बुधवार, 22 सितंबर 2021

बिहार के बांका स्थित मंदार पर्वत का धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक महत्व, यहां सैर-सपाटे का कैसे उठाएं आनंद

बिहार का बांका सैलानियों के लिए बना और शानदार, रोपवे से करें खूबसूरत वादियों से दीदार

बिहार का बांका जिला धार्मिक मान्यताओं और आस्था के प्रतीक के साथ साथ कुदरती खूबसूरती के लिए भी मशहूर है। यहां का मंदार पर्वत सैलानियों को खासा लुभाता है। अब मंदार पर्वत पर सैर-सपाटे के लिए पैदल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आम लोगों को रोपवे  की सौगात दी है। तराई से शिखर पर पहुंचने में अब महज 4 मिनट का समय लगेगा, पहले करीब एक घंटे का समय लगता था। 
आप भी रोपवे से मंदार पर्वत के सफर का मजा लीजिए। राजगीर के बाद यह बिहार का दूसरा रोपवे है। मुख्यमंत्री ने बताया कि अभी 6 और जगहों पर रोपवे का निर्माण किया जाएगा। 

*मंदार के दर्शनीय स्थल*
ऐतिहासिक पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भी मंदार पर्वत अपने अंचल में 88 कुण्डों को  समेटता था। इनमें से कई कुण्ड आज भी दर्शनीय हैं। इनमें सबसे बड़ा पर्वत के आधार पर अवस्थित पापहरणी कुण्ड है। मकर संक्राति एवं आशाढ़ शुक्ल की द्वितीया  पर दूर दूर से हजारों श्रद्धालु इस कुण्ड में स्नान करने आते है। इस कुण्ड को क्षीरसागर 
का प्रतीक मानते हुए इसके मध्य में शेशषय्या विष्णु का लक्ष्मीनारायण मंदिर बनाया गया है जो इस कुण्ड के आकर्षण और भव्यता को और बढ़ा देता है।

 पापहरणी के अलावा भाख कुण्ड भी एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है, जिसके बारे मे मान्यता है कि इसके मध्य में विष्णु का पाँचजन्य भाख रखा है। इसी भाख से शिव ने सागर मंथन के पश्चात निकले विष का पान किया था जिसके प्रभाव से भाख नीलवर्ण हो गया है।

इनके अलावा सीता कुण्ड भी श्रद्धा का एक केन्द्र है जहाँ लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार वनवास अवधि में सीता ने सूर्य की उपासना में छठ व्रत किया था। पर्वत के मध्य में एक गुफा में विष्णु के नरसिंह रूप की एक मूर्ति है 
जिसके नाम पर यह गुफा नरसिंह गुफा के नाम से प्रचलित है। पर्वत के आधार स्थल पर सफा धर्म का सत्संग मंदिर हैं जिसमें इस को मत प्रवर्तक स्वामी  चन्दरदास के चरण चिह्न मौजूद है और इस मत के अनुयायियों के लिए यह 
मंदिर अधिवेशन केन्द्र के रूप में प्रयुक्त होता है। 

मंदार के पूरब की ओर तलहटी में प्राचीन लखदीपा मंदिर का जीर्णावशेष अवस्थित है जहाँ दीपावली की संध्या को एक लाख दीपों का विहंगम प्रज्जवलन किया जाता था। 1505 इस्वी में चैतन्य महाप्रभू का मंदार आगमन हुआ था और जिसकी स्मृति स्वरूप उनके चरण चिह्न एक चबुतरे पर आज भी दर्शनीय है। 

इन स्थलों के अतिरिक्त भी पर्वत पर शिव, सिंहवाहिनी दुर्गा, महाकाली, नरसिंह आदि की सुन्दर मूर्तियां यत्र तत्र अवस्थित है।

*मंदार : सांस्कृतिक पक्ष*
पर्वत के परिसर में वर्ष में दो बार भव्य मेले का आयोजन होता है। मकर संक्रांति पर दूर-दूर सेश्रद्धालु पापहरणी सरोवर में स्नान करने आते है और इस अवसर पर एक पक्ष का मेला आयोजित होता है। पहले यह मेला बौंसी मेला के नाम से लोक प्रसिद्ध था और इसकी भव्यता की चर्चा काफी दूर दूर तक जनप्रसिद्ध थी। वर्तमान में इसे प्रशासन 
के सहयोग से सांस्थानिक रूप दिया गया और अब यह प्रत्येक वर्श मंदार महोत्सव के  नाम से आयोजित होता है। मकर संक्राति के बाद आशाढ़ मास को शुक्ल द्वितीया पर भी यहां एक दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इस अवसर पर मंदार से 5 कि०मी० पूर्व की ओर बासी नगर में अवस्थित मधुसूदन मंदिर से रथयात्रा निकलती है जिसमें भगवान मधुसूदन की गजारूद्ध मूर्ति को पापहरणी सरोवर में स्नान कराने के लिए लाया जाता है। यह रथयात्रा जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा की तर्ज पर होती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पर एकत्रित होते है।


*मंदार पर्वत*
"वीरचान्दनयोर्मध्ये मंदारो नामः पर्वत”.... विष्णुपुराण की इस पंक्ति में चीर और चान्दन नदी के मध्य जिस  पर्वत की ओर इंगित किया गया है वही आज दक्षिणी बिहार के गंगा के मैदान और संथाल परगना की उच्च भूमि की संधि पर 445 मीटर की ऊँचाई तक मस्तक उठाए  खड़ा मंदार पर्वत है। भागलपुर से दक्षिण दिशा में झारखंड के दुमका की ओर जाने के रास्ते में बौंसी प्रखंड में प्रवेश करते ही काले ग्रेनाईट की एक ही शिला से निर्मित प्रकृति की यह अनुपम रचना दृष्टिगत होती है और बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कर लेती है। इसके साथ ही चरण से शिखर की तरफ जाते वलयकार चिह्न दूर से ही साफ-साफ नजर आते हैं जो पौराणिक आस्थाओं की मानें तो सागर मंथन में इसे मथनी की तरह प्रयोग करने के लिए इसपर रज्जु के तौर पर लपेटे गए नागराज वासुकी की रगड़ से बने है।

*पौराणिकता में मंदार*
प्राचीन धार्मिक साहित्यों में बाल्मिकी रामायण, मार्कण्डेय पुराण, मत्स्य पुराण, वामन पुराण, स्कण्य पुराण वृहत पुराण, विष्णु पुराण, श्री भागवत पुराण गरुड़ पुराण, मात्पथ ब्राहमण कोई भी मंदार के उल्लेख से अछूता नहीं रहा है। और प्रायः सभी आख्यानों में इसका संबंध किसी महत्वपूर्ण घटना से जोड़ा गया है। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब असुर द्वय मधु-कैटभ कासंडार किया तो मधु के सिर पर उन्होनें मंदार पर्वत और कैटभ के सिर पर ज्येष्ठगीर पर्वत (वर्तमान में मंदार से 25 कि०मी० उत्तर पश्चिम, रजौन में 
अवस्थित जैठोर) को स्थापित किया, और यहीं से विष्णुका मधुसूदन रूप प्रचलित  हुआ जिसका मंदिर मंदार पर्वत के चरण स्थली में अवस्थित है। मत्स्यपुराण और  वामन पुराण की कथा के अनुसार मंदार पर्वत ही शिव की निवास स्थलीथी यहां  से रावण द्वारा उन्हें उठाकर लंका ले जाने के क्रम में रास्ते में वर्तमान देवघर भूमि पर रख देने के कारण शिव वैद्यनाथ के रूप में वहीं स्थापित हो गए और वैधनाथधाम तीर्थ की स्थापना हुई।

वही मार्कण्डेय पुराण का दावा है कि देवी दुर्गा ने मदिशासुर का संहार की मदार पर्वत देव ये ही किया था। लोकप्रचलित मान्यता के अनुसार वनवास की अवधि में सीता ने मंदार पर्वत के मध्य स्थित एक समें छत का व्रत और उर्य की उपकीय आज भी वह कुण्ड सीता कुण्ड के नाम से अवस्थित है।

*मंदार और जैन धर्म*: 
हिन्दू धर्म के अलावा जैन परम्परा में भी मन्दार पर्वत की तीर्थस्थली के रूप में व्यापक महत्ता है। जैन धर्म के 12वें तीर्थकर वसुपूज्य जो मूलतः चम्पापुरी के राजकुमार थे ने इसी पर्वत को अपनी साधना भूमि के रूप में चुना था और 
अंततः यहीं निर्वाण को प्राप्त हुए थे। जैन तावलंबियों के अनुसार वसुपूज्य के चरण चिन्ह अभी भी मंदार पर्वत के शिखर पर धिष्ठापितहै, हालांकि वैष्णव मतावलंबियों में यह चिह्न विष्णुपाद चिह्न के रूप में मान्य और पूज्य है।

*सफा धर्म और मंदार*: 

सफा धर्म बीसवीं सदी में एक स्थानीय सुधारक एवं धर्मप्रचारक श्री चन्दर दास जी द्वारा प्रवर्तित मता है। इस मत का प्राणतत्व है बाह्य आचरण के साथ-साथ अपने अन्तर्मन की शुद्धता पर जोर। इस मत के सुधारवादी संदेश के कारण आस-पास  के आदिवासी जनसमुदाय में इसे काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई और बड़ी संख्या में संथाल और पहड़िया जैसे वनवासी समुदाय के लोग इस मत के सत्संग में हिस्सा लेने लगे। इस धर्म के गतिविधियों का केन्द्र भी मदार पर्वत अंचल ही रहा। 

इस प्रकार मंदार पर्वत तीन धर्मों की त्रिवेणी से सज्जित है। इसके चरणस्थली में सफा धर्म के केंद्र के रूप में सत्संग कुटिया अवस्थित है तो मध्य भाग में नरसिंह गुफा के रूप में वैष्णव प्रभाव स्पष्ट होता है वही मंदार पर्वत का शिखर वसुपज्य के निर्वाण स्थल के रूप में एक जैन तीर्थ के रूप में स्थापित है। किन्तु इन तीनो धर्मों को मंदार ने अपने अंचल में इस सौहार्द के साथ समेटा है कि एक ही चिन्ह को जैन मतावलंबी वसुपूज्य के चरण चिन्ह के रूप में वैष्णव विष्णुपद मानकर के सदियों से पूजते आ रहे हैं।


ओढ़नी जलाशय:   
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बांका जिले के बांका प्रखंड स्थित ओढ़नी जलाशय का भ्रमण कर निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने मोटरवोट से जलाशय का भ्रमण कर इसका जायजा लिया। मुख्यमंत्री ने ओढ़नी जलाशय के दूसरे 
छोर पर उतरकर वहां की मनोरम वादियों में भी कुछ पल बिताया। 

ओढ़नी जलाशय बांका जिला मुख्यालय से लगभग 16 किलोमीटर दूर मनोरम वादियों के बीच स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 2001 में किया गया था। इस जलाशय की प्राकृतिक रुपरेखा को ध्यान में रखते हुए बिना किसी छेड़छाड़ के सारे कार्य किये जा रहे हैं। डैम साइड कैम्पिंग, मेडिटेशन कैम्प, मड हाऊस स्टे, जंगल सफारी, नेचर सफारी, माउंटेन कैम्पिंग, डैम साईड साइक्लिंग, बर्मा ब्रीज, जिप लाइन और डैम विशेष में कई सारे परदेशी पक्षियों के आगमन उपरांत बर्ड वाचिंग का अद्भूत संयोग बनता है। यहां की भौगोलिक संरचना भी काफी अच्छी है।

 भ्रमण के बाद आईलैंड पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हम पहली बार यहां आए हैं। हमने इस जलाशय का निरीक्षण किया है। पर्यटन के दृष्टिकोण से यह काफी महत्वपूर्ण स्थल है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहां सरकार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से काम किया जा रहा है।  उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाके में वृक्षारोपण कराया जा रहा है। इस बात का भी ध्यान रखा जा रहा है कि यहां के पुराने वृक्षों की प्रजातियों को भी सुरक्षित रखा जाय। यहां राज्य के साथ-साथ बाहर से भी पर्यटक घूमने आयेंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने आज पुरातात्विक स्थल भदरिया का भी एरियल सर्वे किया है। इस जगह  की खुदाई होने पर दो से ढाई हजार वर्ष पहले के इतिहास की भी जानकारी मिलेगी। उन्होंने कहा कि खेती के लिए भी इस जलाशय का उपयोग किया जाता है। पर्यटन को बढ़ावा देने की यहां काफी गुंजाइश है। 

पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी यह स्थल महत्वपूर्ण है। यहां हरियाली और जल का संरक्षण हो रहा है। इस जलाशय की साफ-सफाई की भी व्यवस्था की गई है। नई पीढ़ी के लोगों के साथ ही आने वाले पर्यटकों को यहां आकर काफी कुछ जानने और समझने को मिलेगा।

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(Rajodi Beach, Nalasopara, Maharashtra
((Chhatrapati Shivaji Maharaj Vastu Sangrahalaya, Mumbai
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((The Fishing Community of Arnala Bunder, Virar, Maharashtra
((Arnala Fort: Attarctive Tourist Spot: How to reach
((Nasik to Igatpuri; Everywhere Greenary
((Kasara to Karjat, Maharashtra; See Beauty of Nature
((Igatpuri Station, Maharashtra
(Patna Junction, Bihar, India
(Rice Fields of Bihar
(Gaya Railway Junction, Bihar, India
((Bodh stupa, Nalasopara (west), Maharashtra
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 3; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 2; Amokhar, Bihar
(Village of Freedom Fighters, ignored by Govt Part 1; Amokhar, Bihar
(Girgaon Beach, Mumbai in Evening: गिरगांव चौपाटी, मुंबई शाम का नजारा 
(Antilia, Mumbai: एंटीलिया, मुंबई
((Jaslok Hospital, Mumbai: जसलोक अस्पताल, मुंबई
(Girgaum Chowpatty, Mumbai@7pm, गिरगांव चौपाटी, मुंबई
((Pachu Bandar, Vasai, Maharashtra, पाचू बंदर, वसई, महाराष्ट्र
((Chimaji Appa Memorial, Vasai; चिमाजी अप्पा स्मारक, वसई, महाराष्ट्र
((Vasai Court, Maharashtra; वसई कोर्ट, महाराष्ट्र
((Vasai station to Vasai Court & Vasai Fort by Auto; वसई स्टेशन से वसई फोर्ट और वसई फोर्ट ऑटो से)
((Vasai Fort, Maharashtra; वसई किला, महाराष्ट्र
((Vasai Road Station (BSR);वसई रोड स्टेशन 





शनिवार, 11 सितंबर 2021

विशेष व्यवस्था के बीच विदा हुए डेढ़ दिन के बप्पा

आज डेढ़ दिन के बप्पा की विदाई दी गई। कोरोना गाइडलाइंस की वजह से गणपति के विसर्जन के दौरान पहले जैसा उत्साह नहीं  देखा गया। मुंबई से सटे नालासोपारा पश्चिम के चक्रेश्वर तालाब पर सुरक्षा बंदोवस्त के बीच विसर्जन किया गया। 




मंगलवार, 17 अगस्त 2021

महाराष्ट्र में सैर-सपाटा करना अब हुआ और मजेदार





महाराष्ट्र की नैसर्गिक खूबसूरती को निहारना अपने आप में एक अलग अनुभव देता है। .यहां सैर-सपाटे के लिए खूबसूरत समुद्री किनारा है, किले हैं, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं और सबसे बढ़कर यहां के स्थानीय लोग काफी अच्छे हैं। वैसे तो देश का महत्वपूर्ण टूरिस्ट स्पॉट में महाराष्ट्र का कोई सानी नहीं है लेकिन यहां सैर-सपाटे को और भी मजेदार बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। 


महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में सैर-सपाटे को आसान और सुविधाजनक बनाने के साथ ही यहां के टूरिस्ट सेक्टर को अधिक मजबूती देने के लिए की कई नई शुरुआत की। 





नई शुरुआत :

 -
एमटीडीसी की नई यूजर फ्रेंडली वेबसाइट का उद्घाटन

- बुकिंग के लिए @makemytrip और @goibibo के साथ करार

-स्काई डाइविंग जैसे साहसिक खेलों के लिए स्काई हाई के साथ करार

-रत्नागिरी के गणपतिपुले में एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स के लिए बोट क्लब (Boat Club) और बीच कुटिया (Beach Shacks) शुरू






-सिंहगढ़ पर्यटक आवास में अप-टू-डेट सुविधाएं उपलब्ध

-एमटीडीसी कर्मचारियों को कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एमएसआईएचएमसीटी पुणे के साथ समझौता ज्ञापन


इस मौके पर ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र में विविध पर्यटन क्षमता है और एमटीडीसी की ये पहल पूरे देश और दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित करेगी। उन्होंने यह भी विश्वास व्यक्त किया कि रोजगार सृजित होंगे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

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गुरुवार, 29 जुलाई 2021

'स्पेस टूरिज्म: द नेक्स्ट फ्रंटियर'

नेहरू विज्ञान केंद्र, मुंबई ने एयरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, मुंबई शाखा के सहयोग से 27 जुलाई, 2021 को 'स्पेस टूरिज्म: द नेक्स्ट फ्रंटियर' पर एक ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया। वीएम मेडिकल सेंटर, मुंबई की एयरोस्पेस मेडिसिन स्पेशलिस्ट, डॉ. पुनीता मसरानी ने व्याख्यान में वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।

अंतरिक्ष पर्यटन या वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्रा की अवधारणा नई नहीं है और इसके विचार की अवधारणा से वास्तविकता तक के इतिहास पर डॉ. पुनीता ने ऑनलाइन व्याख्यान में चर्चा की। अंतरिक्ष पर्यटन, मनोरंजन के व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष यात्रा है। डॉ. पुनीता ने बताया कि अंतरिक्ष पर्यटन हाल ही में दो अमेरिकी अरबपतियों, रिचर्ड ब्रोंसन और जेफ बेजोस की वजह से खबरों में रहा है, जो अपने निजी रॉकेट और विमान का उपयोग करके पर्यटकों के रूप में अंतरिक्ष में गए थे।

 

 

व्याख्यान में डॉ. पुनीता ने कहा कि पहले नासा और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने पर्यटकों को अंतरिक्ष यात्रा के लिए ले जाना शुरू किया था। यह प्रक्रिया अत्यधिक कड़ी थी। रूसी सोयुज अंतरिक्ष यान हर 6 महीने में पर्यटकों को ले जाता था। 'स्पेस एडवेंचर्स अंतरिक्ष पर्यटन के क्षेत्र में पहली एजेंसी थी। डॉ. पुनीता ने बताया कि एजेंसी की शुरुआत 1998 में अमेरिकी अरबपति रिचर्ड गैरियट ने की थी। एजेंसी ने रूसी सोयुज रॉकेट्स पर मध्यस्थता की सवारी की पेशकश की थी।

डॉ. पुनीता ने कहा, जबकि नासा और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी दोनों ने अंतरिक्ष पर्यटन को रोक दिया, उद्योगपतियों और उद्यमियों ने सोचा कि वे निजी मिशन शुरू कर सकते हैं ताकि अधिक से अधिक लोग अंतरिक्ष की यात्रा कर सकें। इसने अंतरिक्ष पर्यटन की अवधारणा को जन्म दिया।

डॉ. पुनीता ने अपने व्याख्यान में कहा कि डेनिस टीटो पहले वाणिज्यिक अंतरिक्ष यात्री थे, जिसके पहले केवल अंतरिक्ष यात्री ही अनुसंधान उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष में जाते थे। टीटो अप्रैल 2001 में रूसी सोयुज टीएमए लॉन्च व्हीकल पर अंतरिक्ष में गए। मार्क शटलवर्थ, ग्रेग ऑलसेन, अनुश अंसारी, चार्ल्स सिमोनी, रिचर्ड गैरियट, गाइ लालिबर्टे अन्य अंतरिक्ष यात्री थे जो 2002 से 2009 के बीच अंतरिक्ष की शुल्क के साथ अंतरिक्ष यात्राओं पर गए थे। निजी अंतरिक्ष यात्रियों को कड़े चयन मानकों, व्यापक प्रशिक्षण और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए अपनाए गए उपायों से गुजरना पड़ता था।

डॉ. पुनीता ने निजी अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में काम कर रही विभिन्न कंपनियों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की:

ब्लू ओरिजिन की स्थापना 2000 में एमज़ॉन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी-सीईओ जेफ बेजोस ने की थी। ब्लू ओरिजिन के दोबारा उपयोग होने वाले रॉकेट न्यू शेपर्ड ने हाल ही में चार निजी नागरिकों के साथ पहली मानव उड़ान सफलतापूर्वक पूरी की। चालक दल में जेफ बेजोस, मार्क बेजोस, वैली फंक और ओलिवर डेमन शामिल थे। रॉकेट न्यू शेफर्ड ने 20 जुलाई, 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका के वेस्ट टेक्सास से उड़ान भरी।

 

स्पेसएक्स एक अमेरिकी एयरोस्पेस निर्माता है, जिसकी स्थापना 2002 में टेस्ला मोटर्स के एलॉन मस्क ने की थी। कंपनी ने ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट विकसित किया है जिसका उपयोग नासा के अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाने के लिए किया था। स्पेस एक्स नागरिकों को 10 दिन की शुल्क के साथ यात्रा पर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन भेजने की योजना बना रहा है। स्पेस एक्स चंद्रमा और मंगल की यात्रा की भी योजना बना रहा है।

वर्जिन गेलेक्टिक की स्थापना 2004 में ब्रिटिश उद्यमी रिचर्ड ब्रैनसन ने की थी। रिचर्ड ब्रैनसन और उनका दल हाल ही में अपने वर्जिन गेलेक्टिक रॉकेट विमान पर सवार होकर न्यू मैक्सिको रेगिस्तान से 50 मील से अधिक ऊपर पहुंचे और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लौट आए।

 



डॉ. पुनीता ने बताया कि जहां ये सभी मिशन अंतरिक्ष की सवारी की पेशकश करते हैं, वहीं नासा ने हाल ही में निजी नागरिकों को एक छोटी यात्रा के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाने की अनुमति दी है। एक्सिऑम स्पेस जैसी कंपनियां निजी अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में शामिल हैं। कंपनी भविष्य में निजी स्पेस स्टेशन की भी योजना बना रही है।

 

 

व्याख्यान में, डॉ. पुनीता ने अंतरिक्ष पर्यटन में शामिल बुनियादी शब्दावली जैसे कक्षीय उड़ानें, उप कक्षीय उड़ानें, पृथ्वी की निचली कक्षाओं के बारे में भी बताया। फेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनल के अनुसार समुद्र तल से 100 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई पर अर्थात् कर्मन रेखा अंतरिक्ष है। वही एजेंसी 50 मील (80.47 किलोमीटर) की ऊंचाई को अंतरिक्ष उड़ान के रूप में अर्हता प्राप्त करने की ऊंचाई मानती है।

डॉ. पुनीता ने यह भी बताया कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन लो अर्थ ऑर्बिट (थर्मोस्फीयर) में मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन है। स्टेशन 1998 में स्थापित किया गया था। यह एक बहुराष्ट्रीय सहयोगी परियोजना है जिसमें हिस्सा लेने वाली पांच अंतरिक्ष एजेंसियां नासा (संयुक्त राज्य अमेरिका), रोस्कोस्मोस (रूस), जेएक्सए (जापान), ईएसए (यूरोप), और सीएसए (कनाडा)​​शामिल हैं।

डॉ. पुनीता ने शामिल विज्ञान और जोखिम, जागरूकता, चिंताओं और चिकित्सा सूचित सहमति पर चर्चा की जो पर्यटन का अनिवार्य हिस्सा हैं। उन्होंने आगे बताया कि उड़ान के बाद की चिकित्सा समस्याएं या स्थितियां क्या हो सकती हैं और मानव शरीर और मस्तिष्क पर अंतरिक्ष यात्रा का प्रभाव क्या हो सकता है।

व्याख्यान के अधिक विवरण के लिए, कृपया नेहरू विज्ञान केंद्र मुंबई के फेसबुक पेज पर जाएं: Nehru Science Centre Mumbai | Facebook



नेहरू विज्ञान केंद्र के बारे में

नेहरू विज्ञान केंद्र (एनएससी) भारत के सबसे बड़े विज्ञान केंद्रों में से एक है और देश के पश्चिमी क्षेत्र में छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद का पश्चिमी क्षेत्रीय मुख्यालय है और पश्चिमी क्षेत्र में पांच अन्य विज्ञान केंद्रों की गतिविधियों का संचालन और समन्वय करता है: रमन विज्ञान केंद्र, नागपुर, क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र, भोपाल, क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र, कालीकट, गोवा विज्ञान केंद्र, पणजी और जिला विज्ञान केंद्र, धरमपुर। एनएससी में एक वर्ष में 7.5 लाख से अधिक आगंतुक आते हैं। यह केंद्र स्कूली छात्रों के लिए प्रमुख आकर्षण केंद्र और विज्ञान की समझ बढ़ाने और देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करने में उत्कृष्टता का केंद्र साबित हुआ है।



राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद के बारे में

राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद, भारत में विज्ञान केंद्रों और विज्ञान संग्रहालयों का शीर्ष निकाय, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त वैज्ञानिक संगठन के रूप में कार्य करता है। यह देश भर में 25 विज्ञान केंद्रों की गतिविधियों का समन्वय करता है। परिषद विज्ञान केंद्रों और संग्रहालयों, अत्याधुनिक इंटरैक्टिव प्रदर्शनों और कार्यक्रमों और विज्ञान संचार में मानव संसाधन विकास के विकास में माहिर है। परिषद को मॉरीशस के लिए टर्नकी आधार पर एक विज्ञान केंद्र विकसित करने का गौरव प्राप्त है। यह स्कूली छात्रों के लिए राष्ट्रव्यापी वैज्ञानिक कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन करता है। आईएओ के अलावा, परिषद को राष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी, राष्ट्रीय विज्ञान नाटक प्रतियोगिता और विज्ञान एक्सपो आदि जैसे आयोजनों के लिए भी जाना जाता है। परिषद लगभग 10 मिलियन आगंतुकों और 22 ग्रामीण क्षेत्रों और अन्य कार्यक्रमों और गतिविधियों के लिए यात्रा संग्रहालय बसों द्वारा सेवा करती है, जिसमें विभिन्न विज्ञान केंद्रों में अपनी इंटरैक्टिव दीर्घाओं के माध्यम से 25 प्रतिशत छात्र शामिल हैं।

(साभार-पीआईबी)

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