मंगलवार, 27 जुलाई 2021

कच्छ का रण, गुजरात में स्थित हड़प्पा काल के स्थल के रूप में विख्यात धोलावीरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी

भारत के 40वें स्थल को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला

कच्छ का रण, गुजरात में स्थित हड़प्पा कालीन स्थल धोलावीरा से संबंधित भारतीय नामांकन को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है। भारत ने जनवरी, 2020 में “धोलावीरा ; एक हड़प्पा कालीन नगर से विश्व धरोहर स्थल तक” शीर्षक से अपना नामांकन जमा किया था। यह स्थल 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल था। हड़प्पाकालीन नगर धोलावीरा दक्षिण एशिया में संरक्षित प्रमुख नगर जीवन स्थलों में एक है और जिसका इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व के मध्य तक का है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट किया “इस समाचार से बेहद खुश हूं, धोलावीरा एक प्रमुख जीवन स्थल था और यह हमारे अतीत के साथ जोड़ने वाले सबसे प्रमुख संपर्कों में से हैं। जिन लोगों की इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व में रुचि है, उन्हें यह स्थल जरूर देखना चाहिए।”

केन्द्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री श्री जी.किशन रेड्डी ने घोषणा के बाद इस समाचार को ट्विटर पर साझा किया। इस घोषणा के कुछ दिनों पहले तेलंगाना के मुलुगु जिले के पालमपेट स्थित रुद्रेश्वर मंदिर “रामप्पा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है” को भारत के 39वें विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था।

श्री जी.किशन रेड्डी ने ट्वीट किया, “देशवासियों के साथ इस समाचार को साझा करके बहुत गर्व का अनुभव कर रहा हूं। धोलावीरा भारत का 40वां स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। भारत के लिए एक और गौरव की बात – हमारा देश विश्व धरोहर स्थल की सूची में सुपर 40 के रूप में शामिल हो गया है।”

इस सफल नामांकन के साथ भारत के पास कुल मिलाकर 40 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और एक मिश्रित संपत्ति हैं। केंद्रीय संस्कृति मंत्री उन देशों का भी उल्लेख किया जिनके पास 40 या इससे अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें भारत के अलावा अब इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन व फ्रांस शामिल हैं। मंत्री ने अपने ट्वीट में इसका भी उल्लेख किया कि कैसे भारत ने 2014 से 10 नए विश्व धरोहर स्थलों को जोड़ा है और यह भारतीय संस्कृति, विरासत और भारतीय जीवन दर्शन को बढ़ावा देने को लेकर प्रधानमंत्री की दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

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श्री जी किशन रेड्डी ने ट्वीट में लिखा, “आज का दिन भारत के लिए, विशेषकर गुजरात के लोगों के लिए गर्व का दिन है। 2014 के बाद से भारत ने 10 नए विश्व धरोहर स्थल जोड़े हैं जोकि हमारे धरोहर स्थलों की कुल संख्या की एक चौथाई। यह भारतीय संस्कृति, विरासत और भारतीय जीवन दर्शन को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ प्रतिबद्धता को दिखाता है।”

 

 

धोलावीरा के हड़प्पा शहर के बारे में

धोलावीरा: हड़प्पा संस्कृति का ये शहर, दरअसल दक्षिण एशिया में तीसरी से मध्य-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व काल की चंद सबसे अच्छे से संरक्षित प्राचीन शहरी बस्तियों में से है। अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में छठा सबसे बड़ा और 1,500 से अधिक वर्षों तक मौजूद रहा धोलावीरा न सिर्फ मानव जाति की इस प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन की पूरी यात्रा का गवाह है बल्कि शहरी नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन और विकास, कला, निर्माण, व्यापार और आस्था प्रणाली के संदर्भ में भी अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को प्रदर्शित करता है। अपनी अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धोलावीरा की बड़ी अच्छी तरह से संरक्षित ये शहरी बस्ती, अपनी बेहद खास विशेषताओं वाले इस क्षेत्रीय केंद्र की एक जीवंत तस्वीर दर्शाती है जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।

इस पुरातात्विक स्थल के दो भाग हैं: एक दीवार युक्त शहर और दूसरा, शहर के पश्चिम में एक अंत्येष्टि स्थल। चारदीवारी वाले इस शहर में एक प्राचीर युक्त किला है जिसके साथ प्राचीर वाला अहाता और पूजा-अर्चना का मैदान, और एक सुरक्षित मध्य शहर तथा एक निम्न शहर है। इस किले के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की एक श्रृंखला पाई जाती है। अंत्येष्टि स्थल या श्मशान में अधिकांश अंत्येष्टियां स्मारक रूपी हैं।

धोलावीरा शहर के स्‍वर्णिम दिनों में उसका जो विशिष्‍ट स्‍वरूप था वह दरअसल नियोजित शहर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। धोलावीरा शहर में अत्‍यंत नियोजित ढंग से अलग-अलग शहरी आवासीय क्षेत्र विकसित किए गए थे जो संभवतः विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों या पेशा और एक वर्गीकृत समाज पर आधारित थे। जल संचयन प्रणालियों, जल निकासी प्रणालियों के साथ-साथ वास्तुशिल्प एवं तकनीकी रूप से विकसित सुविधाओं में नजर आने वाली उत्‍कृष्‍ट तकनीकी प्रगति स्थानीय सामग्री के डिजाइन, कार्यान्‍वयन और प्रभावकारी उपयोग में स्पष्‍ट रूप से परिलक्षित होती है। आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के पास स्थित रहने वाले हड़प्पा के अन्य पूर्ववर्ती शहरों के विपरीत खादिर द्वीप में धोलावीरा ऐसे स्थान पर अवस्थित था जो खनिज और कच्चे माल (तांबा, सीप, गोमेद-कार्नीलियन, स्टीटाइट, सीसा, धारियों वाले चूना पत्थर, इत्‍यादि) के विभिन्न स्रोतों का इस्‍तेमाल करने और इसके साथ ही मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) एवं मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और बाह्य व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से अत्‍यंत रणनीतिक था।

धोलावीरा दरअसल हड़प्पा सभ्यता (शुरुआती, परिपक्व और इसके बाद के हड़प्पा दौर वाले) से संबंधित एक आद्य-ऐतिहासिक कांस्य युग वाली शहरी बस्‍ती का एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है और वहां तीसरी और दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान एक बहु-सांस्कृतिक एवं वर्गीकृत समाज होने के अनेक प्रमाण या साक्ष्‍य मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक हड़प्पा चरण के दौरान 3000 ईसा पूर्व के शुरुआती साक्ष्य मिले हैं। यह शहर लगभग 1,500 वर्षों तक खूब फला-फूला जिससे वहां काफी लंबे समय तक लोगों के निरंतर निवास करने के संकेत मिलते हैं। यहां पर उत्खनन के जो अवशेष हैं वे स्पष्ट रूप से बस्ती की उत्पत्ति, उसके विकास, चरम पर पहुंचने और फि‍र बाद में उसके पतन का संकेत देते हैं जो इस शहर के स्‍वरूप एवं स्थापत्य तत्वों या घटकों में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ विभिन्न अन्य विशेषताओं में स्‍पष्‍ट तौर पर परिलक्षित होते हैं। 

धोलावीरा अ‍पनी पूर्व नियोजित शहर योजना, बहु-स्तरीय किलेबंदी, परिष्कृत जलाशयों और जल निकासी प्रणाली, और निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर के व्यापक उपयोग के साथ हड़प्पा शहरी नियोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ये विशेषताएं हड़प्पा सभ्यता के पूरे क्षेत्र में धोलावीरा की अनूठी स्थिति को दर्शाती हैं।

पानी की उपलब्ध हर बूंद को इकट्ठा करने के लिए डिज़ाइन की गई विस्तृत जल प्रबंधन प्रणाली लोगों की तेज़ भू-जलवायु परिवर्तनों के मुकाबले जीवित रहने की सरलता को दर्शाती है। मौसमी जलधाराओं, अल्प वर्षा और उपलब्ध भूमि से अलग किए गए पानी को बड़े पत्थरों के जलाशयों में संग्रहीत किया गया था जो पूर्वी और दक्षिणी किलेबंदी के साथ मौजूद हैं। पानी तक पहुंचने के लिए, कुछ पत्थर के कुएं, जो सबसे पुराने उदाहरणों में से एक हैं, शहर के विभिन्न हिस्सों में स्पष्ट रूप से मौजूद हैं, और इनमें से सबसे प्रभावशाली एक कुआं शहर में स्थित है। धोलावीरा के इस तरह के विस्तृत जल संरक्षण तरीके अद्वितीय हैं और प्राचीन दुनिया की सबसे कुशल प्रणालियों में से एक मानी जाती हैं।


(साभार-पीआईबी)

India gets its 40th World Heritage Site

भारत के 40वें स्थल को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला

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((Vasai station to Vasai Court & Vasai Fort by Auto; वसई स्टेशन से वसई फोर्ट और वसई फोर्ट ऑटो से)
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((Vasai Road Station (BSR);वसई रोड स्टेशन 






सोमवार, 26 जुलाई 2021

तेलंगाना के वारंगल के पालमपेट में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर (रामप्पा मंदिर) को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में अंकित किया गया

भारत को अपना 39वां विश्व धरोहर स्थल प्राप्त हुआ

अब तक की एक और ऐतिहासिक उपलब्धि में, तेलंगाना राज्य में वारंगल के पास, मुलुगु जिले के पालमपेट में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर (जिसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है) को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में अंकित किया गया है। यह निर्णय आज यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 44वें सत्र में लिया गया। रामप्पा मंदिर, 13वीं शताब्दी का अभियंत्रिकीय चमत्कार है जिसका नाम इसके वास्तुकार, रामप्पा के नाम पर रखा गया था। इस मंदिर को सरकार द्वारा वर्ष 2019 के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में एकमात्र नामांकन के लिए प्रस्तावित किया गया था।

यूनेस्को ने आज एक ट्वीट में घोषणा करते हुए कहा, "अभी-अभी विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित: काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर (रामप्पा मंदिर), भारत के तेलंगाना में। वाह-वाह!"

यूनेस्को द्वारा काकतीय रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल घोषित किए जाने पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने लोगों से इस राजसी मंदिर परिसर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का साक्षात अनुभव प्राप्त करने का भी आग्रह किया।

यूनेस्को के एक ट्वीट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा; "अति उत्तम! सभी को बधाई, खासकर तेलंगाना के लोगों को।"

प्रधानमंत्री ने कहा, "प्रतिष्ठित रामप्पा मंदिर महान काकतीय वंश के उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। मैं आप सभी से इस राजसी मंदिर परिसर की यात्रा करने और इसकी भव्यता का साक्षात अनुभव प्राप्त करने का आग्रह करता हूं।"

केन्द्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने तेलंगाना के वारंगल के पास मुलुगु जिले के पालमपेट में स्थित रुद्रेश्वर मंदिर, (जिसे रामप्पा मंदिर भी कहा जाता है) को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किए जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उनके मार्गदर्शन और समर्थन के लिए धन्यवाद किया।

श्री जी किशन रेड्डी ने अपने ट्वीट में लिखा, “मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि @UNESCO ने पालमपेट, वारंगल, तेलंगाना में स्थित रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया है। संपूर्ण राष्ट्र की ओर से, विशेष रूप से तेलंगाना के लोगों की ओर से, मैं माननीय प्रधानमंत्री @narendramodi के प्रति उनके मार्गदर्शन और समर्थन के लिए आभार व्यक्त करता हूं।”

केन्द्रीय मंत्री ने इस अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की पूरी टीम को भी बधाई दी और विदेश मंत्रालय का भी धन्यवाद किया।

 

“मैं @ASIGI की पूरी टीम को रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल बनाने की दिशा में उनके अथक प्रयासों के लिए बधाई देता हूं। मैं माननीय प्रधानमंत्री @narendramodi के मार्गदर्शन में विदेश मंत्रालय को भी उनके प्रयासों के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं।”

मंत्री श्री जी किशन रेड्डी मंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण, यूनेस्को की विश्व विरासत समिति (डब्ल्यूएचसी) की बैठक वर्ष 2020 में आयोजित नहीं हो सकी और 2020 व 2021 के लिए नामांकन पर वर्तमान में जारी ऑनलाइन बैठकों की एक श्रृंखला में चर्चा की गई है। रविवार, 25 जुलाई 2021 को रामप्पा मंदिर पर चर्चा हुई।

श्री रेड्डी ने कहा कि वर्तमान में समिति के अध्यक्ष के रूप में चीन के साथ विश्व धरोहर समिति में 21 सदस्य हैं और सफलता का श्रेय उस सद्भावना को दिया, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल में यूनेस्को के सदस्य देशों के साथ बनाए हैं।

रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर पर एक संक्षिप्त विवरण

रुद्रेश्वर मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी में काकतीय साम्राज्य के शासनकाल में काकतीय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र ने कराया था। यहां के स्थापित देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं। 40 वर्षों तक मंदिर निर्माण करने वाले एक मूर्तिकार के नाम पर इसे रामप्पा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। 

काकतीयों के मंदिर परिसरों की विशिष्ट शैली, तकनीक और सजावट काकतीय मूर्तिकला के प्रभाव को प्रदर्शित करती हैं। रामप्पा मंदिर इसकी अभिव्यक्ति है और बार-बार काकतीयों की रचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत करती है। मंदिर छह फुट ऊंचे तारे जैसे मंच पर खड़ा है, जिसमें दीवारों, स्तंभों और छतों पर जटिल नक्काशी से सजावट की गई है, जो काकतीय मूर्तिकारों के अद्वितीय कौशल को प्रमाणित करती है।

समयानुरूप विशिष्ट मूर्तिकला व सजावट और काकतीय साम्राज्य का एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है। मंदिर परिसरों से लेकर प्रवेश द्वारों तक काकतीयों की विशिष्ट शैली, जो इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है, दक्षिण भारत में मंदिर और शहर के प्रवेश द्वारों में सौंदर्यशास्त्र के अत्यधिक विकसित स्वरूप की पुष्टि करती है।

यूरोपीय व्यापारी और यात्री मंदिर की सुंदरता से मंत्रमुग्ध थे और ऐसे ही एक यात्री ने उल्लेख किया था कि मंदिर “दक्कन के मध्ययुगीन मंदिरों की आकाशगंगा में सबसे चमकीला तारा” था।

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(साभार-पीआईबी)

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गुरुवार, 22 जुलाई 2021

रसमंजरी की इस सुंदर और मधुर धुन को जरूर सुनें; Rasmanjari Ka Ras

लोग भले ही लोकगीत भूलते जा रहे हैं। लेकिन उसमें भी जीवन को मंत्रमुग्ध करने का हर रस मौजूद है। रंगारंग इंडिया के इस एपिसोड में हम आपको रसमंजरी की धुन सुना रहे हैं...


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(Girgaon Beach, Mumbai in Evening: गिरगांव चौपाटी, मुंबई शाम का नजारा 
(Antilia, Mumbai: एंटीलिया, मुंबई
((Jaslok Hospital, Mumbai: जसलोक अस्पताल, मुंबई
(Girgaum Chowpatty, Mumbai@7pm, गिरगांव चौपाटी, मुंबई
((Pachu Bandar, Vasai, Maharashtra, पाचू बंदर, वसई, महाराष्ट्र
((Chimaji Appa Memorial, Vasai; चिमाजी अप्पा स्मारक, वसई, महाराष्ट्र
((Vasai Court, Maharashtra; वसई कोर्ट, महाराष्ट्र
((Vasai station to Vasai Court & Vasai Fort by Auto; वसई स्टेशन से वसई फोर्ट और वसई फोर्ट ऑटो से)
((Vasai Fort, Maharashtra; वसई किला, महाराष्ट्र
((Vasai Road Station (BSR);वसई रोड स्टेशन 






गुरुवार, 8 जुलाई 2021

लावणी को दुनिया में फैलाएं, बदनाम ना करें- स्वप्नील विधाते, Lavani में भ...

Meet The Male Lavani Dancer Swapnil Vidhate
संसाधन मिले या ना मिले, मार्गदर्शन मिले या ना मिले, सपने जरूर देखिये। मुकाम हासिल करने के लिए सपने देखना जरूरी है। अमरावती के स्वप्निल विधाते ने बचपन में सेलिब्रिटी बनने का सपना देखा था और इस सपने ने उन्हें लावणी डांस का सम्राट बना दिया। लावणी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए उन्हें भारत गौरव और महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। तो रंगारंग इंडिया में आज बात करेंगे लावणी सम्राट स्वप्निल विधाते से।.... 


Mahabodhi Mandir, Bodh Gaya: कैसे जाएं, कहां ठहरें, कहां कहां घूमें

महाबोधि मंदिर; वह ऐतिहासिक जगह जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था Mahabodhi Temple, Where the Buddha is said to have attained enlighte...