने एकदम मनोरम दृश्य पैदा होता है। पर्वत की तलहटी में कुछ गांव दिख जाएंगे, कुछ खेती दिख जाएगी। कई बार आप सोच में पड़े जाएंगे कि लोग वहां कैसे जीवनयापन करते होंगे। कल्पना कीजिए, बारिश में उनकी हालत क्या होती होगी। कभी वहां जाकर उनके बीच रहकर उनकी जिदंगी को नजदीक से देखने की कोशिश करनी चाहिए। 


तो हम बात कर रहे थे, त्र्यंबकेश्वर के जाने के समय कसारा घाट से पहले खरड़ी पहुंचकर वहां चाय-नास्ते की। वहां करीब 15-20 मिनट रुकने के बाद हम फिर से अपनी बस में सवार हुए और कसारा घाट का आनंद लेते हुए निकल पड़े नासिक होते हुए त्र्यंबकेश्वर के लिए। कसारा घाट से गुजरते समय कुछ यात्री कसारा घाट का अपने मोबाइल से वीडियो बना रहे थे, कुछ लोग तस्वीरें ले रहे थे। कसारा घाट के सफर का सही आनंद शब्दों से नहीं, बल्कि उस घाट से गुजरते हुए ही लिया जा सकता है। 
 
आपको बता दूं कि खरड़ी से नासिक बस स्टैंड करीब 80 किलोमीटर दूर है। खरड़ी के बाद कसारा घाट होते हुए हमलोग करीब सुबह 9.15 बजे नासिक के महामार्ग बस स्टैंड पहुंचे। यहां से आपको त्र्यंबकेश्वर, पंचवटी जाने के रास्ते का डायरेक्शन मिलना शुरू हो जाएगा। सड़क किनारा बोर्ड लगाकर इसकी जानकारी दी गई है। हमने ऊसी बोर्ड को देखकर महामार्ग बस स्टैंड पर उतरने का फैसला किया। हालांकि, वह बस और आगे कि लिए थी। 

हमलोगों को मालूम नहीं था कि नासिक की किस जगह से त्र्यंबकेश्वर जाने में कम समय और कम पैसे लगेंगे। इसलिए हमलोग महामार्ग बस स्टैंड पर ही बस से उतर गए थे। वहां उतरकर हमलोगों ने कुछ स्थानीय लोग के अलावा ऑटो,टैक्सी वालों से त्र्यंबकेश्वर जाने के बारे में पूछा, तो उनलोगों ने बताया कि आपको पुराना सीबीएस बस स्टैंड जाना होगा,जहां से सरकारी बस मिलेगी और कम समय में वहां पहुंच सकेंगे। वैसे तो नासिक में आपको त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए कहीं से भी टैक्सी, ऑटो मिल जाएगा, लेकिन आप उनके मनमानी किराए का शिकार हो सकते हैं। हमलोगों ने उस मनमानी किराए का शिकार होने से बचने के लिए पुराना सीबीएस बस स्टैंड चलने का फैसला किया। हम वहां के लिए पैदल ही निकल पड़े। सुबह-सुबह का समय था, तो थोड़ी वाकिंग भी हो जाती, इसलिए। महामार्ग बस स्थानक से हमलोग पैदल चलकर 9.40 बजे पुराना सीबीएस बस स्टैंड पहुंचे। वहां से त्र्यंबकेश्वर के लिए कुछ ही पल में बस मिल गई आपको बता दूं कि नासिक में महामार्ग बस स्टैंड के अलावा कई बस स्टैंड है-जैसे पुराना सीबीएस और नया सीबीएस बस स्टैंड। 

हमलोग 11.15 बजे  त्र्यंबकेश्वर पहुंचे। वहां जाकर पहले होटल लिया। वहां पर फ्रेश बगैरह हुए, कुछ रिलैक्स किया और फिर त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर के दर्शन के लिए निकल पड़ा। जो लोग काफी पहले त्र्यंबकेश्वर जा चुके हैं, उनलोगों ने हमें बताया था कि मंदिर में जाने के लिए काफी पैदल चलना पड़ता है और कुछ सीढ़ियों की चढ़ाई भी करनी होती है, लेकिन जब हम गए तो देखा कि मंदिर से कुछ ही दूरी पर बस स्टैंड है,जहां पर हमलोग नासिक से त्र्यंबकेश्वर पहुंचने पर बस से उतरे थे। जिस होटल में हमलोग रुके थे, वो भी मंदिर से मुश्किल से पांच मिनट की दूरी पर था। इसलिए मंदिर का दर्शन करने में हमलोगों को ज्यादा समय नहीं लगा। लेकिन, हमलोगों के दर्शन करने के बाद श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़नी शुरू हो गई थी। 

मंदिर के पास के दुकानदारों से जब मैंने वहां पर कब ज्यादा भीड़ होती है, तो उनलोगों ने बताया कि शनिवार को शाम और रविवार को। यानी अगर आप जल्दी से दर्शन करना चाहते हैं, और भीड़ से बचना चाहते हैं, तो शनिवार और रविवार को जाने की बजाय किसी दूसरे दिन जाएं। वैसे, शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन
त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का जबर्दस्त ताँता लगा रहता है।




दर्शन के बाद हम लोग वापस होटल के गए, थोड़ा आराम किया और फिर खाना खाने के लिए बगल के रेस्टोरेंट में चले गए। वहां से खाना खाकर हमलोगों पैदल ही त्र्यंबकेश्वर का भ्रमण किया। फिर उसी दिन मतलब शनिवार को ही वहां से करीब तीन बजे दोपहर को हमलोग नासिक होते हुए अपने घर नालासोपारा के लिए निकल पड़े। त्र्यंबकेश्वर बस स्टैंड से नासिक के लिए बस पकड़ी हमलोगों ने और नासिक महामार्ग बस स्टैंड से नालासोपारा के लिए बस। रात के करीब 11 बजे हमलोग अपने-अपने घर पहुंचकर खाना खाया और नींद की आगोश में चले गए। इस तरह हमारी त्र्यंबकेश्वर यात्रा पूरी हुई। 
((Watch people's activities in front of Trimbkeshwar Temple, Nashik, Maharashtra
> थोड़ी जानकारी त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर (Trimakeshwar) के बारे में: (यह जानकारी विकिपीडिया से ली गई है। )

त्र्यम्बकेश्वर ज्योर्तिलिंग मन्दिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। इन्हीं पुण्यतोया गोदावरी के उद्गम-स्थान के समीप असस्थित त्रयम्बकेश्वर-भगवान की भी बड़ी महिमा हैं। गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए। मंदिर के अंदर एक छोटे से गंढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। शिवपुराण के ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये चौड़ी-चौड़ी सात सौ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के बाद 'रामकुण्ड' और 'लक्ष्मणकुण्ड' मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई। भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं।त्र्यंबकेश्‍वर ज्योर्तिलिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्‍योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्‍य सभी ज्‍योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं।

निर्माण
गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर काले पत्‍थरों से बना है। मंदिर का स्‍थापत्‍य अद्भुत है। इस मंदिर ke panchakroshi me कालसर्प  शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्‍न होती है। जिन्‍हें भक्‍तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।

मंदिर
गाँव के अंदर कुछ दूर पैदल चलने के बाद मंदिर का मुख्य द्वार नजर आने लगता है। त्र्यंबकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में प्रवेश करने के बाद शिवलिंग की केवल आर्घा दिखाई देती है, लिंग नहीं। गौर से देखने पर अर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव- ब्रह्मा-विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। भोर के समय होने वाली पूजा के बाद इस अर्घा पर चाँदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

स्थिति
त्र्यंबकेश्वर मंदिर और गाँव ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। इस गिरि को शिव का साक्षात रूप माना जाता है। इसी पर्वत पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गमस्थल है। कहा जाता है-

कथा
‘प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर शिव से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ।’ -दंत कथा

गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही तरह त्र्यंबकेश्वर महाराज को इस गाँव का राजा माना जाता है, इसलिए हर सोमवार को त्र्यंबकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

पौराणिक कथा
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है-

एक बार महर्षि गौतम के तपोवन में रहने वाले ब्राह्मणों की पत्नियाँ किसी बात पर उनकी पत्नी अहिल्या से नाराज हो गईं। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि  गौतम का अपकार करने के लिए प्रेरित किया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त भगवान्‌ श्रीगणेशजी की आराधना की।

उनकी आराधना से प्रसन्न हो गणेशजी ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा उन ब्राह्मणों ने कहा- 'प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार  ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।' उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें ऐसा वर माँगने के लिए समझाया। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे।

अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत  में जाकर रहने लगे। गाय को फसल चरते देखकर ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने के लिए लपके। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय वहीं मरकर गिर पड़ी। अब तो बड़ा हाहाकार मचा।

सारे ब्राह्मण एकत्र हो गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। अब उन सारे ब्राह्मणों ने कहा कि तुम्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाना चाहिए। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। विवश होकर  ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया। 
वे कहने लगे- 'गो-हत्या के कारण तुम्हें अब वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने का कोई अधिकार नहीं रह गया।' अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि  गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय बताएँ।

तब उन्होंने कहा- 'गौतम! तुम अपने पाप को सर्वत्र सबको बताते हुए तीन बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करो। फिर लौटकर यहाँ एक महीने तक व्रत करो। इसके बाद 'ब्रह्मगिरी' की 101 परिक्रमा करने के बाद तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा यहाँ गंगाजी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंगों से शिवजी की आराधना करो। इसके बाद पुनः गंगाजी में स्नान करके इस ब्रह्मगीरि की 11 बार परिक्रमा करो। फिर सौ घड़ों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंगों को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा।

ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूरे करके पत्नी के साथ पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। इससे प्रसन्न  हो भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- 'भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।' भगवान्‌ शिव ने कहा- 'गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। छल पूर्वक ऐसा
 करवाने वाले तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दण्ड देना चाहता हूँ।'

इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध  न करें।' बहुत से ऋषियों, मुनियों और देव गणों ने वहाँ एकत्र हो गौतम की बात का अनुमोदन करते हुए भगवान्‌ शिव से सदा वहाँ निवास करने की प्रार्थना की। वे उनकी बात मानकर वहाँ त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग के नाम से स्थित हो गए। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी
 नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।

उत्सव
इस भ्रमण के समय त्र्यंबकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गाँव में घुमाया जाता है। फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरेजड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। यह पूरा दृश्य त्र्यंबक महाराज के राज्याभिषेक-सा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है।

‘कुशावर्त तीर्थ की जन्मकथा काफी रोचक है। कहते हैं ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने  के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद लेकर गोदावरी को बंधन में बाँध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा लबालब पानी रहता है। इस कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।’- दंत कथा

शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन त्र्यंबकेश्वर मंदिर में भक्तों का ताँता लगा रहता है। भक्त भोर के समय स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं। यहाँ कालसर्प योग और नारायण नागबलि नामक खास पूजा-अर्चना भी होती है, जिसके कारण यहाँ साल भर लोग आते रहते हैं।

गम्यता
त्र्यंबकेश्वर गाँव नासिक से काफी नजदीक है। नासिक पूरे देश से रेल, सड़क और वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। आप नासिक पहुँचकर वहाँ से त्र्यंबक के लिए बस, ऑटो या टैक्सी ले सकते हैं। टैक्सी या ऑटो लेते समय मोल-भाव का ध्यान रखें। 
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